भारत सरकार की नई दूरसंचार नीति
भारत सरकार की नई दूर संचार नीति 1999
(एनटीपी 1999) • प्रस्तावना
दूरसंचार का महत्तव भारत सरकार (सरकार) ने यह माना है कि विश्व-स्तर की दूरसंचार - अवसंरचना तथा सूचना की व्यवस्था करना देश के त्चरित आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है। यह न केवल सूचना-प्रौदयोगिकी के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है, बल्कि देश की समूची अर्थव्यवस्था पर भी इसका व्यापका प्रभाव पडेगा ऐसा भी अनुमान लगाया गया है कि आगे चलकर देश की जीडीपी में इस सेक्टर का बहुत योगदान रहेगा तदानुसार, देश के लिये यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात है, कि उसकी अपनी एक ऐसी व्यापक एवं दूरगामी दूरसंचार नीति हो जो इस उदयोग के विकास के लिये एक संरचना का निर्माण करे। राष्ट्रीय दूरसंचार नीति1994-उद्देश्य एवं उपलब्धियाँ 1994 में, सरकार ने राष्ट्रीय दूरसंचार नीति की धोषणा की, जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण उद्दश्यों को परिभाषित किया गया। इसमें माँग पर टेलीफोन उपलब्ध कराना, उचित मूल्य पर विश्व स्तर की सेवाये प्रदान करना, भारत के प्रमुख विनिर्माण/निर्यात-आधार के रूप में उभरने की बात सुनिश्चित करना तथा सभी गावों में सार्वभौमिक बुनियादी दूरसंचार-सेवायें उपलबध कराना शामिल था। सरकार ने 1997 तक प्रप्त किये जाने वाले कई विशेष लक्ष्यों की भी घोषणा की। राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1994 में 500 की शहरी जनसंख्या के लिये पीसीओ तथा 6 लाख गॉवों में टेलीफोन सुविधा प्रदान करने की तुलना में दूरसंचार विभाग ने प्रति 522 की शहरी जनसंख्या के लिये 1 पीसीओ प्रदान करने का लक्ष्य प्रप्त किया, तथा केवल 3.1 लाख गावों में ही टेलीफोन-सुविधा प्रदान करा पाया जहॉ तक देश में कुल टेलीफोन -लाइनों की व्यवस्था का सम्बन्ध हौ, दूरसंचार-विभाग ने ऑठवी योजना के 7.5 मिलियन लाइनों के लक्ष्य की तुलना में 8.73 मिलियन टेलीफोन लाइनें प्रदान की हैं। राष्ट्रीय दूरसंचार-नीति, 1994 में भी यह स्वीकार किया गया है कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अपेक्षित संसाधन, मात्र सरकारी-स्रोत से ही उपलब्ध नही हो पाएंगे और यह निर्ष्कष निकाला है कि संसाधनों के इस अंतराल को पूरा करने के लिये निजी निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी का होना आवश्यक था। सरकार ने 1990 के प्रारंभ से एक चरणबध्द तरीके से निजी क्षेत्र भागीदारी आमंत्रित की जिसमें शुरू में पेजिंग सेवा-और सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन सेवायें (सीएमटीएस) जैसी मूल्यवर्धित सेवायें और तत्पश्चात स्थिर टेलीफोन सेवायें (एफ एस टी) निजी क्षेत्राप्त को देने का निर्णय लिय। बोली की एक प्रतियोगी प्रक्रिया के बाद, चार माहनगरों में 8 सीएमटी-प्रचालकों, 18 राज्यों के सर्किलों में 14 सीएमटीएस प्रचालकों, 6 राज्यों के सर्किलों में 6 बीटीएस प्रचालकों तथा 27 शहरों एवं 18 राज्यों के सर्किलों में पेजिंग-प्रचालकों को लाइसेंस दिये गये थे। क्लोज्ड यूजर ग्रुपों के लिये डाटा-सेवायें प्रदान करने के लिए वी-सेट सेवाओं को उदार वनाया गया। निजी क्षेत्रों के 14 प्रचालाकों को लाइसेंस जारी किए गये, जिसमें से केवल 9 लाइसेंस धारक काम कर रहे हैं। सरकार ने हाल में निजी प्रचालकों द्वारा इन्टरनैट सर्विस-प्रोविजन (आईएसपी) के लिए नीति धोषित की और इसके लिए लाइसेंस देना शुरू किया है। सरकार ने उपग्रह द्वारा ग्लोबल माबाइल परसनल कम्युनीकेशन (जीएसपीसीएस) प्रारम्भ करने की भी घोषणा की और इसके लिए एक अस्थाई लाइसेंस जारी किया। अन्य प्रत्याशित जीएमपीसीएस प्रचालकों को लाइसेंस जारी करने पर विचार किया जा रहा है। सरकार ने स्वीकार किया है कि अब तक निजीकरण का परिणाम पूरी तरह से संतोषजनक नहीं रहा। यद्यपि, महानगरों और राज्यों में सेल्यूलर माप्रबाइल नेटवर्क योजना में तेजी से वृध्दि हुई है और इस समय इसके एक मिलियन से भी अधिक उपभोक्ता हो गये है, लेकिन अधिकांश परियोजनाओं को मुश्किलों का सामना करना पड रहा है। सेल्यूलर और बुनियादी सेवा प्रचालकों के अनुसार इसका मुख्य कारण इन पिरयोजनाओं द्वारा अनुमान से काफी कम राजस्व की वसूली किया जाना रहा हैं तथा इसके परिणामस्वरूप, प्रचालक अपनी परियोजनाओं के लिये वित्त-व्यवस्था करने में असमर्थ हैं और इस लिये वे अपनी परियोजनाओं को पूरा नही कर पा रहें हैं। निजी प्रचालकों द्वारा लाइसेंस प्राप्त 6 सर्किलों में से केवल दो में ही बुनियादी दूरसंचार सेवाएं शुरू की गयी हैं। इसके कारण, राष्ट्रीय दूरसचार नीति, 1994 के उद्देश्यों में यथा -प्रस्तावित