बुल्ले शाह (ਬੁੱਲ੍ਹੇ ਸ਼ਾਹ, ur, जन्म नाम अब्दुल्ला शाह) (जन्म 1680), जिन्हें बुल्ला शाह भी कहा जाता है, एक पंजाबी सूफ़ी संत एवं कवि थे। उनकी मृत्यु 1757 से 1759 के बीच वर्तमान पाकिस्तान में स्थित शहर क़सूर में हुई थी उनकी कविताओं को काफ़ियाँ कहा जाता है।

बुल्ले शाह
जन्म अब्दुल्ला शाह
1680
मौत 1757-59
क़सूर
समाधि क़सूर
उपनाम बुल्ला शाह
पेशा कवि
धर्म इस्लाम[1]
माता-पिता पिता: शाह मुहम्मद दरवेश
क़सूर

उनका जन्म सन् 1680 में हुआ था। उनके जन्मस्थान के बारे में इतिहासकारों की दो राय हैं। सभी का मानना है कि बुल्ले शाह के माता-पिता पुश्तैनी रूप से वर्तमान पाकिस्तान में स्थित बहावलपुर राज्य के "उच्च गिलानियाँ" नामक गाँव से थे, जहाँ से वे किसी कारण से मलकवाल गाँव (ज़िला मुलतान) गए। मालकवल में पाँडोके नामक गाँव के मालिक अपने गाँव की मस्जिद के लिये मौलवी ढूँढते आए। इस कार्य के लिये उन्होंने बुल्ले शाह के पिता शाह मुहम्मद दरवेश को चुना और बुल्ले शाह के माता-पिता पाँडोके (वर्तमान नाम पाँडोके भट्टीयाँ) चले गए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बुल्ले शाह का जन्म पाँडोके में हुआ था और कुछ का मानना है कि उनका जन्म उच्च गिलानियाँ में हुआ था और उन्होंने अपने जीवन के पहले छः महीने वहीं बिताए थे।[2][3]

बुल्ले शाह के दादा सय्यद अब्दुर रज्ज़ाक़ थे और वे सय्यद जलाल-उद-दीन बुख़ारी के वंशज थे। सय्यद जलाल-उद-दीन बुख़ारी बुल्ले शाह के जन्म से तीन सौ साल पहले सुर्ख़ बुख़ारा नामक जगह से आकर मुलतान में बसे थे। बुल्ले शाह [[मुहम्मद] साहब की पुत्री फ़ातिमा के वंशजों में से थे।[1]

बुल्ले शाह का असली नाम अब्दुल्ला शाह था। उन्होंने शुरुआती शिक्षा अपने पिता से ग्रहण की थी और उच्च शिक्षा क़सूर में ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा से ली थी।[2][4] पंजाबी कवि वारिस शाह ने भी ख़्वाजा ग़ुलाम मुर्तज़ा से ही शिक्षा ली थी।[4] उनके सूफ़ी गुरु इनायत शाह थे।[3] बुल्ले शाह की मृत्यु 1757 से 1759 के बीच क़सूर में हुई थी।[3][5][6] बुल्ले शाह के बहुत से परिवार जनों ने उनका शाह इनायत का चेला बनने का विरोध किया था क्योंकि बुल्ले शाह का परिवार पैग़म्बर मुहम्मद का वंशज होने की वजह से ऊँची सैय्यद जात का था जबकि शाह इनायत जात से आराइन थे, जिन्हें निचली जात माना जाता था। लेकिन बुल्ले शाह इस विरोध के बावजूद शाह इनायत से जुड़े रहे और अपनी एक कविता में उन्होंने कहा:

बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ भैनाँ ते भरजाईयाँ
'मन्न लै बुल्लेया साड्डा कैहना, छड्ड दे पल्ला राईयाँ
आल नबी, औलाद अली, नूँ तू क्यूँ लीकाँ लाईयाँ?'
'जेहड़ा सानू स​ईय्यद सद्दे, दोज़ख़ मिले सज़ाईयाँ
जो कोई सानू राईं आखे, बहिश्तें पींगाँ पाईयाँ
राईं-साईं सभनीं थाईं रब दियाँ बे-परवाईयाँ
सोहनियाँ परे हटाईयाँ ते कूझियाँ ले गल्ल लाईयाँ
जे तू लोड़ें बाग़-बहाराँ चाकर हो जा राईयाँ
बुल्ले शाह दी ज़ात की पुछनी? शुकर हो रज़ाईयाँ'

बुल्ले को समझाने बहनें और भाभियाँ आईं
(उन्होंने कहा) 'हमारा कहना मान बुल्ले, आराइनों का साथ छोड़ दे
नबी के परिवार और अली के वंशजों को क्यों कलंकित करता है?'
(बुल्ले ने जवाब दिया) 'जो मुझे सैय्यद बुलाएगा उसे दोज़ख़ (नरक) में सज़ा मिलेगी
जो मुझे आराइन कहेगा उसे बहिश्त (स्वर्ग) के सुहावने झूले मिलेंगे
आराइन और सैय्यद इधर-उधर पैदा होते रहते हैं, परमात्मा को ज़ात की परवाह नहीं
वह ख़ूबसूरतों को परे धकेलता है और बदसूरतों को गले लगता है
अगर तू बाग़-बहार (स्वर्ग) चाहता है, आराइनों का नौकर बन जा
बुल्ले की ज़ात क्या पूछता है? भगवान की बनाई दुनिया के लिए शुक्र मना'

रचनात्मक कार्य

संपादित करें

बुल्ले शाह ने पंजाबी में कविताएँ लिखीं जिन्हें "काफ़ियाँ" कहा जाता है। काफ़ियों में उन्होंने "बुल्ले शाह" तख़ल्लुस का प्रयोग किया है।[7]

संस्कृति पर प्रभाव

संपादित करें
  • 2007 में इनके देहांत की 250वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये क़सूर शहर में एक लाख से अधिक लोग एकत्रित हुए थे।[6]

सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद भी बाबा बुल्ले शाह की रचनाएँ अमर बनी हुई हैं। आधुनिक समय के कई कलाकारों ने कई आधुनिक रूपों में भी उनकी रचनाओं को प्रस्तुत किया है, जिनमें से कुछ हैं:

  • बुल्ले शाह की कविता "बुल्ला की जाना" को रब्बी शेरगिल ने एक रॉक गाने के तौर पर गाया।[8]
  • इनकी कविता का प्रयोग पाकिस्तानी फ़िल्म "ख़ुदा के लिये" के गाने "बन्दया हो" में किया गया था।
  • इनकी कविता का प्रयोग बॉलीवुड फ़िल्म रॉकस्टार के गाने "कतया करूँ" में किया गया था।
  • फ़िल्म दिल से के गाने "छइयाँ छइयाँ" के बोल इनकी काफ़ी "तेरे इश्क नचाया कर थैया थैया" पर आधारित थे।[9]

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें

विस्तृत पाठन

संपादित करें
  • जे॰ आर॰ पूरी, टी॰ आर॰ शंगारी (1986). Bulleh Shah: the love-intoxicated iconoclast. Mystics of the East (in अंग्रेज़ी). Vol. 10. राधा स्वामी सतसंग ब्यास.
  • जे॰ आर॰ पूरी, टी॰ आर॰ शंगारी (2011). ਸਾਈਂ ਬੁੱਲ੍ਹੇਸ਼ਾਹ [साईं बुल्लेशाह] (in पंजाबी) (13 ed.). राधा स्वामी सतसंग ब्यास. ISBN 978-81-8256-953-9.
  1. चरनजीत लाल सेहगल (2008). Nirvana [निर्वाण] (in अंग्रेज़ी). अनामिका प्रकाशक और वितरक. p. 82. ISBN 978-81-7975-232-6. Retrieved 16 मार्च 2012.
  2. राज कुमार. Encyclopaedia Of Untouchables : Ancient Medieval And Modern (in अंग्रेज़ी). ज्ञान प्रकाशन घर. p. 190. ISBN 978-81-7835-664-8. Archived from the original on 9 अक्तूबर 2013. Retrieved 15 मार्च 2012. {{cite book}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  3. Encyclopaedic Dictionary of Punjabi Literature: A-L. Global encyclopaedic literature (in अंग्रेज़ी). Vol. 1. Global Vision Pub House. 2003. p. 75. ISBN 978-81-8774-652-2. Archived from the original on 4 जुलाई 2014. Retrieved 16 मार्च 2012.
  4. गीती सेन (1998). गीती सेन (ed.). Crossing boundaries (in अंग्रेज़ी). Orient Blackswan. p. 128. ISBN 978-81-2501-341-9. Archived from the original on 16 अप्रैल 2014. Retrieved 17 मार्च 2012.
  5. राज कुमार. Encyclopaedia Of Untouchables : Ancient Medieval And Modern (in अंग्रेज़ी). ज्ञान प्रकाशन घर. p. 197. ISBN 978-81-7835-664-8. Archived from the original on 9 अक्तूबर 2013. Retrieved 15 मार्च 2012. {{cite book}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  6. तारिक़ अली (2008). The duel: Pakistan on the flight path of American power. साइमन एंड शूस्टर. p. 16. ISBN 978-14-1656-101-9. Retrieved 17 मार्च 2012.
  7. गीती सेन (1998). गीती सेन (ed.). Crossing boundaries (in अंग्रेज़ी). Orient Blackswan. p. 127. ISBN 978-81-2501-341-9. Archived from the original on 16 अप्रैल 2014. Retrieved 17 मार्च 2012.
  8. सीमा चिश्ती (8 फ़रवरी 2011). "Studio giving Pak music a new voice gets in Rabbi Shergill". नई दिल्ली: इन्डियन एक्सप्रेस. Retrieved 17 मार्च 2012.
  9. Rachel Dwyer. Filming the Gods: Religion and Indian Cinema. Routledge. p. 151. ISBN 978-11-3438-070-1. Archived from the original on 12 मई 2019. Retrieved 19 मार्च 2012.