भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम

भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम (Indian Ballistic Missile Defence Programme) बैलिस्टिक मिसाइल हमलों से बचाने के लिए भारत द्वारा एक बहुस्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली तैनात करने की एक पहल है।[1][2]

एडवांस्ड एयर डिफेंस (एएडी) मिसाइल लांच करते हुए

मुख्य रूप से पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइल खतरे को देखते हुए इसे शुरू किया गया है।[3] इस कार्यक्रम के तहत दो मिसाइल का निर्माण किया गया। ऊचाई की मिसाइल को मार गिराने के लिए पृथ्वी एयर डिफेंस तथा कम ऊचाई की मिसाइल को मार गिराने के लिए एडवांस एयर डिफेंस को विकसित किया गया है। यह दोनों मिसाइल 5000 किलोमीटर दूर से आ रही मिसाइल को मार गिरा सकती है।[4][5]

पृथ्वी एयर डिफेंस मिसाइल को नवंबर 2006 तथा एडवांस एयर डिफेंस को दिसंबर 2007 में टेस्ट किया गया था। पृथ्वी एयर डिफेंस मिसाइल के टेस्ट के साथ भारत एंटी बैलिस्टिक मिसाइल टेस्ट करने वाला अमेरिका, रूस तथा इजराइल के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया।[6] इस प्रणाली के टेस्ट अभी भी चल रहे और है आधिकारिक तौर पर इसे सेना में शामिल नहीं किया गया है। [7]

पृष्ठभूमि संपादित करें

90 के दशक के प्रारंभ से ही, भारत ने पाकिस्तान से बैलिस्टिक मिसाइल हमलों का खतरा सामने किया है, भारत को अतीत में पाकिस्तान और चीन से कई युद्ध लड़ने पड़े हैं। इस क्षेत्र में तनाव बढ़ने के साथ और पाकिस्तान की चीन से खरीदी एम-11 मिसाइलों तैनाती के जवाब में भारत सरकार ने अगस्त 1995 को नई दिल्ली और अन्य शहरों की रक्षा के लिए रूस की एस-300 सतह-से-एयर मिसाइलों की छह खेप की खरीद की। मई 1998 में, दूसरी बार भारत (1974 में अपनी पहली परीक्षा के बाद से) ने परमाणु हथियारों का परीक्षण किया (पोखरण-2 देखें), इसके बाद पाकिस्तान ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों और मिसाइल डिलीवरी प्रणालियों के परीक्षण के साथ, भारत पर मिसाइल खतरा तेज हो गया। भारत ने मिसाइल डिलीवरी प्रणाली का भी विकास और परीक्षण किया है। (एकीकृत गाइडेड मिसाइल विकास कार्यक्रम देखें)

1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध दो घोषित परमाणु शक्तियों के बीच पहला सीधा संघर्ष बन गया। युद्ध की प्रगति के साथ, परमाणु हथियार के संभावित उपयोग का पहला संकेत 31 मई को मिला था, जब पाकिस्तानी विदेश सचिव शमशाद अहमद ने एक चेतावनी दी कि सीमित संघर्ष के चलते पाकिस्तान को अपने शस्त्रागार में "किसी भी हथियार" का इस्तेमाल करने में मदद मिल सकती है।[8] इसने तुरंत विस्तारित युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान द्वारा परमाणु प्रतिरोध का खतरा स्पष्ट का दिया था। पाकिस्तान के सीनेट के नेता ने कहा कि "विकासशील हथियारों का उद्देश्य अर्थहीन हो जाता है यदि वे आवश्यक पड़ने पर उपयोग नहीं किये जाये।"[9] कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद, पाकिस्तानी सेना को अपने परमाणु निवारक आवरण से प्रेरित किया गया था ताकि भारत के खिलाफ मजबूती को बढ़ाया जा सके।[10]

