भारत में अबॉर्शन मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्ननेंसी ऐक्ट 1971 के तहत अलग-अलग परिस्थितियों में कानूनी रूप से वैध है। शांतिलाल शाह कमिटी की सिफारिशों के बाद तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने अबॉर्शन कानूनों को उदार बनाने का फैसला किया और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (1971 का एमटीपी अधिनियम) पारित किया। 2021 में एमटीपी ऐक्ट में कई संशोधन किए गए। 1971 के ऐक्ट के तहत एक गर्भवती महिला केवल 20 सप्ताह तक के ही भ्रूण को ही अबॉर्ट कर सकती थी। इस ऐक्ट के संशोधन के बाद अब अबॉर्शन की सीमा 24 सप्ताह तक कर दी गई है।

भारत में अबॉर्शन से संबंधित कानून का इतिहास

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट 1971 से पहले भारत में अबॉर्शन भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत गैरकानूनी था। इसके तहत अबॉर्शन करवाने वाले के लिए जेल और जुर्माने दोंनो का ही प्रावधान था। साल 1964 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अबॉर्शन से जुड़े सामाजिक-सांस्कृतिक और कानूनी पहलुओं के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन किया। इस समिति का नाम था शांतिलाल शाह समिति। अबॉर्शन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं के अध्ययन के बाद इस समिति ने 1966 में सरकार को यह सुझाव दिया कि भारत में अबॉर्शन कानूनी रूप से वैध होना चाहिए। समिति ने माना था कि अबॉर्शन के कानूनी रूप से वैध होने से महिलाओं के जीवन और स्वास्थ्य से संबंधित खतरों को कम किया जा सकता है।इस समिति की सिफारिशों के बाद 1969 में संसद में मेडिकल टर्मिनेशन बिल पेश किया गया। समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (1971 का एमटीपी अधिनियम पारित किया जिसके तहत महिलाओं को अबॉर्शन का कानूनी अधिकार मिला।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रनेंसी ऐक्ट (1971) एमटीपी ऐक्ट 1971 के मुख्य बिंदु:

अगर गर्भावस्था के कारण महिला की जान को खतरा हो या उससे महिला को शारीरिक या मानसिक नुकसान होने की संभावना हो।

अगर बच्चे के शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग पैदा होने की संभावना है

अगर गर्भावस्था बलात्कार का परिणाम है

अगर गर्भावस्था गर्भनिरोधक के असफलता का परिणाम है।

अगर गर्भ 12 हफ्ते से अधिक का नहीं है तब एक मेडिकल प्रैक्टिशनर की इजाज़त अबॉर्शन के लिए आवश्यक है।

अगर गर्भ 12 से 20 हफ्ते का है तो 2 मेडिकल प्रैक्टिशर की इजाज़त अबॉर्शन के लिए आवश्यक है।

18 साल से कम उम्र की गर्भवती औरत का अबॉर्शन बिना उसके अभिभाव की इजाज़त के नहीं किया जा सकता।

कौन अबॉर्शन कर सकता है?

एमटीपी ऐक्ट के तहत भारत में केवल एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर ही अबॉर्शन की प्रक्रिया कर सकता है।

मेडिकल प्रैक्टिशन जिसके पास इंडियन मेडिकल काउंसिल ऐक्ट 1956 के तहत सारी मेडिकल योग्यता हो।

जिनका नाम बतौर एक मेडिकल प्रैक्टिशनर रजिस्टर हो

जिनके पास एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के लिए ज़रूरी सभी मेडिकल योग्यता और कौशल हो

अबॉर्शन किन जगहों पर किया जा सकता है?

अस्पताल जो सरकार द्वारा स्थापित और संचालित हो एमटीपी ऐक्ट 1971 के तहत जिन जगहों को अबॉर्शन की प्रक्रिया के लिए अनुमति दी गई है

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रनेंसी अमेंडमेंट ऐक्ट 2002

2002 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रनेंसी ऐक्ट 1971 में संशोधन किए गए ताकि अबॉर्शन सुविधाओं की पहुंच अधिक से अधिक लोगों तक हो। इस संशोधन के तहत निम्नलिखित बदलाव किए गए:

ज़िला स्तर पर प्राइवेट स्वास्थ्य केंद्रों को अबॉर्शन की इजाज़त दी गई। 1971 के ऐक्ट में मौजूद शब्द 'पागल'को 'मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति'से हटाया गया। ऐक्ट के प्रावधानों के उल्लंघन की स्थिति में कड़ी सज़ा और जुर्माने को जोड़ा गया।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रनेंसी अमेंडमेंट ऐक्ट 2003

2003 में हुए संशोधन के तहत ज़िला स्तर पर कमिटी बनाने का सुझाव दिया गया ताकि नीतियों का कार्यान्वयन बेहतर तरीके से हो। इस कमिटी में एक महिला, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारी और गैर-सरकारी संगठनों के सदस्यों को शामिल होना अनिवार्य किया गया। चीफ मेडिकल ऑफिसर द्वारा अबॉर्शन केंद्रों के दौरों को अनिवार्य किया गया ताकि वह यह जांच कर सकें कि अबॉर्शन की प्रक्रिया ऐक्ट के प्रावधानों के तहत ही की जा रही है। चीफ मेडिकल ऑफिसर को यह अधिकार दिया गया कि अगर उसे किसी केंद्र पर अबॉर्शन की प्रक्रिया में कोई कोताही दिखती है तो उसके पास उस केंद्र का लाइसेंस रद्द करने का अधिकार होगा।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रनेंसी अमेंडमेंट ऐक्ट 2021

2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रनेंसी ऐक्ट में कई बड़े और ज़रूरी बदलाव किए गए। 29 जनवरी 2020 को, भारत सरकार ने पहली बार MTP संशोधन विधेयक 2020 पेश किया था। एक साल बाद इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया था। 16 मार्च 2021 को इसे एमटीपी संशोधन अधिनियम 2021 के रूप में पारित किया गया। इस संशोधन के तहत निम्नलिखित बदलाव किए गए थे:

1971 के ऐक्ट के तहत एक 12 से 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को अबॉर्ट करवाने के लिए 2 डॉक्टरों की इजाज़त की ज़रूरी होती थी। 2021 के संशोधन के बाद अब 12 से 20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के टर्मिनेशन के लिए सिर्फ 1 डॉक्टर की इजाज़त की ज़रूरत है।

नये संशोधन के तहत एक गर्भवती महिला 20-24 हफ्तों तक की गर्भावस्था को टर्मिनेट करवा सकती है अगर महिला एक रेप सर्वाइवर हो, नाबालिग हो या फिर शारीरिक रूप से विकलांग। इस संशोधन से पहले यह समय सीमा केवल 20 हफ्ते तक की थी।

नये संशोधन के तहत अबॉर्शन की सुविधा के लिए किसी महिला का विवाहित या अविवाहित होना मायने नहीं रखता। एक अविवाहित महिला भी गर्भनिरोध के असफल होने पर हुए गर्भधारण को 20 हफ्तों तक टर्मिनेट करवा सकती है।

24 हफ्ते से अधिक के गर्भ के टर्मिनेशन के लिए एक मेडिकल बोर्ड की अनुमति की ज़रूरत होगी। इस बोर्ड में सरकार द्वारा अनुमोदित स्त्रीरोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट,शिशु रोग विशेषज्ञ का शामिल होना अनिवार्य है।

जो महिला अबॉर्शन करवाना चाहती है उसका नाम या उससे जुड़ी जानकारी कोई भी मेडिकल प्रोफेशनल साझा नहीं कर सकता। अगर उसकी पहचान सामने आती है तो इसके लिए जुर्माने और एक साल की सज़ा का प्रावधान है।

भारत में असुरक्षित अबॉर्शन

यूनाइटेड नेशन पॉपूलेशन फंड की साल 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 67% अबॉर्शन असुरक्षित तरीके से होते हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि असुरक्षित अबॉर्शन के कारण हर दिन भारत में आठ महिलाओं की मौत होती है।

बाहरी कड़ियाँ

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  • [1] The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971