कुछ एक लक्ष्य पूरे नही किये जा सके हैं। राष्ट्रीय दूरसचार नीति, 1994 में हमने जो परिकल्पना की थी, उसकी तुलना में निजी क्षेत्र का प्रवेश कम रह है। सरकार ने, उपराप्रक्त गतिविधियों के प्रति चिन्ता जताई, क्योंकि इससे इस सेक्टर के आगे के विकास पर बुरा प्रभाव पडेगा तथा सरकार ने इस सेक्टर के लिये दूरसचार नीति, के ढॉचे पर नये सिरे से सोचने की आवश्यक्ता को स्वीकार किया है। नई दूरसंचार नीति की आवश्यक्ता राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1994 के पूरे नही किये जा रहे कुछ उद्देश्यों के अलावा हाल ही में दूरसंचार, सूचना-प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता-इलेक्ट्रॉनिक और मीडिया उद्योग में विश्वभर में व्यापक विकास हुआ है। मार्केट और प्रौद्योगिकियॉ दोंनो का एक दूसरे के प्रति अभिमुख होना एक ऐसी वास्तविकता है, जो उद्योग के 'रिएलाइनमेंट' पर दबाव डाल रही है। एक ओर, टेलीफोन और प्रसारण उद्योग एक-दूसरे के बाजार में प्रवेश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर वायरलाइन और वायरलेस-जैसी भिन्न कण्डयूट-प्रणालियों के बीच के अंतर को प्रौद्योगिकी कम कर रही है। अधिकाँश देशों की भांति, हमारे देश में बुनियादी सेल्यूलर, आईएसपी, उपग्रह और केबल टीवी-प्रचालकों को अलग-अलग लाइसेंस जारी किए गऐ हैं। अपना बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए, इनमें प्रत्येक का अपने उद्योग का अलग स्वरूप होगा, कार्य-क्षेत्र में प्रवेश की शर्तें तथा जरूरतें भी अलग-अलग होंगी तथापि, इस अभिमुखता से, अब तकनीकि दृष्टि से, प्रचालक अपनी सुविधाओं से कुछ एसी सुविधायें देने की स्थिति में हो गये हैं जो दूसरे प्रचालकों के लिये आरक्षित हैं। इस मौजूदा नीतिगत ढॉचे से यह भी अपेक्षा की जाती है कि इससे भारत को सूचना-पौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महाशक्ति बनने और देश में विश्व स्तरीय दूरसंचार ढाँचा विकसित करने में सहायता मिलेगी। नई दूरसंचार नीति, 1999 के उद्देश्य एवं लक्ष्य नई दूरसंचार नीति, 1999 के उद्देश्य निम्नानुसार हैः- देश के सामाजिक एवं आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये दूर संचार-सुविधा का होना अति महत्तव पूर्ण हैं सभी नागरिकाप्त के लिये वहनीय और प्रभावकारी सचांर सुविधायें प्रदान करना दूरसचांर नीति की दूर द्रष्टि तथा ल्क्ष्य है। उन सभी क्षेत्रों और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वभौमिक दूरसंचार सेवा की व्यवस्था को बराबर बनाए रखना, जहाँ यह सुविधा उपलब्ध नही करायी गयी है तथा देश की अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने में उच्च स्तर की समर्थ सेवाएं प्रदान करना। • देश के दूरवर्ती, पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों में दूरसंचार सुविधाओं के विकास को प्रोत्साहन देना। • सूचना-प्रौद्योगिकी, मीडिया, दूर संचार और उपभोक्ता-इलेंक्ट्रोनिक की अभिमुख्ता को ध्यान में रखते हुए, एक आधुनिक और सक्षम दूरसंचार का बुनियादी ढॉचा तैयार करना और फिर भारत को सूचना-प्रौद्ययोगिकी में एक महाशक्ति बनने के लिये प्रेरित करना। • पीसीओ को मल्टी मीडिया क्षमता वाले और विशेषकर आईएसडीएन सेवाएं, दूरवर्ती डेटा बेस एक्सेस, सहकारी एवं कम्यूनिटी सूचना प्रणालियों आदि को पब्लिक टेली-इनफो-केन्द्रों में बदलना। • शहरी और ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों में दूरसंचा-सेक्टर को एक समयबध्द तरीके से ऐसे प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में बदलना, जहाँ सभी सेवा-प्रदाताओं को समान अवार मिले सके। • देश में अनुसंधान एवं विकास संबधी प्रयासों को मजबूत बनाना तथा विश्व स्तर की विनिर्माण-क्षमताऐं तैयार करने के लिये एक प्रेरणा शक्ति प्रदान करना और • स्पैक्ट्रम-मैनेजमेंन्ट में कार्य कुशलता एवं पारदर्शिता प्राप्त करना। • देश की रक्षा और सुरक्षा हितों को संरक्षण प्रदान करना • भारतीय दूरसंचार-कम्पनियों को विश्वभर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के योग्य बनाना। उपराप्रक्त उद्देश्यों के उनुसार, राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1999 में विशेष लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाना हैं, वे निम्नानुसार होंगे o वर्ष 2002 तक मॉग पर टेलीफोन उपलब्ध कराना तथा बाद में भी इसे कायम रखना, ताकि वर्ष 2005 तक 7 और 2010 तक 15 का टेली-धनत्तव प्राप्त किया जा सके। o ग्रमीण क्षेत्रों में दूरसंचार के विकास को बढावा देना, उपयुक्त किराया ढॉचा तैयार करके इसे और वहनीय बनाना तथा सभी स्थायी सेवा प्रदाताओं के लिये ग्रामीण