भारत में आत्महत्या निरोध

भारत में आत्महत्या निरोध के संदर्भ में जो प्रयास किए गए हैं या किए जा रहे हैं, उनके सन्दर्भ में विशेषज्ञों की राय है कि यह वैश्विक मानकों की तुलना में अपर्याप्त हैं। देश में पारिवारिक दबाव, शिक्षा और करियर का दबाव, आर्थिक दबाव आदि आत्महत्या के मुख्य कारण हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आत्महत्या भी एक दुखद समस्या है।

डॉ॰ अंबुमणि रामदॉस जो मई 2004 से अप्रैल 2009 को इस्तीफा देने तक भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे, 2006 में चेन्नई में आत्महत्या निरोध के सम्बंध में एक राष्ट्रीय रणनीति फ़्रेमवर्क की घोषणा की। उन्होंने "स्नेहा" के नाम से एक आत्महत्या निरोध संगठन की 24 घंटों की सेवा भी शुरू की।

विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या के मामलों के अध्ययन के बाद तमाम सरकारों और गैर-सामाजिक संगठनों को मिल कर एक ठोस पहल करनी होगी। इसके लिए जागरुकता अभियान चलाने के अलावा हेल्पलाइन नंबरों के प्रचार-प्रसार पर ध्यान देना होगा। इसके साथ ही समाज में लोगों को अपने आस-पास ऐसे लोगों पर निगाह रखनी होगी जिनमें आत्महत्या या अवसाद का कोई संकेत मिलता है। मनोवैज्ञानिक डॉ० दिलीप कुमार बर्मन कहते हैं: "यह काम उतना आसान नहीं है। लेकिन पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को मजबूत कर ऐसे ज्यादातर मामले रोके जा सकते हैं। इसके लिए सबको मिल कर आगे बढ़ना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो यह आंकड़े साल दर साल बढ़ते ही रहेंगे। ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने की ठोस रणनीति व पहल के बिना विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस महज खानापूरी बन कर रह जाएगा।[1]"

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