यज्ञ में हवन के पश्चात हविष्य की बची बुझी हुई भस्म सर्वकार्य सिद्धि का साधन मानी गई है। इसको पूरे शरीर में लगाकर नहाने से स्वास्थ्य मिलता है तथा त्वचा के रोगों से मुक्ति होती है। ऐसा भी कहा गया है कि यह असाध्य रोगादि दुर्घटनाओं से पीडतजनों को अकाल मृत्यु का भय नहीं होने देती। इस भस्म को भस्मी भी कहा जाता है।[1] मनुस्मृति में स्नान के सात प्रकार बताए गए हैं। इनमें से एक स्नान भस्म से भी किया जाता है।[क]

टीका टिप्पणी

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   क. ^ वेद स्मृति में स्नान भी सात प्रकार के बताए गए हैं। मंत्र स्नान, भौम स्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्य स्नान, करुण स्नान तथा मानसिक स्नान जो क्रमशः मंत्र, मिट्टी, भस्म, गौखुर की धूल, सूर्य किरणों में, वर्षाजल, गंगाजल तथा आत्मचिंतन द्वारा किए जाते हैं।[2]

  1. "यज्ञ का स्वरूप". खबरएक्सप्रेस.कॉम. मूल (एचटीएमएल) से 28 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अगस्त 2007. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "हमारी संस्कृति में सात का महत्व". अभिव्यक्ति. मूल (एचटीएमएल) से 28 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 अगस्त 2007. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)