कामदगिरि , चित्रकूट तीर्थ स्थल का सबसे प्रमुख तथा सबसे प्राचीन है । ऐसी मान्यता है कि कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं तथा नंगे पैर परिक्रमा लगाते हैं । कामदगिरि के मुख्य देव भगवान कामता नाथ[1] हैं।

कामदगिरि
श्री कामदगिरि परिक्रमा
श्री कामदगिरि पर्वत
गिरि
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भौगोलिक स्थिति संपादित करें

यह उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है। कामदगिरि का कुछ भाग उत्तर प्रदेश [2]में और कुछ हिस्सा मध्य प्रदेश में आता है। इसलिए कानून व्यवस्था दोनों प्रदेश अपने-अपने क्षेत्र में सम्हालते हैं। [3]कानपुर सेंट्रल स्टेशन से चित्रकूट धाम (कर्वी ) रेलवे स्टेशन की दूरी 213 किलोमीटर है।[4]

पौराणिक महत्व संपादित करें

इसके दर्शन और परिक्रमा मात्र से दर्शनार्थी -श्रद्धालु के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। इसीलिये इसे कामदगिरि कहते हैं। इस गिरिराज का यों तो महत्व अनादिकाल से चला आ रहा है लेकिन भगवान राम द्वारा वनवास अवधि में लघु भ्राता लक्ष्मण और जनक नंदिनी सीता के साथ यहां प्रवास करने पर इसकी महत्ता और बढ़ गयी।

मेला चित्रकूट संपादित करें

वैसे तो पूरे वर्ष यहां दर्शनार्थियों का आवागमन लगा रहता है लेकिन चैत्र मास में रामनवमी, दीपावली और प्रति मास की अमावस्या को यहां लगने वाले मेले के अवसर पर अत्यधिक भीड़ होती है। दीपावली चित्रकूट में दीपावली का मेला सबसे बड़ा मेला होता है यहां लाखों की तादात में श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं और कामदगिरि की परिक्रमा लगाते हैं तथा दीपदान करते हैं । वास्तव में दीपावली में यहां का दृश्य देखने योग्य होता है, दीपावली में तरह-तरह लोग, तरह-तरह की चीजें तथा तरह-तरह की कलाकृति देखने को मिलती है। यह मेला धनतेरस से शुरू होता है तथा दीपावली के 1 दिन बाद तक चलता है।

कामदगिरि परिक्रमा संपादित करें

चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण स्थान कामदगिरि है। रामघाट से स्नान करने के बाद अधिकतर लोग कामदगिरि के मुख्य दरवाजे पर आते हैं और यहीं से परिक्रमा प्रारम्भ करते हैं। यात्रा रामघाट से प्रारम्भ होती है। रामघाट वह घाट है जहां प्रभु राम नित्य स्नान करते थे। मन्दाकिनी और पयस्विनी के संगम स्थल रामघाट पर ही श्री राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। यह वही प्रसिद्ध घाट है जिसके बारे कहा गया है कि :

  • चित्रकूट के घाट पर भई सन्तन की भीड़ ,तुलसीदास चन्दन घिसें तिलक देत रघुवीर।

चित्रकूट आने वाले श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की पांच किलोमीटर की परिक्रमा कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। इसी पर्वत के तल पर कामतानाथ का मंदिर स्थित विध्य पर्वत पर हनुमान धारा में हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। कहा जाता है कि यह धारा श्रीराम ने लंका दहन से आये हनुमान के आराम के लिए बनवाई थी। हनुमान धारा के ऊपर सीता रसोई है।

परिक्रमा मार्ग संपादित करें

कामदगिरि परिक्रमा का मार्ग बहुत ही स्वच्छ और सुंदर है । लोगों को परिक्रमा लगाते समय किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता । कामदगिरि परिक्रमा लगाते समय अनेकों प्राचीन मंदिर मिलते हैं। कामदगिरि परिक्रमा की पूरी दूरी लगभग 5 किलोमीटर है। कामदगिरि के चारों ओर पक्का परिक्रमा मार्ग बना हुआ है। इस मार्ग की परिमाप लगभग ५ किलोमीटर है। परिक्रमा मार्ग के चारों ओर अनेक देवालय बने हुए हैं जिनमें राममुहल्ला , मुखारविन्दु , साक्षी गोपाल , भारत-मिलाप (चरण-पादुका ) एवम पीली कोठी अधिक महत्वपूर्ण हैं।

कामदगिरि परिक्रमा मार्ग में भरत मिलाप मंदिर तथा लक्ष्मण पहाड़ी भी है , लक्ष्मण पहाड़ी में लोग सीढ़ियों तथा रोप-वे से भी जाते हैं लक्ष्मण पहाड़ी से कामदगिरि पर्वत का बहुत ही मनोहर दृश्य दिखता है ।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. http://www.jagran.com/uttar-pradesh/chitrakoot-11346792.html
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अगस्त 2016.
  3. "Stampede in Chitrakoot 11582179". Jagran.com. 2014-08-26. मूल से 10 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2016-08-22.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अगस्त 2016.