भगवत मुदित का समय संवत् 1630 तथा सं. 1720 वि. के मध्य में था। यह आगरा में शुजाअ के दीवान थे और वहाँ से विरक्त होकर वृंदावन में आ बसे थे। इन्हें हित संप्रदाय के भक्तों का भी सत्संग प्राप्त था और इन्होंने इस संप्रदाय के 35 भक्तों का चरित्र रसिक अनन्यमाल में ग्रंथित किया है। प्रबोधानंद सरस्वती के अनेक वृंदावन शतकों में से एक का इन्होंने पद्यानुवाद किया है, जो संवत् 1707 की रचना है। इनके दो सौ सात स्फुट पद अब तक मिले हैं। यह भी चैतन्य संप्रदाय के राधारमणी वैष्णव थे।

इनके पिता माधव मुदित चैतन्य संप्रदाय के भक्त सुकवि तथा आगरा के निवासी थे।

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