तीर्थ स्थापना

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विक्रम की सातवीं शताब्दी में दियावट पट्टी में स्थित बेसाला (विशाला) नामक कस्बा था | जिसमें श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनों के सैकड़ों समृद्ध परिवार थे । उस विशाला नगरी में भव्य विशाल सौध शिखरी जिन मन्दिर का निर्माण करवाकर सम्वत् 813 मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी सोमवार को श्री महावीर प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा की गई । प्रतिष्ठाकारक आचार्य भगवन्त किस गच्छ के और कौन थे, इसका प्रमाण दर्शक लेख प्रतिमा या जिन मन्दिर में नहीं है । मात्र जिनालय के एक स्तम्भ पर ‘813 श्री महावीर’ इतना लेख उत्कीर्ण है | उसी के आधार पर उक्त बात लिखी गई है ।

 
Shri Bhandavpur Tirth photo

कालान्तर में मेमन धाड़ेतियों के धाड़ के करणा मन्दिर एवं विशाला नगरी खण्डहर बन गई | दैवयोग से प्रभु महावीर की प्रतिमा अखण्ड रही | निकटवर्ती कोमता ग्रामवासी श्रीपालजी संघवी आदि जैन संघ श्री वीर प्रभु को लेने बेसाला (वर्तमान  में व्याला) आये । श्री वीर प्रभु को बैलगाड़ी में बिराजित कर कोमता ग्राम की ओर प्रस्थान किया, परन्तु जब बैलगाड़ी नहीं चली तब सभी ने स्तुति पूर्वक वीर प्रभु को प्रार्थना की कि ‘हे प्रभु ! आपकी इच्छा हो वहाँ पधारिये । हम आपके पीछे –पीछे चलेंगे | ऐसी प्रार्थना कर बैलों की रस्सी खोल दी । स्वत: बैल चलने शुरू हुए जो वर्तमान के पोषाणा मेंगलवा होकर भाण्डुक वन (वर्तमान में भुण्डवा) जंगल में बैलगाड़ी आकर रुक गई । पुनः वहाँ से आगे चलाने के लाख प्रयत्न किए परन्तु सभी प्रयास निष्फल हुए | पिछली रात्रि में श्रीपालजी संघवी को स्वप्न में अधिष्ठायक देव ने कहा कि ‘प्रभु वीर की यहीं बिराजमान होने की इच्छा है । अत: तेरी शक्ति मुजब चैत्य बनवाकर प्रभु वीर की प्रतिमाजी स्थापित कर, उनकी सेवना पूजना करने से तुम्हारी भी सभी ओर से वृद्धि होगी | ‘श्रीपालजी संघवी ने प्रात: सभी को स्वप्न सम्बन्धी आदेश कह सुनाया | सभी ने एकमत बनकर वि. सं.1065 में ऊँची कुर्सी पर शिखरबद्ध  मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया । वि.सं.1100 के माघ शुक्ला पंचमी गुरुवार के शुभ दिन शुभ लग्नांश में विधिपूर्वक भगवान श्री महावीरस्वामीजी की प्रभावशाली प्राचीन प्रतिमाजी को गादिनशीन (प्रतिष्ठित) की और शिखर पर स्वर्णकलश–ध्वजदण्ड स्थापित किए ।


अद्यावधि मूल मन्दिर पर कोमता निवासी संघवी परिवार ध्वजारोहण करते हैं । श्री श्रीपालजी वर्धमान गोत्रीय परिवारजन आज भी अपने बच्चों के झडुलिए ( बाल ) यहाँ उतारते हैं और वर्ष में एक बार तीर्थ-यात्रार्थ अवश्य आते हैं । उनके जन-धन व्रद्धि का यही मुख्य कारण है ।

 
Shri Bhandavpur Tirth Old Photo


 
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वीर प्रभु की प्रभाविकता एवं वर्तमान में प्रचलित मान्यता

