भांड पाथेर (या भांड पाथर) कश्मीर की लोक कला है। भांड पाथेर सदियों से कश्मीर के लोगों का मनोरंजन करती आ रही है। जब प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चलन नहीं था तो उस समय कश्मीरी समाज में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संदेश प्रसारित करने का अपना अनोखा तरीका था। व्यंग्यात्मक लहजे में पेश की जाने वाली कश्मीर की लोक कला 'बांध पाथेर' राजनीतिक प्रतिरोध और ज्वलन्त मुद्दों को अपने अनोखे अंदाज में उठाती थी।

भाण्ड पाथर

व्यंग और नकल उतारने हेतु इसमें हँसने-हँसाने को प्राथमिकता दी जाती है।संगीत के लिए सुरनाई , नगाड़ा और ढोल इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। मूलतः भांड कृषक वर्ग के होते हैं इसलिए इस नाट्यकला पर कृषि-संवेदना का गहरा प्रभाव है।

लोक कला के इस माध्यम में घाटी के संघर्ष, भ्रष्टाचार और दूसरी सामाजिक बुराइयों का चित्रण किया जाता है। इसके साथ ही साथ ये समाज की कड़वी सच्चाइयों और शिकायतों को भी सरकार और लोगों के सामने लाती है। भांड पाथेर के नाटकों में अधिकांशतः विचारोत्तेजक वेश-भूषा, संवादों, भाव-भंगिमाओं और भावनाओं का प्रयोग किया जाता है। ये नाटक घंटों लोगों का ध्यान बांधे रखते हैं। लोकप्रियता भांड पाथेर में आमतौर पर कथ्य का अहसास कराने वाले पोशाकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे लोगों का घंटों ध्यान बंधा रहता है।

भांड पाथेर हिंदू शासकों के समय में हिंदू मंदिरों में खेला जाता था। कल्हण अपनी रचना 'राजतरंगिणी' में उस समय में इसकी लोकप्रियता का वर्णन करते हैं।

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