भारत का समुद्री क्षेत्र अधिनियम

भारत का समुद्री क्षेत्र अधिनियम (Maritime Zones Act) 25 अगस्‍त 1976 को पारित हुआ। इस अधिनियम के अधीन भारत ने 2.01 लाख वर्ग किलोमीटर समुद्री क्षेत्र का दावा किया, जिसमें भारत को समुद्र में जीवित तथा अजीवित दोनों ही संसाधनों के अन्‍वेषण तथा दोहन के लिए अनन्‍य अधिकार होगा।[1]

भारत का समुद्री क्षेत्र

समुद्री क्षेत्र अधिनियम 1976 संपादित करें

समुद्र तथा समुद्र तल से आर्थिक लाभ उठाने के प्रति जागरूकता बढ़ने से विश्व के बहुत से तटीय देशों ने अपनी भूमि से लगे बड़े समुद्री क्षेत्र पर अपना क्षेत्राधिकार का दावा किया। यू॰एन॰सी॰एल॰ओ॰एस॰ की तीसरी बैठक में कमियों व विवादों को सुलझाया गया तथा अंतर्राष्‍ट्रीय समुद्री तल क्षेत्र के लिए विधान विकसित किया गया। दुनिया के बदलती परिस्थिति के अनुसार, भारत सरकार ने 25 अगस्‍त 1976 को समुद्री क्षेत्र अधिनियम बनाया। यह अधिनियम 15 जनवरी 1977 को लागू हुआ, जिसमें 2.01 लाख वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण अन्‍नय आर्थिक क्षेत्र के क्षेत्र को राष्‍ट्रीय क्षेत्राधिकार में लाया गया। इतने बड़े समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा तथा राष्‍ट्रीय विधियों का प्रवर्तन और राष्‍ट्रीय हितों की रक्षा करना एक भारी काम था, जिसके लिए एक समर्पित संगठन की आवश्‍यकता को महसूस करते हुए भारतीय तटरक्षक की भी स्थापना हुई।

भारत के समुद्री क्षेत्र से जुड़ी कुछ घटनाऐं संपादित करें

  • 2012 अरब सागर में इतालवी गोलीबारी - 2012 में लक्षद्वीप सागर में हुई गोलीबारी की घटना, जिसमें विवाद था कि यह भारत के समुद्री क्षेत्र में हुई अथवा अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में। मामला भारत की अदालत में विचाराधीन है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "भारतीय तटरक्षक का इतिहास". भारतीय तटरक्षक की आधिकारिक वैबसाईट. 2001. मूल से 9 फ़रवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2014.