भाई लहाना उर्फ़ गुरु अंगद देव - ( दि. १० अप्रैल १५०४ - दि. ८ अप्रैल १५५२ ) (गुरू अंगद देव भाई लहाना बणजारा से सिखो के एक महान गुरू बने) (सतगुर नानक साहिब जी ने ७ सितम्बर १५३९ को गुरुपद प्रदान तबिसे वे सिखो के दुसरे गुरु कहलाये)। गुरु अंगद देव जि के वंशही गुरु गोबिंद सिंह जी है। गुरू अंगद देव महाराज सृजनात्मक व्यक्तिमत्व, अध्यात्मिक और क्रियाशीलता थे। उनका जन्म एक साधारण बणजारा व्यापारी समुदाय में हुआ। उनका जन्म हरीके नामक तांडे में, जो फिरोज़पुर, पंजाब में आता है, वैसाख वदी १, (पंचम्‌ वैसाख) सम्वत १५६१ (१० अप्रैल १५०४) को हुआ था। गुरुजी एक व्यापारी श्री फेरू बंणजारा जी और माता रामो देवी के पुत्र थे। उनके दादा जी नारायण दास थे, उनका आदि निवास मत्ते-दी-सराय, जो मुख्तसर के पास में था। भाई लहाना ऊर्फ गुरु अंगद देव जी के पिता बाद में इसी स्थान पर आकर निवास करने लगे।

जीवन -

सन १५२० में उनका विवाह माता खीवीं जी से हुआ। उनके दो पुत्र - दासू जी एवं दातू जी तथा दो पुत्रियाँ - अमरो जी एवं अनोखी जी हुई।


ठिकाण (ठीकाना) -

अमृतसर से लगभग २५ कि॰मी॰ दूर स्थित खडूर साहिब नामक गाँव में बस गया, जो कि ब्यास नदी के किनारे स्थित था।


नानक जी से भेट -

भाई लहना जी ने भाई जोधा जी (सतगुर नानक साहिब के अनुयायी भाई मनसुक के भाई) के मुख से गुरू नानक साहिब जी के शबद सुने और शब्द में कहे गए गुरमत के फलसफे से वो बहुत प्रभावित हुए। लहना जी निर्णय लिया कि वो सतगुर नानक साहिब के दर्शन के लिए करतारपुर जायेंगे। उनकी सतगुर नानक साहिब जी से पहली भेंट ने उनके जीवन में क्रांति ला दी। सतगुर नानक ने उन्हें आदि शक्ति या हुक्म का भेद समझाया और बताया की परमेशर की शक्ति कोई औरत या मूर्ति नहीं है। बल्कि वो रूप हीन है और उसकी प्राप्ति सिर्फ़ अपने अंदर से ही की जा सकती है। सतगुरु नानक से भाई लहने ने आत्मज्ञान लिया जिसने उन्हें पूर्ण रूप से बदल दिया।

वो सतगुर नानक साहिब की विचारधारा से एक व्यापारी बंणजारा सिख बन गया एवं करतारपुर में निवास करने लगे। वे सतगुर नानक साहिब जी के अनन्य सिख थे। सतगुर नानक देव जी के महान एवं पवित्र मिशन के प्रति उनकी महान भक्ति और ज्ञान को देखते हुए सतगुर नानक साहिब जी ने ७ सितम्बर १५३९ को गुरुपद प्रदान किया और गुरमत के प्रचार का जिम्मा सौंपा गया। सतगुर नानक के लडके इस बात से नाराज हुए और गुरु घर के विरोधी बन गए।

गुरू साहिब ने उन्हें एक नया नाम अंगद (गुरू अंगद साहिब) दिया। उन्होने गुरू साहिब की सेवा में ६ से ७ वर्ष करतारपुर में बिताये।


विशेषताएं -

भाई लहाना उर्फ़ गुरु अंगद देव - ये बंणजारा समुदाय से होणेसे गुरु नानक देवजी को उदासिया करणे मे सहायता मिली बंणजारा समाज सालों से देश विदेश व्यापार करते थे। उन्हे हर तऱ्हाके रास्ते, शहर और देश की जानकारी थी। गुरु नानक के साथ जो यात्रा मे वुनके साथ बणजारा भाई थे वो भी व्यापारी थे इस वजसे वो पुरे विश्व का उदासिया करने में सफल हुये। उदासिया में भाई मनसुख बणजारा जो भाई लहाना जी के रिस्तेदार थे। वे भी नानक जी के धर्म प्रचार एव प्रसार मे सहायक ठैरे। भाई मनसुख बणजारा ही सिख पंथ के पहले अनुयाई थे।