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  1. श्री भाण्डवपुर तीर्थ ( भुण्डवा ) निवासी सभी आमजन श्री महावीर प्रभु के प्रति अनन्य श्रद्धा-भक्तियुक्त होकर उपासना करते हैं ।
  2. विवाह के समय सभी ग्राम निवासी छेड़ा-बन्दी जुहार ( दर्शन ) करने आते हैं ।
  3. प्रथम बिलोणे का घी श्री महावीरजी के दीपक में दिवेल के रूप में अर्पण किया जाता है ।
  4. आषाढ़ सुदी 14 (चौमासी चौदस) के दिन महावीरजी का अगता (कृषि हलोतरा न करना) का पालन करते हैं ।
  5. भाद्रवा की पूनम को प्रति घर से गोला-साकर ( नैवेद्य ) के रूप में चढ़ाने सभी मन्दिर आते हैं ।
  6. नईफसल में से महावीरजी का अंश मानकर कबूतरों को दाना डालते हैं ।
  7. भगवान महावीर के नाम से ओरण (जंगल) है जिसके कटाई पर गाँवसाही प्रतिबन्ध (बन्दा) है ।
  8. पर्व त्यौहार आदि विशेष प्रसंगों पर एवं मनौति पूर्ण होने पर सभी जन दर्शन करने आते हैं।

तीर्थ जीर्णोद्धार

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इस तीर्थ का प्रथम जीर्णोद्धार वि. सं. 1359 में और दूसरा 1654 में श्री दियावट पट्टी श्वेताम्बर जैन श्रीसंघ की ओर से करवाया गया ।

 तृतीय जीर्णोद्धार हेतु विश्वपूज्य प्रातः स्मरणीय प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.का विचरण करते हुए वि.सं.1955 में यहाँ पदार्पण हुआ । तीर्थ यात्रा कर श्री वीर प्रभु की अतिशय सम्पन्न प्रभाविकता का स्वयं ने प्रत्यक्ष अनुभव कर वीर प्रभु को मूल गादी पर यथावत् रखकर तीसरे जीर्णोद्धार की मंगल प्रेरणाश्री दियावट पट्टी श्रीसंघ को प्रदान की। इस तीर्थ के प्रति जितनी श्रद्धा -भक्ति एवं विश्वास रखोगे उतना ही तुम्हारा (संघ) का विकास-विस्तार एवं उन्नति होगी । ऐसा मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया ।

चर्चाचक्रवर्ती श्रीमद्विजय धनचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा., उपाध्यायप्रवर श्रीमद् मोहनविजयजी म.सा. एवं शान्तमूर्ति श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने तीर्थ जीर्णोद्धार का लक्ष्य बनाए रखा । इनकी निश्रा में होने वाले धार्मिक आयोजनों के समय फण्ड एकत्रित करने की प्रेरणा देते रहे । क्रमिक विकास शुरू हुआ ।

विक्रम सम्वत 1988 में परम पूज्य गम्भीर-गणनायक, व्याख्यान  वाचस्पति, भाण्डवपुर तीर्थोद्धार श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में मूल मन्दिर गूढ़ मण्डप व चार देवकूलिका सहित पंचतीर्थि  स्वरूप मन्दिर तैयार हो जाने पर वि.सं. 2010 ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में एवं आपश्री के सुशिष्य मुनिराज श्री विद्याविजयजी म.सा.के कुशल- मार्ग निर्देशन में महामहोत्सव पूर्वक मूल मन्दिर, पर ध्वज दण्ड स्थापन तथा जिन बिम्ब आदि गादिनशीन ( प्रतिष्ठित ) किए गए एवं प्राचीन परकोटानुमा धर्मशाला का निर्माण एवं तीर्थ विकास का कार्य चलता रहा ।

