भारत में अंग्रेज़ी राज
'भारत में अंग्रेजी राज' पत्रकार, इतिहासकार तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित सुन्दर लाल द्वारा लिखा गया स्वतंत्रता संग्राम एक इतिहास ग्रन्थ है। यह 18 मार्च 1938 को प्रकाशित हुआ था और 22 मार्च 1938 को अंग्रेज सरकार ने इसे प्रतिबन्धित कर दिया।[1] [2]
भारतीय इतिहास पर नयी दृष्टि
संपादित करेंसर्वज्ञात है कि 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम को सैनिक विद्रोह कह कर दबाने के बाद अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुस्लिमों में मतभेद पैदा किया। 'फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत उन्होंने बंगाल का दो हिस्सों- पूर्वी और पश्चिमी में, विभाजन कर दिया। पण्डित सुन्दरलाल ने इस साम्प्रदायिक विद्वेष के पीछे छिपी अंग्रेजों की कूटनीति तक पहुंचने का प्रयास किया।[3],[4] इसके लिए उन्होंने प्रामाणिक दस्तावेजों तथा विश्व इतिहास का गहन अध्ययन किया। उनके सामने भारतीय इतिहास अनेक अनजाने तथ्य खुलते चले गये। इसके बाद वे तीन साल तक क्रान्तिकारी बाबू नित्यानन्द चटर्जी के घर पर रह कर दत्तचित्त हो कर लेखन और पठन पाठन के काम में लगे रहे। इसी साधना के फलस्वरूप एक हजार पृष्ठों का 'भारत में अंग्रेजी राज' नामक ग्रन्थ तैयार हुआ।
इसकी विशेषता यह थी कि इसका अधिकतर हिस्सा पंडित सुन्दर लाल जी ने खुद अपने हस्तलेख से नहीं लिखा। पचासों सहायक ग्रन्थ पढ़ पढ़ कर, सन्दर्भ देख देख कर वे धाराप्रवाह बोलते थे और प्रयाग के श्री विशम्भर पाण्डे उनके बोले शब्द लिखते थे। इस प्रकार इसकी पाण्डुलिपि तैयार हुई; पर तब इस तरह की किताब का प्रकाशन आसान नहीं था। सुन्दरलाल जी जानते थे कि प्रकाशित होते ही अंग्रेज़ी शासन इसे जब्त कर लेगा। अत: उन्होंने इसे कई खण्डों में बांट कर अलग-अलग नगरों में छपवाया। तैयार खण्डों को प्रयाग में बाइंड कराया गया और अन्तत: 18 मार्च 1938 को पुस्तक प्रकाशित हो गयी।
पुस्तक के बारे में कुछ तथ्य
संपादित करेंपहला संस्करण 2,000 प्रतियों का था। 1,700 प्रतियां तीन दिन के अन्दर ही ग्राहकों तक पहुंचा दी गयीं।[5] शेष 300 प्रतियां डाक या रेल द्वार जा रहीं थीं; पर इसी बीच अंग्रेजों ने 22 मार्च को ग्रन्थ को कानूनन प्रतिबन्धित घोषित कर इन्हें जब्त कर लिया। जो 1,700 किताबें भेजी जा चुकीं थीं, शासन ने उन्हें भी ढूंढने का प्रयास किया ; पर उसे आंशिक सफलता ही मिली। एक अन्य स्रोत[6] के अनुसार २००० में से १७०० प्रतियाँ जब्त हो गयीं| इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध देश भर के नेताओं और समाचार पत्रों ने आवाज उठायी। गांधीजी ने भी इसे पढ़ कर अपने पत्र 'यंग इण्डिया' में इसके पक्ष में लेख लिखा।[7] सत्याग्रह करने वाले इसे स्मगल कर जेल ले गये। वहां भी जेलरों की चौकन्नी निगाहों से बच कर हजारों लोगों ने इसे एक एक पन्ना कर के गुपचुप पढ़ा। इस प्रकार धीरे २ पूरे देश के स्वतंत्रता आंदोलकारियों में इसकी चर्चा हो गयी।
दूसरी ओर सुन्दरलाल जी किताब पर लगाए प्रतिबन्ध के विरुद्ध न्यायालय में चले गये। उनके वकील सर तेजबहादुर सप्रू ने तर्क दिया कि "इसमें एक भी तथ्य असत्य नहीं है।" सरकारी वकील ने स्वीकारोक्तिपूर्वक बस यही कहा, ‘मी लॉर्ड! यह इसीलिए अधिक खतरनाक है।’
सुन्दरलाल जी ने संयुक्त प्रान्त की सरकार को एक अभ्यावेदन पुनः लिखा। गर्वनर शुरू में तो राजी नहीं हुए; पर 15 नबम्वर 1937 को उन्होंने उनकी बहुचर्चित किताब से प्रतिबन्ध हटा लिया।
पुस्तक के पहले तीन संस्करण
संपादित करेंइसके बाद अन्य प्रान्तों में भी प्रेस सम्बन्धी प्रतिबन्ध हट गया। अब नये संस्करण को छपवाने की तैयारी की गयी। बहुचर्चित पुस्तक होने के कारण अब कई प्रकाशक इसे छापना चाहते थे; पर सुन्दरलाल जी ने कहा कि वे इसे वहीं छपवायेंगे, जहां से यह कम से कम दाम में छप सके। अंततः ओंकार प्रेस, प्रयाग ने हज़ार से भी ज्यादा सचित्र पन्नों के इस विपुल ग्रन्थ को बस लागत मूल्य केवल सात रुपए में छापा। इस संस्करण के छपने से पहले ही 10,000 प्रतियों के आदेश प्रकाशक / लेखक को मिल गये थे। लक्ष्य के प्रति निष्ठा, अव्यावसायिक भावना से स्वाधीनता संग्राम में इस तरह सहयोग देने वाली पत्रकारिता और प्रकाशन जगत के इतिहास में सेवाभावी पुस्तक-प्रेम के ऐसे उदाहरण कम ही हैं।
भारत की स्वाधीनता के इस गौरव ग्रन्थ का तीसरा संस्करण 1960 में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग[8] ने प्रकाशित किया था। अब भी हर तीन-चार साल बाद इसका नया संस्करण प्रकाशित हो रहा है।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 8 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 8 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 8 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 अगस्त 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 29 जुलाई 2014. Retrieved 3 अगस्त 2014.