भारत का वि-औद्योगीकरण

भारत के आर्थिक वि-औद्योगीकरण (Industrial deindutrialization of India) से आशय 1757 से 1947 तक भारतीय अर्थव्यवस्था के भीतर औद्योगिक गतिविधियों में अंग्रेजों की पक्षपाती नीतियों द्वारा की गई कृत्रिम कमी से है। भारत का यह वि-औद्योगीकरण तब शुरू हुआ जब भारतीय अर्थव्यवस्था ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थी।

भारतीय अर्थव्यवस्था 1757 से 1858 तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के तहत नियंत्रित थी। इस अवधि में ब्रिटिश संरक्षणवादी नीतियां ब्रिटेन के भीतर भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री को प्रतिबंधित करती थीं, जबकि भारतीय बाजारों में कम लागत वाले ब्रिटिश सामान और सेवाओं की बाढ़ आ गई थी। भारत में आने वाली इन वस्तुओं में बिना किसी कर और कोटा के विभिन्न प्रकार के मशीन निर्मित सामान शामिल थे। 19वीं शताब्दी के आते आते भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी कपड़ा निर्माता नहीं रही और ब्रिटेन विश्व का सबसे बड़ा वस्त्र-निर्माता बन बैठा।

यूरोप की औद्योगिक क्रांति भारत सहित एशिया के कई यूरोपीय उपनिवेशों के कारीगरों और विनिर्माण गतिविधियों के महत्वपूर्ण पुनर्संतुलन पर निर्भर थी।[1]

  1. Bagchi, Amiya Kumar (1976). "De‐industrialisation in India in the nineteenth century: Some theoretical implications". The Journal of Development Studies (अंग्रेज़ी में). 12 (2): 135–164. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0022-0388. डीओआइ:10.1080/00220387608421565.

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