वि.सं. 2033 में परम पूज्य दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर म.सा. की जन्म एवं स्वर्गारोहण तिथि पौष शुक्ला गुरु सप्तमी कविरत्न आचार्यदेव श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में प्रथमबार मनाई गई । तब से भाण्डवपुर में प्रतिवर्ष भव्य सुन्दर आयोजन पूर्वक गुरु-सप्तमी मनाई जा रही है । उस शुभ प्रसंग पर पूज्य आचार्यश्री ने भाण्डवपुर तीर्थ में भव्यातिभव्य श्री राजेन्द्रसूरि दादावाड़ी बनाने की मंगल प्रेरणा प्रदान की थी। न्यायाम्भोनिधि आचार्यदेव श्री तिर्थेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य-देव श्री लब्धिचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में यहाँ धार्मिक आयोजन समय-समय पर होते रहे । वि.सं. 2037 में पूज्य कविहृदय आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की शुभाज्ञा से महातपस्वी योगिराज श्री  शान्तिविजयजी म.सा. एवं आपश्री के शिष्यरत्न बालमुनि श्री जयरत्नविजयजी म.सा. आदि ठाणा-2 का सर्वप्रथम चातुमार्स श्री भाण्डवपुर तीर्थ में श्री दियावट पट्टी चौवीसी जैन संघ की ओर से हुआ । तप-जप एवं आराधना के अनेक भव्य कार्यक्रम हुए । मरुधर क्षेत्र में ऐतिहासिक चातुर्मास हुआ । इसी चातुर्मास में सामाजिक चेतना बढ़ाने एवं तीर्थ की सुषुप्त व्यवस्था को दूर करने के लिए मुनिराज श्री जयरत्नविजयजी म.सा. ने अथक प्रयत्न कर श्री महावीर जैन श्वेताम्बर पेढ़ी ( ट्रस्ट ) का गठन किया । चातुर्मास के उपलक्ष्य में कार्तिक शुक्ला 10 को नूतन धर्मशाला का शुभारम्भ ( मुहूर्त ) किया । पश्चात् ट्रस्ट के माध्यम से निरन्तर तीव्रगति से निर्माण कार्य चलते रहे । श्री राजेन्द्रसूरि जैन ज्ञान मन्दिर, श्री वर्धमान-राजेन्द्र जैन भोजनशाला, श्री यतीन्द्र भवन उपाश्रय, पानी की टंकी, स्टोर रूम, श्री वर्धमान-राजेन्द्र चिकित्सालय, श्री महावीर अहिंसा स्मारक चौराहा, चबूतरा, दो मंजिली धर्मशाला, ट्रस्ट मण्डल हॉल आदि अनेक निर्माण कार्य तीर्थ-यात्रियों के सुविधार्थ किए गए । पूर्व में श्री महावीर जैन कारखाना भुण्डवा के नाम से सामाजिक-धार्मिक  व्यवस्थाओं का संचालन होता था ।

(1)  परम पूज्य महातपस्वी, वचनसिद्ध गुरुदेव श्री शान्तिविजयजी म.सा. के आदेशानुसार भाण्डवपुर तीर्थ में सूरिपद प्रदान पाटोत्सव करने के लिए राजस्थान प्रान्त से श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्रीसंघ के केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य श्री जावन्तराजजी शाहजी आदि ने प्रत्येक सामाजिक बैठकों में प्रमुख भूमिका निभाई, जिसके फलस्वरूप भाण्डवपुर तीर्थ को पाटगादी का महिमाशाली स्थान प्राप्त हुआ ।

वि.सं. 2040 माघ शुक्ला त्रयोदशी को समस्त भारतवर्षीय श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन श्रीसंघ की विशाल उपस्थिति में एवं परम पूज्य योगिराज, संयमवयः स्थविर श्री शान्तिविजयजी म.सा. की शुभनिश्रा में शान्तमूर्ति, कविरत्न आ. भ. श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के पट्टधर के रूप में साहित्य – मनीषी मुनिराज श्री जयन्तविजयजी म.सा. वर्तमान में आचार्यदेव श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. को ‘आचार्य-पद’ प्रदान किया गया एवं महातपस्वी योगिराज श्री शान्तिविजयजी म.सा. को ‘संयमवयः स्थविर’ पद प्रदान किया गया ।

(2)  परम पुण्यसम्राट राष्ट्रसन्त श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. के सुशिष्यरत्न मुनिराज श्री नित्यानन्द विजयजी म.सा. एवं कृपासिन्धु योगिराज संयमवयः स्थविर श्री शान्ति विजयजी म.सा. के. सुशिष्यरत्न मुनिराज श्री जयरत्नविजयजी म.सा. को पुण्यसम्राट श्री के पट्टधर द्वय घोषित किए गए । दि.18-4-2017 को अ.भारतीय त्रिस्तुतिक जैन संघों के वरिष्ठजनों एवं मुनिराजों की दोपहर 2 से 4 बैठक हुई । यहाँ उपस्थित सभी श्रमणिवृंद की सहमति से पट्टधर द्वय घोषित किए गए ।

घोषणा के अनुरूप पट्टधर द्वय को वि.सं. २०७३ वैशाख कृष्णा अष्टमी बुधवार दि. 19-4-2017 को प्रातः शुभ वेला में आचार्य श्रीमद् विजय नित्यसेन सूरीश्वरजी एवं आचार्य श्रीमद् विजय जयरत्न सूरीश्वरजी म.सा. नाम घोषित किया गया । विधिविधान उपस्थित वडील मुनिराज श्री आनन्द विजयजी म.सा. ने करवाया

