भदावर
- भदौरियो के १९४७ से पहले का राजसी साम्राज्य का नाम है ! यह क्षेत्र उत्तर भारत में आगरा,इटावा,जालौन,फ़िरोज़ाबाद, ग्वालियर,भिंड,मुरैना तथा यमुना, चम्बल, पहूज, सिन्ध, बेतवा तथा क्वांरी के खारों में फैला क्षेत्र भदावर कहलाता है ! भदावर साम्राज्य के चार स्थाम्बो में से एक है। उनकी गिनती जयपुर, जोधपुर, बूंदी और मेवाड़ के महाराजाओं के साथ होती है ! भदौरिया राजाओं का मुख्य राज्य दिल्ली और आगरा के मध्य स्तिथ फ़िरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश था जिसे उस समय "चाँदवार" कहा जाता था। बाद में इसका नाम मुगल सम्राट अकबर के काल में बदल कर फ़िरोज़ाबाद कर दिया गया। भदौरिया राजाओ ने अपने लंबे शासनकाल में कई किलों, महलों और मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें से ज़्यादातर आज के उत्तर प्रदेश राज्य में स्तिथ हैं। इनमें प्रमुख हैं पिनाहट का किला, बरसला का किला, बटेश्वर का किला, कोटरमा का किला, कचौराघाट का किला, नौगांव का किला आदि। मंदिरो में आगरा ज़िले में स्तिथ बटेश्वर नाथ का मंदिर प्रमुख है जो कि यमुना नदी के किनारे 101 मंदिरो के साथ सबसे बड़ा शिव मंदिर प्रांगण है। इसके अलावा एक दुर्ग मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले में स्तिथ है जिसे "अटेर दुर्ग" कहा जाता है। भदावर - महाभारत काल
भदावर महाभारत काल में प्राचीन भद्रावर्त राज्य था। महत कांतार (हतकांत) विंध्याटवी (अटेर) तथा विंध्यकानन (भिंड) इसके एतिहासिक साक्षी हैं। पांडव काल में भद्रावर्त राज्य एक समृद्ध गणराज्य था। यहाँ के क्षत्रिय विपुल साधन सम्पत्र थे यहाँ के राजकुमार बहुत सा रत्न धन सुवर्ण लेकर युधिष्ठिर यज्ञ में उपस्थित हुए थे और उसे यज्ञ की भेंट किया। अथर्वद के गोपाल तापिनी उपनिषद में गोपाल के प्रिय दो बनों में भद्रवन का उल्लेख है जो यमुना के तट पर था। द्वेबने स्त: कृष्णवनं भद्रवनं- पुण्यानि पुष्य तमानि तेष्वेव देवा स्तिष्ठन्ति सिद्धा: सिद्धिं प्राप्ता:।। 33।।। भदावर के भदवरिया या भदौरिया क्षत्रिय साहसी और प्रजापालक रहे हैं।
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