एंटी बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली का विकास 1999 के अंत में शुरू हुआ।[11] यह कहते देते हुए कि भारत ने युद्ध के दौरान पहले उपयोग न करने की नीति का निर्वाह किया जबकि पाकिस्तान इस युद्ध में परमाणु बम का प्रयोग करने के लिए उत्सुक रहा और कारगिल युद्ध के दौरान बढ़ते तनाव जिसमें पूर्ण पैमाने पर परमाणु युद्ध की संभावना शामिल थी। इस कारण इस कार्यक्रम को शुरू किया गया है।

इस कार्यक्रम को दो चरणों में बाटा गया। चरण-1 में 2000 किमी से आने वाली मिसाइल को रोकने के लिए एंटी बैलिस्टिक मिसाइल बनानी थी जिसे चरण-2 में 5000 किमी तक करना था।[5]

विकास संपादित करें

चरण 1 संपादित करें

एंटी बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली का विकास 1999 में शुरू हुआ। लगभग 40 सार्वजनिक और निजी कंपनियां सिस्टम के विकास में शामिल थीं। इनमें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और भारत डायनामिक्स लिमिटेड, एस्ट्रा माइक्रोवेव, एएसएल, लार्सन एंड टुब्रो, वेम टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड और केलटेक शामिल हैं। लांग रेंज ट्रैकिंग रडार (एलआरटीआर) और मल्टी फंक्शन फायर कंट्रोल रडार (एमएफसीआर) का विकास इलेक्ट्रॉनिक्स और रडार डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट (एलआरडीई) ने किया था।[12][13]

रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) ने एडवांस एयर डिफेंस मिसाइल के लिए मिशन कंट्रोल सॉफ़्टवेयर विकसित किया है। रिसर्च सेंटर, इमारात (आरसीआई) ने नेविगेशन, इलेक्ट्रोमैकेनिकल एक्ट्यूएशन सिस्टम और सक्रिय रडार साधक का विकास किया। उन्नत सिस्टम प्रयोगशाला (एएसएल) ने एडवांस एयर डिफेंस और पृथ्वी एयर डिफेंस के लिए मोटर्स, जेट वैन और संरचनाएं प्रदान कीं। उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (एचईएमआरएल) ने मिसाइल के लिए प्रणोदकों की आपूर्ति की।[13]

चरण 2 संपादित करें

दो नई एंटी बैलिस्टिक मिसाइलें जो इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल को रोक सके को विकसित किया जा रहा हैं। लगभग 5000 किमी (3,100 मील) से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट करने के लिए इन उच्च गति मिसाइलों (एडी-1 और एडी-2) को विकसित की जा रहा हैं।[14] 2011 में इन दो प्रणालियों के परीक्षण परीक्षण की संभावना है नई मिसाइल अमेरिका द्वारा तैनात थैड मिसाइल के समान होगी।[15] इन मिसाइल की गति हाइपरसॉनिक होगी और इसने 1500 किमी (930 मील) से अधिक की स्कैन क्षमता के साथ राडार की आवश्यकता होगी ताकि लक्ष्य को सफलतापूर्वक अवरोध कर सके।[16] 6 मई 2012 को, डॉ वी के सरस्ववत ने चरण-1 के पूरा होने की पुष्टि करते हुए कहा कि चरण-2 2016 तक पूरा हो जाएगा, जिसमें 5000 किमी से आने वाली मिसाइलों को नष्ट किया जा सकेगा।[17]

मिसाइलों को अवरुद्ध करने और नष्ट करने के लिए भारत अपने बचाव के हिस्से के रूप में लेजर आधारित हथियार प्रणाली विकसित करने की भी योजना बना रहा है ताकि देश की ओर छोड़ी गई मिसाइल को लॉन्च के तुरंत बाद नष्ट किया जा सके डीआरडीओ के वायु रक्षा कार्यक्रम के निदेशक वी के सारस्वत कहा हैं कि यह परमाणु या परंपरागत हथियार ले जाने वाले बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट करने का आदर्श होगा। सारस्वत ने आगे कहा कि रक्षा अनुसंधान संस्थान से इसे रक्षा तक योग्य बनाने के लिए 10-15 साल का समय लगेगा।[18]

