भटकन, शैल रस्तोगी द्वारा रचित एकांकी नाटक है। यह एकांकी बहुत ही यथार्थवादी है। इस एकांकी में रस्तोगी जी ने बच्चों के मनस्थिति के बारे में बताया है।

श्रीमती शैल रस्तोगी का जन्म १ सितंबर १९२७ को मेरठ में हुआ था। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए किया और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी के निर्देशन में अपना पीएचडी किया। उन्होंने रघुनाथ कन्या महाविद्यालय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) में ३४ वर्षों तक अध्यापन के पश्चात ससम्मान अवकाश प्राप्त किया। अब पूरी तन्मयता से स्वतंत्र लेखन करतीं हैं। उनकी प्रकाशित कृतियाँ है: एकांकी: भटकन, 'एक जिंदगी बनजारा' (उत्तर प्रदेश के राज्य पुरस्कार से सम्मानित), 'बिना रंगों के इंद्रधनुष' और 'सावधान सासूजी!'। गीत : 'पराग', 'जंग लगे दर्पण', 'मन हुए हैं कांच के' और 'धूप लिखे आखर'। 'चांदनी धरती पालागन' (प्रेस में)। हाइकु : 'प्रतिबिंबित तुम', 'सन्नाटा खिंचे दिन', 'दु:ख तो पाहुन हैं', 'बांसुरी है तुम्हारी' और 'अक्षर हीरे मोती'।

 
शैल रस्तोगी- "भट्कन" के रचनाकार्

यह एकांकी उन माता-पिताओं पर टिप्पणी करते है जो अपने काम के कारण अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। आजकल के महंगाई के कारण पति-पत्नी दोनों को काम करना पड़ता है लेकिन बच्चे इस बात को समझ नहीं पाते हैं। उन्हें लगता है कि माता-पिता उनसे प्यार नहीं करते और वे विरोध करने लगते है, घर से भाग जाने के बारे में सोचते है और कभी-कभी हानिकारक काम भी कर बैठते हैं, लेकिन यह बात सही नहीं है। इस एकांकी में दो बच्चे नीरु और मनुज है जो अपने माता-पिता से शिकायत करते है कि उन्हें यह घर घर नहीं लगता और वह उसमें अकेले रहकर दबा-दबा महसूस करते हैं। नीरू अपने पिता से यह कहती है कि "घर एक थाई है" जिसका मतलब है कि जिस प्र्कार खेल में जीत हासिल करके खिलाडी बहुत खुश होते है, उसी प्र्कार घर में घुसकर भी एक व्यक्ति को ऐसा ही खुश होना चाहिए, तभी एक घर घर कहलाने के लायक है। मनुज को यह भी लगा कि उसके माता-पिता उसके जन्म-दिन तक भूल गये थे लेकिन उसके माता ने उसे पुलोवर और पिता ने उसे घडी देकर यह बात गलत साबित कर दिया और यह कहा कि वे उनसे बहुत प्यार करते है और नौकरी तो उनकी मजबूरी है। बच्चों के इस मनस्थिति के लिये कुछ हद तक माता-पिता भी ज़िम्मेदार है क्योंकि समयाभाव के कारण वे अपने बच्चों को सही मार्गदर्शन नहीं दे पाते हैं। इसलिये माता-पिता को हमेशा कुछ समय बच्चों के साथ बिताना चाहिए। घर के अंदर का माहौल हमेशा अच्छा रखने की कोशिश करना चाहिए।

 
सुखी परिवार

दिवाकर- नीरू और मनुज के पिता। वह एक दफ्तर में काम करता है। उन्हें बच्चों के साथ सख्त व्यवहार बिल्कुल पस्ंद नहीं है और उसका यह मानना है कि बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए।

कला- दिवाकर की पत्नी और नीरू और मनुज की माता। वह एक कालेज में पढ़ाती है। ऊपर से सख्त है पर अंदर से नरम है। बच्चे पढ़ाई से भटक जाए, यह वह कभी नहीं चाहती है।

नीरू- दिवाकर और कला की बेटी। उन्हें पढ़ाई से ज़्यादा कालेज में होने वाले नाटकों में रुचि है। वह बहुत अच्छी नाटक करती है।

मनुज- दिवाकर और कला का बेटा। उसे पढ़ाई में एकदम रुचि नहीं है और दो बार फेल हो चुके है। उसे साईकिल से इधर-उधर घूमना और अपने दोस्तों से मिलना अच्छा लगता है।

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