भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009)

वर्ष 2009 में भारत के लोगों को पोलियो, एचआईवी और मलेरिया जैसी चिरपरिचित बिमारियों के साथ ही स्वाइन फ्लू नामक नई बीमारी का भी सामना करना पडा। इस वर्ष की दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

स्वाइन फ्लू

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21वीं सदी की यह पहली महामारी वर्ष भर खबरों में रही है। इस बीमारी से देश में पहला संक्रमण हैदराबाद में 16 मई को सामने आया। इस बीमारी से 24,000 से भी अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। यह बीमारी लगभग 800 लोगों की जानें ले चुकी है। इस बीमारी से बचाव के लिए हाल फिलहाल किसी स्वदेशी टीके के आने का संकेत नहीं है। परिणामस्वरूप इस संक्रामक बीमारी के यहां बने रहने की स्थिति बनी हुई है। भारतीय अधिकारियों तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि अभी अगले वर्ष तक इस बीमारी से लोगों का मरना जारी रहेगा।

जापानी मस्तिष्कशोथ

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इस बीमारी ने लोगों का उतना ध्यान नहीं खींचा है, फिर भी यह बीमारी पूरे वर्ष भर देश के लिए प्रमुख चुनौती बनी रही। मच्छरों के काटने से संक्रमित होने वाले इस बीमारी का वायरस कम से कम 600 लोगों की जानें ले चुका है, खासतौर से उत्तर प्रदेश और बिहार में। ज्ज्येअक्ज्ज्द

एचआईवी/एड्स के मोर्चे पर भारत के पास एक आश्वस्त करने वाली खबर है। सरकार ने घोषणा की है कि देश में एचआईवी पॉजिटिव लोगों की संख्या में पिछले पांच वर्षो के दौरान 400,000 तक की कमी हुई है। नए संक्रमणों में कम से कम 100,000 प्रति वर्ष की गिरावट हुई है।

कई टीकाकरण अभियानों के बावजूद पोलियो लगातार बड़ा खतरा बना हुआ है। इस वर्ष सामने आए 672 मामलों में से 544 मामले उत्तर प्रदेश और 111 बिहार से हैं।

मच्छरों द्वारा पैदा होने वाली यह बीमारी देश भर में हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले चुकी है और इस वर्ष भी देश की राजधानी में यह बीमारी अपने उफान पर रही है।

ट्यूबरकुलोसिस

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टीबी देश में लगातार एक घातक बीमारी बनी हुई है। इस बीमारी के कारण प्रति तीन मिनट में कम से कम दो लोगों की मौत हो रही है। इस बीमारी के कारण प्रति दिन लगभग 1,000 लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं।

मच्छर जनित बीमारियां देश में जन स्वास्थ्य के लिए चुनौती बनी हुई हैं। मलेरिया उनमें से एक है। ये बीमारियां देश भर में हजारों लोगों को गिरफ्त में ले रही हैं। उड़ीसा, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, असम और देश के उत्तरी इलाके इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हैं।

शिशु व मातृ मृत्यु

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देश में प्रति वर्ष 20 लाख से अधिक बच्चे अपना पांचवां जन्म दिन नहीं मना पाते हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में बच्चे जन्म लेने के साथ ही मौत के मुंह में समा जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार पैदा होने वाले 1,000 बच्चों में से कम से कम 55 बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं। इसी तरह प्रसव के दौरान 100,000 महिलाओं में से 254 महिलाएं मौत की शिकार बन जाती हैं।

कुपोषण बनाम मोटापा

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देश में लगभग 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं तो लाखों लोग मोटापा की गिरफ्त में हैं।

जीवन शैली संबंधी बीमारियां

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आर्थिक समृद्धि के कारण जीवन शैली अस्वस्थ हो जाती है। भारत व्यापक रूप से जीवन शैली जनित बीमारियों की गिरफ्त में ह

सहायक एवं संदर्भ श्रोत

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[1][मृत कड़ियाँ]