अवयव संपादित करें

दो स्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम में पृथ्वी एयर डिफेंस शामिल है जो मिसाइलों को 50-80 किमी (31–50 मील) के एक्सो-वायुमंडलीय ऊंचाई पर रोक देगा और 30 किमी (19 मील) तक ऊंचाई पर एंडो-वायुमंडलीय अवरोधन के लिए एडवांस एयर डिफेंस मिसाइल है। तैनात प्रणाली में कई लॉन्च वाहन, रडार, लॉन्च कंट्रोल सेंटर (एलसीसी) और मिशन कंट्रोल सेंटर (एमसीसी) शामिल होंगे। इन सभी को भौगोलिक रूप से वितरित किया जाता है और एक सुरक्षित संचार नेटवर्क द्वारा जुड़ा जाता है।[11]

मिशन कंट्रोल सेंटर बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली की सॉफ्टवेयर गहन व्यवस्था है। यह विभिन्न स्रोतों जैसे राडार और उपग्रहों से जानकारी प्राप्त करता है, जिसके बाद एक साथ चलने वाले दस कंप्यूटरों द्वारा इस जानकारी प्रोसेस किया जाता है। मिशन कंट्रोल सेंटर एक वाइड एरिया नेटवर्क के माध्यम से रक्षा के सभी अन्य तत्वों से जुड़ा होता है। मिशन कंट्रोल सेंटर लक्ष्य वर्गीकरण, लक्षित मूल्यांकन और लक्ष्य को नष्ट करने का आकलन करता है। यह कमांडर के लिए निर्णय समर्थन प्रणाली के रूप में कार्य करता है। यह लक्ष्य को नष्ट करने की सभी संभावना के लिए आवश्यक इंटरसेप्टर की संख्या भी तय कर सकता है[11] इन सभी कार्यों को निष्पादित करने के बाद, मिशन कंट्रोल सेंटर लॉन्च बैटरी के लॉन्च कंट्रोल सेंटर को लक्ष्य की जानकारी दे देता है। लॉन्च कंट्रोल सेंटर लक्ष्य की गति, ऊंचाई और उड़ान पथ आदि रडार से प्राप्त जानकारी के आधार पर इंटरसेप्टर लॉन्च करने के लिए समय की गणना करना शुरू करता है। लॉन्च कंट्रोल सेंटर वास्तविक समय में प्रक्षेपण के लिए मिसाइल तैयार करता है और ग्राउंड गाइडेंस कंप्यूटशन को जारी करता है।

इंटरसेप्टर लॉन्च करने के बाद, यह रडार से प्राप्त जानकारी के माध्यम से इंटरसेप्टर को लक्ष्य सूचना प्रदान की जाती है जब इंटरसेप्टर लक्ष्य मिसाइल के करीब होता है तो इंटरसेप्टर लक्ष्य मिसाइल के लिए अपने रडार खोजक को सक्रिय करता है और लक्ष्य को नष्ट करने के लिए स्वयं का मार्गदर्शन करता है। और लक्ष्य को नष्ट कर देता है उच्च मार संभावनाओं के लिए लक्ष्य के खिलाफ कई पृथ्वी एयर डिफेंस और एडवांस एयर डिफेंस इंटरसेप्टर लॉन्च किए जा सकते हैं।[11]

पृथ्वी एयर डिफेंस संपादित करें

एडवांस एयर डिफेंस संपादित करें

तैनाती संपादित करें

डीआरडीओ के वैज्ञानिक विजय कुमार सारस्वत के अनुसार, मिसाइल किसी भी टारगेट को 99.8 प्रतिशत हिट करने की संभावना के लिए बनाई गयी है। 6 मई 2012 को डॉ. वी के सारस्वत ने पुष्टि की कि चरण-1 पूर्ण हो गया है और एक संक्षिप्त सूचना पर दो भारतीय शहरों की रक्षा के लिए तैनात किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि चरण-1 अमेरिकी रक्षा प्रणाली पीएसी-3 पैट्रियट प्रणाली के साथ तुलनीय है।[17][19] नई दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी और मुंबई को बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा ढाल के लिए चुना गया है।[20] दिल्ली और मुंबई में सफल क्रियान्वयन के बाद, इस प्रणाली का उपयोग देश के अन्य प्रमुख शहरों को कवर करने के लिए किया जाएगा।[21] यह ढाल 2500 किमी (1,600 मील) दूर से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट कर सकता है। दुसरे चरण के पूरा होने पर दोनो एंटी बैलिस्टिक मिसाइल एक्सो और एंडो-वायुमंडलीय (वातावरण के अंदर) क्षेत्र दोनों से 5000 किमी (3,100 मील) से आने वाली मिसाइलों को नष्ट कर सकती हैं। मिसाइल 99.8 प्रतिशत की हिट संभावना सुनिश्चित करने के लिए अग्रानुक्रम में काम करेगी।[22][23]

