भारत-जापान शांति संधि

भारत-जापान शांति संधि (अंग्रेज़ी- Treaty of Peace Between Japan and India, जापानी-日本国とインドとの間の平和条約) 9 जून, 1952 को दोनों देशों के बीच संबंधों को बहाल करने वाली एक शांति संधि थी। इसके तहत दोनों देशों ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय की आपसी रंजिश को सुलझाते हुए अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को बढ़ावा देने का प्रण लिया।

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और ब्रिटिश साम्राज्य (जिसका भारत एक हिस्सा था) आमने-सामने थे। इसके बाद दोनों देशों ने पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए। युद्ध के बाद जापान अमेरिका के कब्जे में था और भारत ने 15 अगस्त, 1947 को अपनी स्वतंत्रता हासिल की। 1951 में, सैन फ्रांसिस्को शांति सम्मेलन में भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के ने भाग लेने से इनकार कर दिया,[1] क्योंकि उनका मत यह था कि इस संधि के प्रावधानों से जापानी संप्रभुता को सीमित हो जाएगी।[2] उन्होंने कहा कि "जापान को अन्य देशों की तरह स्वतंत्रता और सम्मान दिया जाना चाहिए"।[2] अन्य शब्दों में कहें तो यह शांति समझौता किसी न्यायिक व्यवस्था जैसा लगने के बजाय युद्ध-विजेताओं द्वारा हारने वाले को प्रताड़ित करने के लिए ईजाद किया गया एक हथियार था।

इस सम्मेलन के बाद 28 अप्रैल, 1952 को जापान ने अधिकांश व्यावसायिक बलों की वापसी के साथ अपनी संप्रभुता हासिल कर ली।[2]

यह भी देखें संपादित करें

संदर्भ संपादित करें

  1. Singh, Manmohan. "Dr. Manmohan Singh's banquet speech in honour of Japanese Prime Minister". New Delhi (April 29, 2005). Retrieved on March 28, 2014.
  2. "Nehru and Non-alignment". P.V. Narasimha Rao. Mainstream Weekly. 2009-06-02. मूल से 16 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-09.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें