भामिनीविलास जगन्नाथ पण्डितराज की प्रसिद्ध कृति है जिसे 'पण्डितराजशतक' भी कहते हैं। यह मुक्तक कविताओं का संकलन है। नागेश भट्ट के अनुसार "रसगंगाधर" के लक्षणों का उदाहरण देने के लिए पहले से ही इसकी रचना हुई थी।

भामिनीविलास में चार विलास (अध्याय) हैं जिनमें प्रत्येक में प्रायः सौ श्लोक हैं। इस ग्रन्थ का नाम पण्डितराज की प्रथम पत्नी पर है जिनका नाम 'भामिनी' था और उनकी मृत्यु बहुत कम आयु में हो गयी थी।

  • (१) प्रस्तावितविलास या अन्योक्तिविलास -- इसमें जीवन के बारे में अन्योक्तियाँ हैं जिनमें जीवन के अनुभव और ज्ञान का सरस एवं भावमय प्रकाशन है (नीति)। इसमें १०० से १३० श्लोक हैं।
  • (२) शृङ्गारविलास -- इसमें शृंगार रस में सने श्लोक हैं। (१०१ से लेकर १८४ श्लोक)
  • (३) करुणविलास -- इस विलास में कवि अपनी प्रियतमा भामिनि की अकाल मृत्यु पर करुण विलाप करता है।
  • (४) शान्तविलास -- इसमें वैराग्य भावना से ओतप्रोत ३१ से लेकर ४६ श्लोक हैं।

भामिनीविलास से एक श्लोक देखिए-

हालाहलं खलु पिपासति कौतुकेन
कालानलं परिचुचुंबिषति प्रकामम् ।
व्यालाधिपं च यतते परितब्धुमद्धा
यो दुर्जनं वशयितुं तनुते मनीषाम् ॥

(अर्थ - जो व्यक्ति किसी दुर्जन को अपने वश में करना चाहता है (अर्थात मैत्री करना चाहता है), वह कौतुकवश हलाहल (विष) पी रहा है, कालानल (काल अग्नि) का बार-बार चुम्बन कर रहा है, व्यालाधिप (तक्षक) को गले लगा रहा है।)

पंडितराज न अपने पाण्डित्य और कवित्व के विषय में जो गर्वोक्तियाँ की हैं वे साधार हैं। ये सचमुच श्रेष्ठ कवि भी हैं और 'पण्डितराज' भी। उनके मत से वाङ्मय में साहित्य, सहित्य में ध्वनि, ध्वनि में रस और रसो में शृंगार का स्थान क्रमश: उच्चतर हैं। सायास अलंकरणशैली का प्रभाव तथा चमत्कारसर्जना की प्रवृत्ति में अभिरुचि रखते हुए भी जगन्नाथ की उक्तियों में रस और भाव की मधुर योजना का समन्वय और सन्तुलन बराबर वर्तमान है। स्थान-स्थान पद काव्य सौन्दर्य, अलंकृत पदावली, भाव सौन्दर्य, रस प्रवणता, ज्ञानगरिमा और हृदयग्राहिता का दर्शन होता है। यथा -

सपदिविलयेतु राज्यलक्ष्मीरूपरि पतन्त्वथवा कृपाण धारा।
अपद्दरतुतरां शिरः कृतान्तो मे तु मतिर्न मनागपैतु धर्मात् ॥

अर्थात चाहे राज्यलक्ष्मी चली जाए, चाहे तलवार की चोट सही पड़े, चाहे मृत्यु आ जाए, परन्तु मन कभी भी धर्म का परित्याग न करे।

इन्हें भी देखें

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