सुरिपद प्रदान अमुमोदन महोत्सव एवं पुण्यसम्राट श्री के देवलोक गमन निमित्त अष्टान्हिका महोत्सव दि.11-5-2017 से 18-5-2017 पर्यन्त तक आयोजित किया गया ।

श्री राजेन्द्रसूरी जैन दादावाड़ी

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भारत में द्वितीय कमलाकर भव्य शिल्पकलायुक्त  श्री राजेन्द्रसुरी जैन दादावाड़ी गुरु मन्दिर का निर्माण करवाकर वि.सं. 2045 माघ शुक्ला दशमी की परम पूज्य राष्ट्रसन्त श्रीमद्विजयजी जयन्तसेन-सूरीश्वरजी म.सा. एवं प. पूज्य कृपासिन्धु, योगिराज, संयमवयः स्थविर श्री शान्तिविजयजी म.सा. की शुभनिश्रा में दो सौ एक जिन बिम्बों की अंजनशलाका एवं गुरु मन्दिर का भव्य एतिहासिक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पत्र हुआ |

पुण्य भूमि

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(1)  वि.सं. 2053 ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को परम पूज्य महातपस्वी, योगिराज, संयमवयः स्थविर श्री शान्तिविजयजी म.सा. का देवलोक गमन हुआ । हजारों गुरु भक्तों की विशाल उपस्थिति में एवं प. पू. राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में अन्तिम संस्कार हुआ । समाधि मन्दिर बनाने के निर्णय की घोषणा हुई । इस आयोजन में दो आश्चर्य सभी के मुँह पर थे-

भीषण गर्मी के बावजूद हजारों की संख्या में गुरु भक्तों का आवागमन ।

सैंकड़ों  भँवरों के छत्ते ( मधपुडे ) होते हुए भी अपूर्व शान्ति रही ।

(2)  वि.सं. 2073 वैशाख कृष्णा 5 दि.16-4-2017 रविवार मध्यरात्रि 11.30 को परमपूज्य साहित्य मनीषी प्ररवखक्ता आशुकवि, राष्ट्रसन्त पुण्यसम्राट श्रीमद् विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. का देवलोक गमन भाण्डवपुर तीर्थ में हुआ ।

अग्निसंस्कार वैशाख कृष्णा सप्तमी दि. 18-4-2017 मंगलवार मध्यान्ह 12.30 ( विजय मुहूर्त ) में विशालजन मेदिनी की उपस्थिति में हुआ ।

आप श्री के अन्तिम दर्शन करने के लिए भारत के सभी प्रान्तों से विशाल संख्या में अनुमानित लगभग 45 से 50 हजार के बीच गुरु भक्तों का आवागमन हुआ । गुरु शान्तिविजय समाधी मन्दिर के समीप विशाल भू भाग पर आप का देह पंचतत्व में विलीन किया गया । समाधि स्थल पर आरसोपल का शिल्पकला मंडित सुन्दर समाधि मंदिर निर्माण शुरू है ।

आप श्री का शिष्य समुदाय एवं विशाल संख्या में लगभग 200 की संख्या में श्रमण – श्रमणि वृन्द यहाँ उपस्थित था । विशाल शोकसभा हुई जिस में उपस्थित सभी ने नवकारमंत्र जाप कर श्रद्धांजलि अर्पित की । आप श्री के शिष्यरत्न मुनिराज श्री नित्यानन्द विजयजी म.सा. की शुभनिश्रा में गुणानुवाद सभा आयोजित हुई ।

गुरु श्री शान्तिविजयजी समाधी मन्दिर प्रतिष्ठा

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वि.सं. 2059 ज्येष्ठ शुक्ला दसमी श्री महावीरस्वामी भगवान के मन्दिर की 50वीं ध्वजा एवं श्री शान्तिविजयजी समाधी मन्दिर प्रतिष्ठा सह श्री मुनिसुव्रतस्वामी आदि 108 जिन बिम्बों की अंजनशलाका दस दिवसीय महामहोत्सव पूर्वक प.पू. राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में एवं प्रवचनकार तीर्थप्रेरक मुनिराज श्री जयरत्नविजयजी म.सा. के कुशल मार्गदर्शन में यह प्रतिष्ठा महोत्सव ऐतिहासिकत एवं भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ । इस आयोजन में भोजन-आवास, पंचकल्याणक महोत्सव आदि की अतीव प्रंशसनीय व्यवस्था रही ।

जीर्णोद्धार निर्णय

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मुलनायक श्री महावीरस्वामी भगवान के मन्दिर की ऐतिहासिकता को बढ़ावा देने के लिए भव्य सुंदरतम शिल्पकला युक्त रूप प्रदान करने के लिए विक्रम सम्वत् 2053 फाल्गुन शुक्ला 11 दिनांक 19-03-1997 बुधवार को श्री महावीर जैन श्वेताम्बर पेढ़ी ( ट्रस्ट ) एवं श्री दियावट पट्टी चौवीसी जैन संघ की संयुक्त साधारण बैठक प.पू. राष्ट्रसन्त श्रीमद्विजयजी जयन्तसेन-सूरीश्वरजी म.सा. एवं प.पू. योगिराज, संयमवयः स्थविर श्री शान्तिविजयजी म.सा. की शुभनिश्रा में एवं प्रेरणा से श्री वर्धमान-राजेन्द्र जैनागम मन्दिर बनाने का सर्व सम्मति से निर्णय किया गया । हर कार्य योग-संयोग के बिना नही किया जा सकता । कुछ वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् पुनः वि.सं. 2063 फाल्गुन शुक्ला 12 बुधवार दिनांक 28-02-2007 को प.पू. मुनिराज श्री जयरत्नविजयजी म.सा. की शुभनिश्रा में एवं शाहजी श्री सुमेरमलजी जुगराजजी की अध्यक्षता में श्री महावीर जैन श्वेताम्बर पेढ़ी एवं दियावट पट्टी चौवीसी जैन संघ की साधारण बैठक हुई, जिसमें जीर्णोद्धार कार्य शुरू करने के साथ श्री मूल मन्दिरजी को यथावत रखते हुए ‘श्रीवर्धमान- राजेन्द्र जैनागम मन्दिर’ निर्माण कार्य प्रारम्भ करने का सर्व सम्मति से निर्णय कर नये प्रारूप को स्वीकृत किया गया । इस ऐतिहासिक निर्णय को सुनकर सभी प्रवासी बन्धुओं में अपार हर्ष का वातावरण छा गया ।

जीर्णोद्धार शुभारम्भ

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जिस शुभ घड़ी की सभी को प्रतीक्षा थी वह मंगल घड़ी वि.सं. 2063 द्वितीय ज्येष्ठ शुक्ला दशमी सोमवार दिनांक 25-06-2007 के शुभ दिन परम पूज्य, प्रवचनकार, तीर्थ प्रेरक, मुनिराज श्री जयरत्नविजयजी म.सा. की शुभनिश्रा में श्री महावीर जैन श्वेताम्बर पेढ़ी अध्यक्ष श्री सुमेरमलजी जुगराजजी शाहजी ने तीर्थ जीर्णोद्धार का मुहूर्त किया । आगम मन्दिर निर्माण कार्य दो वर्ष की अल्पसमयावधि में 45 गंभारा से युक्त आगम मन्दिर निर्माण कार्य पूर्ण हुआ तथा 45 आगम ताम्र पत्रों पर स्वर्णपरत चढ़ाने का कार्य पूर्ण हुआ है । श्री महावीर 52 जिनालय का निर्माण कार्य द्रूत गति से शुरू है । मूल त्रिशिखर शिलान्यास दि. 07-10-2013 को हुआ है । त्रिशिखरों का निर्माण भी पूर्ण हो चुका है ।

तीर्थ योजनाएँ

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परम पूज्य गच्छाधिपति श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी म.सा. की शुभनिश्रा में तथा तीर्थप्रेरक श्री जयरत्नविजयजी म.सा. के कुशल निर्देशन में वि. सं. 2069 ज्येष्ठ शुक्ला 10, दिनांक 31-05-2012 को अष्टान्हिका महामहोत्सव पूर्वक ऐतिहासिक रूप से श्री महावीर जिनालय की 60वीं, गुरु श्री शान्तिविजयजी समाधी मन्दिर की 10वीं वार्षिक ध्वजारोहण एवं गुरु श्री शान्तिविजयजी की 15वीं, पुण्य तिथि का कार्यक्रम अपने आप में ऐतिहासिक एवं भव्य रूप से आयोजित हुआ ।