ब्रह्म दास लक्ष्मण (1900-1981), भारतीय मूल के एक फ़िजीयन राजनीतिज्ञ, मजदूर संघ नेता और व्यापारी थे जिनका फ़िजी के चीनी उद्योग पर काफी प्रभाव था।

ब्रह्म दास लक्ष्मण
चित्र:BDLakshman.jpg

विधान परिषद के सदस्य
उत्तर पश्चिमी भारतीय प्रभाग
पद बहाल
1940–1944
पूर्वा धिकारी चतुर सिंह
उत्तरा धिकारी ए डी पटेल

विधान परिषद के सदस्य
पद बहाल
1959–1963
पूर्वा धिकारी अयोध्या प्रसाद
उत्तरा धिकारी ए डी पटेल

जन्म फ़िजी
मृत्यु नवुआ, फ़िजी
पेशा व्यवसायी, मजदूर संघ नेता, संपादक
धर्म हिन्दु

शिक्षा और अध्यापन संपादित करें

बी.डी. लक्ष्मण ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। भारत में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था। फ़िजी में अपनी वापसी के बाद उन्होने लौतोका के सवेनी में गुरुकुल प्राइमरी स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। 1939 में, स्कूल समिति के हुये मतभेद के बाद उन्होने यह स्कूल छोड़ दिया और लौतोका शहर चले गए जहां उन्होने प्रौढ़ पुरुषों को पढ़ाने के लिए एक रात्रि विद्यालय खोला।

विधान परिषद का पहला चुनाव संपादित करें

लौतोका में वह किसान संघ के नेताओं के संपर्क में आये और उन्होने गन्ना किसानों के संघ के लिए अपनी सेवायें देने की पेशकश की। उन्होंने किसान संघ के नेतृत्व के साथ मिलकर काम किया और 1940 में जब उन्होने विधान परिषद का चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की, तब उन्हें किसान संघ से समर्थन प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि निवर्तमान सदस्य, चतुर सिंह से संघ नाखुश था। बी.डी. लक्ष्मण उत्तर पश्चिम भारतीय डिवीजन से चुनाव में खड़े हुये और किसान संघ के एक अन्य सदस्य सदानंद महाराज के खिलाफ, आसानी से जीत दर्ज की।

किसान संघ के सदस्य संपादित करें

1940 से 1943 तक, बी डी लक्ष्मण ने कोलोनियल शुगर रिफाइनिंग कंपनी (फ़िजी) और सरकार के साथ हुये कई विचार विमर्श और वार्ताओं के दौरान किसान संघ का प्रतिनिधित्व किया। 1943 में हुई गन्ना किसान हड़ताल के दौरान लक्ष्मण, अयोध्या प्रसाद के एक प्रमुख सलाहकार थे जबकि किसान संघ और महा संघ के बीच किसानों का समर्थन प्राप्त करने के लिए होड़ लगी थी। जब किसान संघ वाम और दक्षिण पंथ में विभाजित हुआ तक उन्होने अयोध्या प्रसाद के नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी धड़े से खुद को संबद्ध कर लिया लेकिन गुपचुप तरीके से वामपंथी सदस्यों के साथ गुप्त बैठकें कीं। बुरी तरह विभाजित किसान संघ के चलते वह 1944 के विधान परिषद चुनाव में अपनी सीट को बचा नहीं पाये और महा संघ और वामपंथी किसान संघ द्वारा समर्थित उम्मीदवार, ए डी पटेल ने उन्हें आसानी से हरा दिया।

1953 में, अयोध्या प्रसाद जो कि अब किसान संघ के उपाध्यक्ष थे और बी डी लक्ष्मण के बीच किसान संघ की एक इमारत निर्माण के लिए भूमि प्राप्त करने के दौरान जमीन मालिकों को होने वाले भुगतान को लेकर मतभेद उत्पन्न हो गये। लक्ष्मण को किसान संघ से निष्कासित कर दिया और तब लक्ष्मण ने चीनी मिल मजदूरों के साथ खुद को शामिल किया गया था।

दूसरी चुनाव विजय संपादित करें

1956 विधान परिषद चुनाव में, बी डी लक्ष्मण अयोध्या प्रसाद के खिलाफ खड़े हुये लेकिन मात्र 109 वोट पाने में कामयाब रहे। 1958 में उनकी किस्मत तब पलटी जब वह स्थानीय संपत्तिकर दाता संघ के समर्थन से लौतोका नगर परिषद के लिए चुने गए।

किसान संघ की केंद्रीय समिति से सिद्दीक कोया के हटने के बाद, किसान संघ के मुस्लिम समर्थक उससे विमुख हो गये और 1959 के विधान परिषद चुनाव में उन्होने अयोध्या प्रसाद को हराने के लिए बी डी लक्ष्मण को समर्थन दिया इसके साथ ही लक्ष्मण अपनी पुरानी सीट हासिल करने में सफल रहे। लक्ष्मण लक्ष्मण ने अपनी यह सीट 1963 के अगले चुनावों तक बरकरार रखी। उन्होंने अन्य कई चुनावों के लिए भी नामांकन भरा, लेकिन किसी भी चुनाव को लेकर कोई गंभीर अभियान शुरू नहीं किया और अपने शेष जीवन में अधिकतर राजनीति से दूर बने रहे।

मजदूर संघ नेता संपादित करें

अमी चन्द्र की मृत्यु के बाद लक्ष्मण, फ़िजी औद्योगिक श्रमिक कांग्रेस के अध्यक्ष बने और जून 1955 में हुई स्वर्ण खनिकों की हड़ताल के लिए उत्तरदायी रहे। 1960 की गन्ना अनुबंध वार्ता में लक्ष्मण ने मिल मजदूरों का प्रतिनिधित्व किया।

सन्दर्भ संपादित करें