ब्रह्मगुप्त प्रमेय ज्यामिति का एक प्रमेय है। इसके अनुसार यदि किसी चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत हों तो इन विकर्णों के प्रतिच्छेद बिन्दु से इस चतुर्भुज के किसी भुजा पर खींचा गया लम्ब उस भुजा के सामने वाली भुजा को समद्विभाजित करता है। यह प्रमेय भारत के महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने दिया था।

दूसरे शब्दों में, माना कि A, B, C तथा D किसी वृत्त की परिधि पर स्थित हैं तथा रेखाएँ ACBD परस्पर लम्बवत हैं। AC तथा BD का प्रतिच्छेद बिन्दु M है। M से रेखा BC पर लम्ब डालो जो इसे E बिन्दु पर मिलता है। EM को आगे बढ़ाने पर यह AD को F पर मिलती है। तो इस प्रमेय के अनुसार बिन्दु F रेखा AD का मध्य बिन्दु होगा।

इसी को ब्रह्मगुप्त में श्लोक में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है-

त्रि-भ्जे भुजौ तु भूमिस् तद्-लम्बस् लम्बक-अधरं खण्डम्।
ऊर्ध्वं अवलम्ब-खण्डं लम्बक-योग-अर्धं अधर-ऊनम् ॥
-- ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, गणिताध्याय, क्षेत्रव्यवहार १२.३१

सन्दर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें