‘’’ भारतीय व्यापार नीति ’’’ आंतरिक एवं बाहरी व्यापार को नियमित करने संबंधित भारत सरकार की नीतियाँ हैं। ये नीतियाँ भारत की आंतरिक आवस्यकताओं और वैश्विक व्यापार की स्थिभारतीय व्यापार नीति ’’’ आंतरिक एवं बाहरी व्यापार को नियमित करने संबंधित भारत सरकार की नीतियाँ हैं। ये नीतियाँ भारत की आंतरिक आवस्यकताओं और वैश्विक व्यापार की स्थितियों से प्रभावित होती रही है। स्वतंत्र भारत की व्यापारिक नीति आत्मनिर्भरता से लेकर उदारीकरण से लाभान्वित होने तथा अपनी तियों से प्रभावित होती रही है। स्वतंत्र भारत की व्यापारिक नीति आत्मनिर्भरता से लेकर उदारीकरण से लाभान्वित होने तथा अपनी कार्यदक्षता संवर्धित करने के अनुसार विभिन्न दशकों में बदलती रही है। इसके अनुरूप इसे मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है- १. १९५०-१९६५, २. १९६५-१९८०, ३. १९८० पश्चात। इन समयावधियों में व्यापार के संबंध में कुछ खास दृष्टियाँ और नीतियाँ अपनायी जाती रही है।

१९५०-१९६५ संपादित करें

इस दौर में भारत की व्यापारिक नीति आत्मनिर्भरता और आत्मपूर्णता पर आधारित रही है। आयात को प्रतिबंधित किया गया। इस दौर में भारत सरकार ने वैकल्पिक आयात की व्यवस्था करने पर भी ध्यान केंद्रित किया। आयात निषेधन और आयात विकल्पन इस दौर के आयात संबंधित व्यापारिक नीतियों का मूल चरित्र है। इस दौर में निर्यात नियंत्रण तंत्र की निर्यात संबंधी नीतियों में प्रभावी भूमिका है। इस तरह स्वतंत्र भारत शुरुआती दौर में न तो आयात को और न ही निर्यात को संवर्दित करने वाली व्यापारिक नीतियाँ बना रहा था। यह भारत की एक दशक पूर्व तक विदेशी व्यापार के कारण हुई दो शतकों की पराधीनता और उसके स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों का परिणाम था। यह आशंका बनी हुई थी कि मुक्त व्यापार भारत को फिर से विदेशी व्यापारियों के राजनितिक हस्तक्षेप के खतरे में डाल सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद भारत को विशाल जनता के लिए अनाज और उद्योग धंधों के विकास के लिए मशीनों की आवश्यकता थी। इसलिए आयात निर्यात संबंधि प्रतिबंधों से इन्हें कुछ हद तक मुक्त रखा गया। १९५६ में लागू हुई दूसरी पंचवर्षीय योजना ने भारत के औद्योगिक विकास को लक्ष्य बनाया। इसके बाद भारत सककार ने औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक सामग्री के आयात की छूट दी। यह आयात को मिली पहली बड़ी छूट थी। किंतु चीन और पाकिस्तान के साथ हुए दो युद्धों के बाद आयात पुनः प्रतिबंधित हो गए। यह स्थिति १९७७ तक बनी रही।

१९६५-१९८० संपादित करें

निर्यात आधारित वृद्धि, अंतर्राष्ट्रिय प्रतिस्पर्धात्मकता और तकनीक ने इस दौर की भारतीय व्यापार नीतियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

१९८० पश्चात संपादित करें

१९८० के बाद भूमंडलीकरण का प्रभाव, उससे लाभ उठाने की कोशिश, कार्यदक्षता में वृद्धि आदि ने भारतीय व्यापार नीतियों को निर्धारित किया है।

संबंधित आलेख संपादित करें