क्रूज मिसाइल रक्षा संपादित करें

दूसरी तरफ क्रूज मिसाइल के हमले के खिलाफ बचाव कम उचाई पर उड़ने वाले मानव विमान से निपटने के समान है और इसलिए विमान रक्षा के अधिकांश तरीके क्रूज़ मिसाइल रक्षा प्रणाली के लिए उपयोग किए जा सकते हैं।

क्रूज मिसाइल हमले के खतरों को दूर करने के लिए भारत ने नया मिसाइल रक्षा कार्यक्रम शुरू किया, जो कि क्रूज मिसाइलों को हवा में नष्ट करने पर केंद्रित था। यह तकनीकी सफलता एक एडवांस एयर डिफेंस (एएडी) के साथ बनाई गई है।[24] डीआरडीओ के निर्देशक, डॉ विजय कुमार सारस्वत ने एक साक्षात्कार में कहा "हमारे अध्ययन ने संकेत दिया है कि एडवांस एयर डिफेंस एक क्रूज मिसाइल को हवा में नष्ट करने में सक्षम होगा।"[24]

इसके अलावा, भारत खतरे के शीर्ष देखते हुए क्रूज़ मिसाइलों का पता लगाने के लिए एयरबोर्न प्रारंभिक चेतावनी व नियंत्रण जैसे हवाई राडारों को प्राप्त कर रहा है ताकि भारत की ओर आने वाले किसी भी खतरे को आसानी से पता लगाया जा सके।[24]

बराक 8 एक लंबी दूरी की एंटी-एयर और एंटी मिसाइल नौसैनिक रक्षा प्रणाली है जिसे इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) और भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। भारतीय सेना मध्यम-दूरी वाली सतह से हवा के वायु रक्षा मिसाइल के लिए अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए बराक 8 मिसाइल के एक और संस्करण को शामिल करने पर विचार कर रही है। इस मिसाइल का नौसैनिक संस्करण समुद्र में युद्धपोतों को नुकसान पहुँचने के लिए आने वाली दुश्मन क्रूज मिसाइलों और लड़ाकू विमानों को अवरुद्ध करने की क्षमता रखता है।[25] इसे भारतीय वायुसेना व इसके बाद थलसेना में भी शामिल किया जाएगा।[26] भारत इसराइल के साथ इस मिसाइल को संयुक्त रूप से बनाएगा।[27] हाल ही में विकसित हुए, भारत की आकाश मिसाइल रक्षा प्रणाली में लड़ाकू विमानों, क्रूज मिसाइलों और हवा से सतह मिसाइल जैसी हवाई लक्ष्यों को बेअसर करने की क्षमता भी है।[28][29]

17 नवंबर 2010 को, साक्षात्कार में राफेल कंपनी के वाईस डिरेक्टर श्री लोवा ड्रॉरी ने पुष्टि की। कि उन्होंने भारतीय सशस्त्र बलों के लिए डेविड की स्लिंग प्रणाली की पेशकश की गई है।[30][31]

एस-400 संपादित करें

अक्टूबर 2015 में यह बताया गया था कि भारत की रक्षा अधिग्रहण परिषद अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए रूस से एस-400 मिसाइलों के 12 इकाइयां खरीदेगा। दिसंबर 2015 के आखिरी हफ्ते में भारत के प्रधान मंत्री मोदी की रूस यात्रा से पहले इस सौदे की पुष्टि होनी थी। 17 दिसंबर 2015 को यह पुष्टि हुई थी कि यह मूल रूप से 12 इकाइयों की बजाय 5 इकाइयों के लिए होगा। यह सौदा 6 अरब डॉलर (वर्तमान विनिमय दर में 400 अरब रुपये) के बराबर है। एस-400 मिसाइलों की संख्या में कमी भारत की रक्षात्मक जरूरतों के लिए पर्याप्त माना जाता है।[32]

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया संपादित करें

पाकिस्तान संपादित करें

15 मई 2016 को सफल परीक्षण के बाद, 20 मई 2016 को पाकिस्तान ने भारत की सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल परीक्षण पर चिंता व्यक्त की और कहा कि वह "देश की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेंगे।"[33]

संयुक्त राज्य अमेरिका संपादित करें

अमेरिकी डिप्टी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर के मुताबिक, बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) ढाल विकसित करने के लिए भारत के साथ सहयोग की संभावना है। "यह हमारे भविष्य के सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण संभावित क्षेत्र है," कार्टर ने जुलाई 2012 में भारत की अपनी यात्रा के दौरान कहा।[34]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Ratliff, Ben (30 November 2012). "India expects to use missile interception system as a weapon, top scientist says". International Herald Tribune. मूल से 9 दिसंबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
  2. "India developing new missiles Towards destroying hostile missiles". The Hindu. 3 December 2006. मूल से 29 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
  3. The New Guardian India unveils an all new anti-ballistic missile expected to be the fore-runner of a sophisticated air defence system to thwart, among other threats, a Pakistani nuclear weapons attack [मृत कड़ियाँ]
  4. "India tests interceptor missile". Google. 6 March 2009. मूल से 10 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
  5. "India's Ballistic Missile Defence system: All you need to know - Times of India". The Times of India. मूल से 12 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 February 2017.
  6. Ratliff, Ben. "India successfully tests missile interceptor". International Herald Tribune. मूल से 10 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
  7. "Indian Ballistic Missile Defence Programme". मूल से 3 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अक्तूबर 2016.
  8. Quoted in News Desk, "Pakistan May Use Any Weapon," The News, 31 May 1999.
  9. Pakistan's Nuclear Weapons Program Archived 12 नवम्बर 2008 at the वेबैक मशीन (PDF)
  10. Options Available to the United States to Counter a Nuclear Iran By George Perkovich Archived 2008-01-12 at the वेबैक मशीन – Testimony by George Perkovich before the House Armed Services Committee, 1 February 2006
  11. Interview: Vijay Kumar Saraswat[मृत कड़ियाँ]
  12. The Hindu Business Line : 40 cos involved in making of missile killers
  13. T.S. SUBRAMANIAN (22 December 2007 – 4 Jan 2008). "Smashing hit". Frontline. Chennai, India. मूल से 17 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 February 2008. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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  15. "India developing ballistic missiles to destroy IRBMs, ICBMs". Earthtimes.org. मूल से 4 फ़रवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
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  18. "India plans to use laser weapons in Ballistic Missile Defence". The Hindu. Chennai, India. 18 जनवरी 2009. मूल से 1 फ़रवरी 2011 को पुरालेखित.
  19. Rajat Pandit, TNN, 26 November 2007, 02:43AM IST (26 November 2007). "India on way to joining exclusive BMD club". The Times of India. मूल से 13 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
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  21. "Delhi, Mumbai to get missile defence shield – NDTV News". Ndtv.com. 24 June 2012. मूल से 12 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
  22. "More Teeth to Defence System". IBNLive. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  23. "Delhi, Mumbai to be first provided with missile defence shield". The Economic Times. Press Trust of India. 24 June 2012. मूल से 19 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2012.
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  30. "Rafael Confirms Offer of Iron Dome, David's Sling to Indian Armed Forces". India-defence.com. मूल से 14 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अप्रैल 2013.
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  32. "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 जून 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2017.
  33. "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2017.
  34. "Potential for cooperation with India to develop BMD: US". Business Standard. 23 July 2012. अभिगमन तिथि 25 July 2012.