संचार प्रदान करने को अनिवार्य बनाना। o वर्ष 2010 तक ग्रामीण टेली-धनत्तव के 0.4 के वर्तमान स्तर को बढ़ाकर 4 तक पहूॅचाना तथा सभी ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय संचारण मीडिया प्रदान करना। o देश के सभी गावों में टेलीफोन -सुविधायें प्रदान करने का लक्ष्य प्राप्त करना व वर्ष 2002 तक सभी एक्सचेन्जों में विश्वसनीय मीडिया प्रदान करना। o वर्ष 2000 तक सभी जिला मुख्यालयों में इंटरनेट-सुविधायें प्रादान करना। o वर्ष 2002 तक 2 लाख से अधिक आबादी वालप्र सभी कसबाप्त में आई-एस-डी-एप्रन सहित उच्च गति डेटा तथा मल्टी मीडिया कप्रपप्रबिलिटी वाली प्रौद्याप्रगिकी प्रदान करना। नया नीतिगत ढॉचा नया नीतिगत ढॉचा, एक ऐसा वातावरण तैयार करने पर केन्दित हो, जो इस क्षेत्र में निवेश को बराबर आकर्षित करता रहे तथा प्रौद्योगिकीय विकास का लाभ उठाकर संचार का बुनियादी ढॉचा तैयार करने में सहायक हो सके। इसके लिये नया नीतिगत ढॉचा दूरसंचार सेवा -क्षेत्र पर निम्नानुसार विचार करेगाः- • सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाता-फिक्स्ड सेवा प्रदाता और केबिल सेवा प्रदाता, जिन्हैं संयुक्त रूप से 'एक्सेस-प्रोवाइडर्स ' कहा गया है। • 'रेडियो पेजिंग -सेवा-प्रदाता ' • 'सार्वजिनिक मोबाइल रेडियो ट्रकिंग -सेवा-प्रदाता '। • राष्टीय लम्बी दूरी के प्रचालक • अतंराष्ट्रीय लम्बी दूरी के प्रचालक • अन्य सेवा प्रदाता • ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनीकेशन बाई सेटलाइट (जीएमपीसीएस) सेवा प्रदाता। • वी-सैट आधारित सेवा प्रदाता। अभिगम्यता प्रदाता सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाता सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाता (सीएमएसपी) को किसी अतिरिक्त लाइसेंस के बिना अपने सेवा क्षेत्र में अपने लंबी दूरी परियात को ले जाने की अनुमति सहित मोबाइल टेलींफोन सेवा प्रदान करने की अनुमति होगी। लाइसेंसधारी सेल्यूलर मोबाईल सेवा प्रदाता को अपने प्रचालन क्षेत्र में किसी अन्य सेवा प्रदाता (किसी अन्य सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाता सहित) के साथ अवसंरचनात्मक भागीदारी सहित, सीधी कनेक्टेविटी की अनुमति होगी। विभिन्न सेवा क्षेत्रों में सेवा प्रदाताओं के बीच इंटरकनेक्टेविटी की समीक्षा भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण के परामर्श से की जाएगी तथा राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा को खोलने के लिये संरचना के एक अंग के रूप में इसकी घोषणा 15 अगस्त 1999 तक कर दी जायगी। सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाता की 1 जनवरी 2000 से राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा शूरू करने के बाद सीधे इंटरकनेक्ट करने की अनुमति होगी। सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाताओं अपने सेवा प्रचालन क्षेत्र में वायस, नान वायस संदेशो, डाटा सेवाओं तथा पीसीओ सहित किसी प्रकार की सेवा प्रदान करने की स्वतंत्रता होगी। इस प्रयोजन हेतु ये सेवा प्रदाता सर्किट तथा/या पैकेट स्विचों सहित किसी प्रकार के नेटवर्क उपस्कर प्रयोग कर सकते है बर्शते कि ये उपस्कर अंतराष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन (आईटीयू) दूरसंचार इंजीनियरी केन्द्र के संगत मानकों के अनुसार है। सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाताओं को प्रत्येक सेवा क्षेत्र के लिये पृथक लाइसेंस दिया जायेगा। यह लाइसेंस प्रारम्भ में बीस वषों की अवधि के लिये दिया जायेगा तथा इसके बाद इसे दस वर्षो की अवधि के लिये बढाया जा सकेगा। इसके लिये सेवा क्षेत्रों को मौजूदा दूरसंचार नीति के अनुसार 4 बडे सर्किलों तथा दूरसंचार सर्किलों की श्रेणियों में बॉटा जायेगा। सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाता चाहें कितने ही सेवा क्षेत्रों के लिये लाइसेंस लेने के पात्र होंगे। प्रत्येक प्रचालक को पर्याप्त आवृति स्पैक्ट्रम की उपलब्धता न केवल इष्टतम बैंडबिडथ मुहैया करवाने के लिये अनिवार्य हैं बल्कि अतिरिक्त प्रचालको के प्रवेश के लिये भी यह जरूरी हैं। आवृति स्पैक्टस बैंड की तत्काल उपलब्धता के आधार पर पहले से ही लाइसेंस प्राप्त दो प्रचालको के अलावा दूरसंचार विभाग/महानगर टेलीफोन निगम लि0, यदि चाहें तो समयबध्द आधार पर तीसरे प्रचालक के रूप में प्रवेश कर सकते हैं। एक ही प्रकार की परिस्थितियों में विभिन्न प्रदाता के बीच बराबरी की सुनिश्चितता के लिये दूरसंचार विभाग को भी लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना होगा। तथापि, चूकिं दूरसंचार विभाग राष्ट्रीय सेवा प्रदाता है तथा उसकी कई ग्रामीण तथा सामाजिक बाध्यताएं है, अतः सरकार दूरसंचार विभाग को पूरे लाइसेंस शुल्क को उपयुक्त प्रतिपूर्ति कर देगी। यह प्रस्ताव है कि स्पैक्ट्रम की उपलब्धता के उभरते परिदृश्य, स्पैक्ट्रम इष्टतम उपयोग बाजार की अपेक्षाएं, प्रतिस्पर्धा तथा जनता के अन्य हितों को घ्यान में रखते हुए समय-समय पर स्पैक्टम के उपयोग की समीक्षा की जानी चाहिये। किसी सेवा क्षेत्र में अधिक प्रचालकों को प्रवेश की अनुमति भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण की सिफारिसों के आधार पर होगी जो इसकी समीक्षा अपेक्षा अनुसार तथा हर हालत में दो वषों में करेगा। सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाताओं से प्रवेश शुल्क का एकबार भुगतान करना अपेक्षित होगा। प्रवेश-शुल्क निर्धारित करने तथा अतरिक्त प्रचालको के चयन का आधार भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किया जायेगा। एक बार के प्रवेश शुल्क के अलावा सेल्यूलर मोबाइल सेवा प्रदाताओं से यह भी अपेक्षा होगी कि वे राजस्व बटवारे के आधार पर लाइसेंस शुल्क का भुगतान करें। नई दूरसंचार नीति के उद्दश्यों को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्ताव किया जाता है कि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण उपयुक्त प्रवेश शुल्क तथा विभिन्न सेवा क्षेत्रों के लिये राजस्व बटवारे की व्यवस्था के बारे में समयबध्द रूप से सिफारिस करेगा। स्थिर (फिक्सड) सेवा प्रदाता स्थिर सेवा प्रदाता को अपने सेवा क्षेत्र में फिक्सड सेवा प्रदान करने के तथा लंबी दूरी परियात के लिये किसी अतरिक्त लाइसेंस के बगैर 'लास्ट माइल' लिंकेज स्थापित करने की अनुमति होगी। फिक्सड सेवा प्रदाताओं के बीच अथवा किसी अन्य सेवा प्रदाता (फिक्सड सेवा प्रदाता सहित) के बीच अपने प्रचालन क्षेत्र में अवसंरनात्मक भागीदारी सहित किसी अन्य सेवा के साथ सीधी कनेक्टिविटी की अनुमति होगी। विभिन्न सेवा क्षेत्रों में विभिन्न सेवा प्रदाताओं के बीच इंटरकनेक्टिविटी की समीक्षा भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण के परामर्श से की जायेगी जिसकी घोषण राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा शुरू करने के लिये ढाँचे के एक अंग के रूप में 15 अगस्त 1999 तक कर दी जायगी। 1 जनवरी 2000 से राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा शुरू करने के बाद फिक्सड सेवा प्रदाता को विदेश संचार निगम लि0 के साथ कनेक्टिविटी की अनुमति होगी। स्थिर सेवा प्रदाताओं को अपने क्षेत्र में अन्य सेवा प्रदाताओं द्वारा मुहैया करवाए गये लस्टमाइल लिकेंज या पारेषण लिकं उपयोग करने की अनुमति भी होगी। अपने सेवा क्षेत्र में स्थिर सेवा प्रदाताओं को वायस नान वायस संदेश डाटा सेवाओं सहित सभी प्रकार की सेवायें प्रदान करने की अनुमति होगी। इस हेतु ये सेवा प्रदाता सर्किट तथा/या पैकेट स्विचों सहित किसी भी प्रकार का नेटवर्क उपस्कर प्रयोग कर सकते हैं। बर्शतें कि ये उपस्कर अंतराष्ट्रीय, दूरसंचार यूनियन (आईटीयू) दूरसंचार इंजीनियरी केन्द्र (टीईसी) के मानकों के अनुसार हों। प्रत्येक सेवा क्षेत्र स्थिर सेवा प्रदाताओं को बिना किसी भेदभाव के लाइसेंस दिया जायेगा। ये लांइसेंस प्रारंभ में 20 वर्षों के लिये दिये जायेंगें तथा इसके बाद इन्हें 10 वर्षों के लिये बढाया जा सकता है। स्थिर सेवा प्रदाता कितने ही सेवा क्षेत्रों के लिये लाइसेंस लेने के प्रात्र होगें। जहां संक्रमण काल में अंतिम रूप से बाजार शक्तियां हों स्थिर सेवा प्रदाताओं की संख्या का निर्धारण करेगी, वहां प्रवेश करने वाले सेवा प्रदाताओं को सावधानी पूर्वक यह निर्णय लेना होगा कि ऐसे सेवा प्रदाता जो गंभीर नही हैं उसे इससे अलग कर दिया जाय तथा नये प्रचालकों को प्रवेश देकर उन्हें स्थापित होने दिया जाये। अतः ऐसे क्षेत्रों के लिये जहां अभी तक लाइसेंस जारी नही किये गये हैं वहां 5 वर्षो के प्रवेश की नीति अपनायी गयी है। सेवा प्रदाताओं की संख्या तथा उनके चयन की पद्यति के बारे में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण की सिफारिसों के आधार पर निर्णय लिया जायेगा, जिसे समयबध्द आधार पर किया जाना चाहिये। स्थिर सेवा प्रदाताओं लाइसेंस धारकों को एक बार प्रवेश शुल्क का भुगतान करना होगा। सभी स्थिर सेवा प्रदाता लाइसेंस धारक राजस्व बटवारे के रूप में लाइसेंस शुल्क का भुगतान करेंगें। यह प्रस्ताव किया जाता हैं कि नयी दूरसंचार नीति के उद्दश्यों को ध्यान में रखतें हुए विभिन्न सेवा क्षेत्रों हेतु लइसेंस शुल्क को उपयुक्त सीमा तथा राजस्व बटवारे के प्रतिशत के बारे में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण समयबध्द आधार पर अपनी सिफारिस करेगा सेल्यूलर की तरह ही डब्ल्यूएलएल के मामले में भी उपयुक्त फ्रिक्वेंसी स्पेक्टम की उपलब्धता न केवल प्रत्येक प्रचालक को इष्टतम बैंडविड्थ प्रदान करने के लिये अनुवार्य हैं बल्कि अतिरिक्त प्रचालकों के प्रवेश हेतु भी जरूरी हैं। यह प्रस्ताव किया जाता हैं कि स्पैक्टम उपलब्धता के उभारते परिदृश्य, स्पेक्ट्रम के स्पेक्ट्रम उपयोग बाजार अपेक्षायें, प्रतिस्पर्धा तथा जनहित की अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए स्पेक्ट्रम उपयोगिता की समीक्षा की जाये। जिन स्थिर सेवा प्रदाताओं को डब्ल्यूएलएल फ्रिक्वेंसी की आवश्यकता होगी तो उन्हें, एफएसपी प्रवेश शुल्क के अलावा एक बार के अतरिक्त भुगतान पर यह फ्रिक्वेंसी दे दी जायगी। प्रवेश शुल्क डब्ल्यूएलएल फ्रिक्वेंसी के आवंटन के बारे में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण सिफारिस करेगा। स्थिर सेवा के सभी प्रचालक जो डब्ल्यूएलएल का उपयोग करते हैं उन्हें राजस्व बटवारे के रूप में लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना होगा। राजस्व बटवारे को यह प्रतिशतता स्थिर सेवा प्रदाता (एफएससी) लाइसेंस शुल्क का भुगतान योग्य प्रतिशतता के अलावा है। ऐसा प्रस्ताव है कि प्रचालनक के विभिन्न सेवा क्षेत्रों के लिये प्रवेश शुल्क का उचित स्तर तथा डब्ल्यूएलएल के लिये राजस्व बटवारे की प्रतिशतता की अनुसशां नई दूरसंचार नीति के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण द्वारा समयबध्द ढंग से की जायगी। केबल सेवा प्रदाता केवल विनिमय अधिनियम 1995 के प्रावधानों के तहत केबल सेवा प्रदाता (सीएमसी) को अपने प्रचालनक के सेवा क्षेत्रों के अंतर्गत लास्ट माइल तक संयोजकता प्रदान करने तथा स्विचड सेवाएं प्रदान करने एवं मीडिया सेवा प्रचालित करने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी, जो अनिवार्य रूप से एकतरफा मनोरंजन संबंधी सेवाएं हैं। केबल सेवा प्रदाताओं तथा उनके प्रचालन के क्षेत्र में किसी अन्य प्रकार के सेवा-प्रदाताओं के बीच सीधी अंतर संयोजकता तथा अन्य सेवा प्रदाताओं के साथ अवसंचरना की सहभागिता की अनुमति होगी। विभिन्न सेवा क्षेत्रों में सेवा-प्रदाताओं के बीच अंतर संयोजकता की समीक्षा भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण के परामर्श से की जाएगी तथा इसकी घोषणा 15 अगस्त 1999 तक राष्ट्रीय लम्बी दूरी की सेवा खोलने के ढांचे के भाग के रूप में घोषित की जाएगी। अभिमुखता को देखते हुए इसकी अधिकाधिक संभावना है कि (वायस डाटा तथा सूचना सेवाओं सहित) दो तरफा संचार केबल नेटवर्क द्वारा प्रदान करना स्थिर सेवा प्रदान करने के बराबर होगा। तद्नुसार यदि सीएसपी द्वारा उनके अपने नेटवर्कों का उपयोग कर उक्त दोतरफा संचार सेवाएं प्रदान की जाती हैं तो उन्हें एक स्थिर सेवा प्रदाता का लाइसेंस प्राप्त करना होगा और स्तरीय सेवा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उन्हें स्थिर सेवा प्रदाता की लाइसेंस शर्तों को मानना होगा। इन्टरनेट टेलीफोनी इस स्थिति में इन्टरनेट टेलीफोन अनुमत्य नहीं होगी, तथापि सरकार प्रौद्योगिकीय परिवर्तन तथा इसके राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव की मॉनिटरिंग करती रहेगी। तथा उपयुक्त समय पर इस मुद्दे की समीक्षा करेगी। रेडियो पेजिंग सेवा प्रदाता रेडियो पेजिंग सेवा प्रदाताओं (आरपीएपी) को अपने प्रचालन के सेवा के अंतगर्त पेजिंग सेवा प्रदान करने की अनुमति होगी। लाइसेंसशुदा रेडियो पेजिंग सेवा प्रदाताओ तथा उनके प्रचालन क्षेत्र में किसी अन्य प्रकार के सेवा प्रताताओं के बीच सेवा क्षेत्रों में अंतर संयोजकता तथा अवसंरचनात्मक भागीदारी की अनुमति होगी। विभिन्न सेवा क्षेत्रों में सेवा प्रदाताओं के मध्य अंतर संयोजकता की समीक्षा की भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण के परामर्श से की जाएगी तथा इसकी घोषणा 15 अगस्त 1999 तक राष्ट्रीय लम्बी दूरी के प्रचालन खोलने के ढांचे के भाग के रूप में की जाएगी। आरपीसी को प्रचलन के प्रत्येक क्षेत्र के लिये गैर-विशिष्ट आधार पर अलग-अलग लाइसेंस प्रदान किया जायगा। इन्हें प्रारंभिक 20 वर्षों के लिये लाइसेंस प्रदाना किया जायगा जिसकी समयावधि बाद में 10 वर्ष और बढा दी जायगी इस उद्देश्य के लिये मौजूदा संरचना के अनुसार सेवा क्षेत्रों के श्रेणीबध्द किया जायगा। रेडियो तथा पेजिंग सेवा प्रदाता किसी भी संख्या में सेवा क्षेत्र के लिये लाइसेंस प्रदान करने के पात्र होंगें। समुचित रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पैक्ट्रम की उपलब्धता न केवल प्रत्येक सेवा प्रदाता की की इष्टतम बैंडविडथ प्रदान करने के लिये आवश्यक हैं, बल्कि अतिरिक्त प्रचालकों के प्रवेश हेतु भी अनिवार्य है। यह प्रस्ताव हैं कि स्पैक्ट्रम उपलब्धता के उभरते हुए परिदृश्य, स्पैक्ट्रम का इष्टतम प्रयोग, बाजार कर आवश्यकताएं, प्रतियोगिता तथा जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर स्पैक्ट्रम के उपयोग की पुनरीक्षा की जानी चाहिये। एक सेवा क्षेत्र में अधिक प्रचालकों का प्रवेश टीआरएआई की सिफारिसों को आधार पर होगा जो कि यथापेक्षित रूप से हर हालत में दो वर्षों के अंदर ही इसकी पुनरीक्षा करेगा। रेडियों पेजिंग के लाइसेंस धारक एकबार प्रवेश शुल्क देंगें। प्रवेश शुल्क का निर्धारण और अतरिक्त प्रचालकों का चयन, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की सिफारिसों के आधार पर किया जायेगा। रेडियों पेजिंग के सभी लाइसेंसधारक राजस्व शेयर के रूप में लाइसेंस शुल्क का भुगतान करेंगें। राजस्व बटवारे का प्रतिशत, आरपीएसपी द्वारा अर्जित समस्त संकलन रेडियों पेजिंग राजस्व पर लागू होगा। यह प्रस्ताव किया जाता हैं। कि प्रवेश शुल्क का उपयुक्त स्तर और विभिन्न प्रचलन क्षेत्रों के लिये राजस्व शेयर की व्यवस्था की सिफारिस नई दूरसंचार नीति के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए टी-आर-ए-आई द्वारा समयबध्द ढंग से की जायेगी। इसके अतरिक्त भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण तकनीकि व्यवहार्यता को देखते हुए रेडियों पेजिंग सेवा प्रदाता तथा अन्य अभिगम्यता प्रदाताओं के मध्य राजस्व बटवारे की व्यवस्था की जाँच व अनुशंसा भी करेगा। पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सेवा प्रदाता पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सर्विस प्रोवाइडर्स (पीएमआरटीएसपी) को उनके प्रचलन सेवा क्षेत्र के भीतर मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सेवा प्रदान करने की अनुमति दी जायेगी। लाइसेंसीकृत पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सर्विस प्रोवाइडर्स और किसी अन्य प्रकार की सेवा प्रदाता के बीच उनके प्रचलन क्षेत्र में सीधी तरह संयोजकता की अनुमति सीएमएसपी लाइसेंस को ध्यान में रखते हुए विधिक अडचनों की जॉच करने के पश्चात दी जायेगी। पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सर्विस प्रोवाइडर्स के प्रचलन के प्रत्येक सेवा क्षेत्र के लिये गैर विशिष्ट आधार पर अलग-अलग लाइसेंस प्रदान किया जायेग। लाइसेंस प्रारंभ में 20 वर्ष की अविध के लिये प्रदान किया जायेगा और इसके पश्चात उसकी अवधि 10 वर्ष तक और बढा दी जायगी। इस उद्देश्य हेतु सेवा क्षेत्रों के विद्यमान ढाँचे के अनुसार श्रेणीबद्य कर दिया जाएगा। पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सर्विस प्रोवाइडर्स सेवा क्षेत्रों की किसी संख्या के लिये लाइसेंस प्राप्त करने के पात्र होंगे। पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सर्विस प्रोवाइडर्स लाइसेंसधारी प्रदाताओं को एक बार प्रवेश शुल्क का भुगतान करना आवश्यक होगा। प्रवेश शुल्क के निर्धारण के आधार पर तथा अतरिक्त चालको के चयन के आधार की अनुशंसा भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण द्वारा की जायेगी। पब्लिक मोबाइल रेडियो ट्रंकिंग सेवा के लाइसेंसधारी प्रदाताओं के एक बार प्रवेश शुल्क का भुगतान करने के अलावा उन्हें राजस्व शेयर पर लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना आवश्यक होगा। यह प्रस्ताव किया जाता हैं कि नई दूरसंचार नीति के उद्दश्यों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न सेवा क्षेत्रों के लिये प्रवेश शुल्क के उपयुक्त स्तर तथा राजस्व शेयर की प्रतिशतता की व्यवस्था के बारे में अनुसंसा भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण द्वारा की जाएगी। राष्ट्रीय लंबी दूरी के प्रचालक सेवा क्षेत्र से परेय, लंबी दूरी की राष्ट्रीय सेवा निजी प्रचालकों के लिये प्रतियोगिता हेतु 1 जनवरी 2000 से आरंभ होगी। देश में लंबी दूरी की बैंडविड्थ की संरचना को बढावा देने के लिये उपभाक्ताओं को चयन का विकल्प प्रदान करने तथा प्रतिस्पर्धा को बढावा देने के लिये सभी राष्ट्रीय लंबी दूरी के प्रचालकों को उपभोक्ताओं तक अभिगम्यता के लिये सक्षम होना होगा। उपयुक्त लक्ष्य की प्राप्ति को ध्यान में रखते हुए सभी अभिगम्यता प्रदाताओं के आदेशात्मक रूप से राष्ट्रीय लंबी दूरी के प्रदाताओं के मध्य से लंबी दूरी को काल की जा सके। इस उद्देश्य के लिये निबंधन और शर्तें तथा अन्य रूपात्मकताएं टी-आर-ए-आई के साथ परामर्श से तैयार की जाएंगी और इन्हें 15 अगस्त 1999 तक घोषित कर दिया जाएगा। निबंधन तथा शर्तों में प्रचालकों की संख्या राजस्व के बॉटने के आधार पर लाइसेंस की शर्तों तथा अन्य संबधित मामलों को उल्लेख्य भी किया जाएगा। लंबी दूरी के राष्ट्रीय डाटा संचार के लिये, पब्लिक और प्राइवेट पॉवर पारेषण कंपनियों के मौजूदा बैक बोन नेटवर्क/रेलवे/जीएआईएल/ओएनसीजी इत्यादि के लिये तत्काल तथा राष्ट्रीय लंबी दूरी के वायस संचारण के लिये 1 जनवरी 2000 से अनुमति दी जाएगी। डोमेस्टिक टेलीफोनों के लिये रीसेल की अनुमति दी जायेगी। और उसकी प्रक्रियाओं की घोषणा राष्टीय लम्बी दूरी की सेवा शुरू करने के साथ-साथ 15 अगस्त 1999 तक कर दी जायेगी। अंतराष्ट्रीय लंबी दूरी की सेवा पर री-सेल की अनुमति वर्ष 2004 तक नहीं दी जयेगी। अंतराष्ट्रीय लंबी दूरी की सप्रवाएप्रं अंतराष्ट्रीय टेलीफोन सेवा शुरू करने के विषय पर प्रतिस्पर्धा की वर्ष 2004 तक समीक्षा की जायेगी। अन्य सेवा प्रदाता टेली-बैंकिंग, टेली-मेडिसिन, टेली एजूकेशन, टेली-ट्रेडिंग, टेली-कामर्स जैसी अन्य सेवाओं के प्रदाताओं के आवेदन के लिये विभिन्न अभगम्यता प्रदाताओं द्वारा प्रदान की गयी अवस्थापना का इस्तेमाल करके प्रचालन को अनुमति दी जायेगी। इसके लिये कोई लाइसेंस शुल्क नहीं लिया जायेगा। परंतु पेश की जाने वाली विशिष्ट सेवाओं के लिये पंजीकरण आवश्यक होगा। परंतु पेश की जाने वाली विशिष्ट सेवाओं के लिये पंजीकरण आवश्यक होगा। ये सेवा प्रदाता अन्य आभिगम्यता प्रदाताओं के सेवा क्षेत्रों का उल्लंघन नहीं करेंगें और वे स्विचड टेलीफोन प्रदान नही करेंगें। ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनीकेशन सर्विसिज सरकार ने भारत में जीएसपीसीएस मार्केट खोली हैं और इसके लिये एक अंतिम लाइसेंस जारी किया है। अनंतिम लाइसेंस की शर्तों को टी आर आई के परामर्श के साथ 30 जून 1999 तक अंतिम रूप दिये जाने की आवश्यक्ता होगी। भारत से शुरू होने वाली और भारत में आने वाली सभी कालें वीएसनएल गेटवे से गुजरेंगी, अथवा बाईपास के मामले में भारतीय गेटवे में इन कालों की निगरानी किया जाना संभव होना चहिये। यदि गेटवे बाई पास्ड हों, तो वी-एस-एन-एल को इसकी भी प्रतिभूति की जानी हैं। जीएमपीसीएस प्रचालक वॉयस और नॉन-वॉयस संदेशों, डाटा सेवा तथा सूचना तथा सेवायें प्रदान करने में स्वतंत्र हैं, इसके प्रयोजनार्थ प्रचालक सर्किट तथा/अथवा पैकेट स्विचों सहित किसी भी तरह के नेटवर्क उपस्कर का इस्तेमाल कर सकते हैं बशर्ते यह कि यह उपस्कर संबध्द अंतराष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन (आईटीयू) दूरसंचार इंजीनियरी केन्द्र (टीईसी) मानको को पूरा करते हों। सरकार द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से प्रस्तावों की जांच कर लेने के बाद लाइसेंस दिये जायेंगें। नयी दूर संचार नीति के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, उपयुक्त प्रवेश शुल्क /राजस्व की हिस्सेदारी के ढॉचे की सिफारिश टीआरएआई द्वारा की जायेगी। सेटकॉम नीति सेटकॉम नीति में प्रयोक्ताओं के लिये व्यवस्था होगी कि वे घरेलू/विदेशी दोनों उपग्रहों के माध्यम से टाँसपार्डर क्षमता का लाभ उठा सकें। तथापि यह व्यवस्था अंतरक्षि विभाग को परामर्श से की जानी होगी। मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय सेवा प्रदाता नीति के तहत, डाटा के लिये अंतर्राष्ट्रीय लंबी दूरी संचारण माध्यम शुरू हो गया है। इस उद्देश्य के लिये सेटकॉम का इस्तेमाल करने हेतु गेटवे की अनुमति जी जायेगी। यह भी निर्णय लिया गया है कि संचार के प्रयोजनार्थ प्रायुक्त किये जाने वाले केयू फ्रिक्वेंसी बैंड की अनुमति दी जायेगी। वी-सेट सेवा प्रदाता वी-सेट सेवा प्रदाताओं को शुरू के 20 वर्षों के लिये गैर विशिष्ट आधार पर पृथक लाइसेंस प्रदान किये जायेंगें और इसके बाद इसकी अवधि 10 वर्ष के लिये बढा दी जायेगी। विभिन्न सेवा क्षेत्रों में सेवा प्रदाताओं के बी अंतर संयोजकता की समीक्षा टीआरएआई के परामर्श से की जायेगी और राष्ट्रीय लंबी दूरी सेवा शुरू करने के लिये ढांचे के भाग के रूप में इसकी धोषणा 15 अगस्त 1999 तक कर दी जायेगी। वी-सेट सेवा प्रदाताओं को गैर-विशिष्ट आधार पर पृथक लाइसेंस प्रदान किये जायेंगें प्रारंभ में लाइसेंस 20 वर्षों के लिये प्रदान किये जायेंगें बाद इसकी अवधि 10 वर्षों के लिये बढा दी जायेगी। वी-सेट लाइसेंस धारकों से एक बार प्रवेश शुल्क का भुगतान करना अपेक्षित होगा। प्रवेश-शुल्क निर्धारित करने तथा अतरिक्त प्रचालकों के चयन का आधार, भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किया जायेगा। एक बार के प्रवेश शुल्क के अलावा, वी-सेट लाइसेंस धारकों से ये भी अपेक्षा होगी वे राजस्व बटवारे के आधार पर लाइसेंस शुल्क का भुगतान करें। नई दूरसंचार नीति के उद्दश्यों को ध्यान में रखते हुए यह प्रस्ताव किया गया कि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण उपयुक्त प्रवेश शुल्क तथा राजस्व बटवारे की व्यवस्था के बारे में समयबध्द रूप से सिफारिश करेगा। इलेक्ट्रानिक कॉमर्स ऑन लाइन इलेक्ट्रानिक कॉमर्स को बढावा दिया जायेगा ताकि सूचना अबाघ्य रूप से पहुॅचायी जा सके। राष्ट्रीय मार्गो पर 10 जीबी के पर्याप्त बैंड विधि विकसित करने तथा कतिपय संकुलित महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मार्गों पर टैराविट्स की आवश्यकता का शीघ्र पता लगाया जाएगा ताकि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और इलेक्ट्रांनिक कॉमर्स के विकास मे कोई बाधा उत्पन्न न हो। मौजूदा प्रचालकों की समस्याओं का समाधान नये नीतिगत ढांचे में उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मक प्रवृति को पर्याप्त रूप से पुनः परिभाषित करने का प्रयास किया गया है जो नये लाइसेंस धारको पर लागू होगी। तथापि, सरकार ने सेल्यूलर मोबाइल सेवाओं, रेडियो पेजिंग सेवाओं, इंटरनेट सेवाओं आदि के लिय मल्टीपल लाइसेंस भी जारी किये हैं। सरकार का इरादा यह हैं कि मौजूदा प्रचालकों की समस्याओं का संतोषजनक समाधान इस ढंग से किया जाय जो उनकी संविदात्मक दायित्वों के अनुरूप हों तथा कानूनी तौर पर तर्कसंगत हों। दरसंचार विभाग का पुनर्गठन आमतौर पर पूरे विश्व में दूरसंचार क्षेत्र के विकास में सरकार का अपना प्रचालक प्रमुख भूमिका अदा करता है। भारत में, दूरसंचार विभाग ने 1 अप्रैल 1992 की 58.1 लाख लाइनों को बढा कर दिसंबर, 1998 में 191 लाख लाइनों तक पहुॅचा कर अपने दायित्तव का प्रभावशाली ढंग से निर्वाह किया है। सीएबीआर ने यह 20 प्रतिशत की वृध्दि दर्शायी गयी हैं दूरसंचार विभाग को उम्मीद हैं कि वह इस क्षेत्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभाता रहेगा। इस समय, लाइसेंस प्रदान करना, नीति निर्माण तथा सेवा व्यवस्था संबधी कार्य एक प्राधिकरण के अधीन हैं। सरकार ने यह निर्णय लिय है कि दूरसंचार विभाग के नीति और लाइसेंस कार्यें को निगम बनाने के प्रारंभिक चरण के रूप में एक प्रथक दूरसंचार सेवा विभाग का गठन करके सेवा कर्यों से अलग करने का निर्णय लिया हैं। दूर संचार विभाग का निगमीकरण सभी स्टेकहोल्डरों के हितों को ध्यान में रखकर वर्ष 2001 तक किया जायेगा। निगमित दूरसंचार विभाग के साथ एमटीएनएल/वीएसएनएल के सभी प्रकार के भावी संबंध (प्रतिस्पर्धा, संसाधनों में वृध्दि करना आदि) वाणिज्यिक सिध्दांतो पर आधारित होंगे। एमटीएनएल/वीएसएनएल तथा निगमित दूरसंचार विभाग के सहकार्यों का इस्तेमाल अन्य देशों में प्रचलन के नए परिदृश्य स्थापित करने में किया जायेगा। स्पेक्ट्रम प्रबंध नई प्रौद्योगिकीयों के आने तथा दूरसंचार सेवाओं की बढती हुई माँग से, स्पेक्ट्रम की मांग में कई गुना वृध्दि हुइ है। अतः यह जरूरी हो गया है कि स्पेक्ट्रम का कुशलतापूर्वक, किफायती, नियंत्रित और इष्टतम उपयोग किया जाय। सेवा में फ्रिक्वेंसी स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने के लिये इसके आवंटन तथा इसे विशिष्ट शताब् के तहत विभिन्न प्रयोक्ताओं को उपलब्ध कराने की एक पारदर्शी प्रक्रिया का होना आवश्यक है। राष्ट्रीय फ्रिक्वेंसी आवंटन योजना (एनएफसी) पिछली बार 1981 में स्थापित की गयी थी और तब से इनमें समय - समय पर संशोधन किये जाते रहे हैं। नई पौद्योगिकीयों के आने से, यह जरूरी हो गया है कि एनएफसी को पूरी तरह संशोधित किया जाय ताकि यह सभी प्रयोक्ताओं के वीच देश में विकास विनिर्माण और स्पैक्ट्रम उपयोगिता के क्रियाकलापों के लिये आधार बन सके। इस समय एनएफसीकी समीक्षा की जा रही हैं संशोधित एनएफसी-2000, वर्ष 1999 के अंत तक सार्वजनिक कर दी जायेगी जिसमें सुरक्षा संबंधी सूचना को छोडकर विभिन्न सेवाओं के लिये फ्रिक्वेंसी आवंटन के बारे में सूचना का ब्यौरा दिया जायेगा। एनएफसी समीक्षा दो साल के अंतर की जायेगी और जो अंतराष्ट्रीय दूरसंचार संघ के रेडियो विनियमों के अनुसार होगी। मौजूदा स्पेक्ट्रम की पुनः स्थापना और क्षतिपूर्ति • संचार सेवाओं के लिये स्पेक्ट्रम की बढती हुई मांग को ध्यान में रखते हुए, पर्याप्त स्पैक्ट्रम उपलब्ध कराने की आवश्यक्ता है। • रक्षा विभाग और अन्यों को उपयुक्त फ्रिक्वेंसी बैंड प्रदान किये जाते रहें हैं और इन्हें पुनः स्थापित करने के प्रयास किये जायेंगें ताकि लागत प्रभावी ढंग से स्पेक्ट्रम का अनुकूलत्म प्रयोग किया जा सके। पुनः स्थापना के लिये क्षतिपूर्ति सरकार द्वारा वसूल किये गये स्पेक्ट्रम शुल्क और राजस्व शेयर से प्रदान की जाये। • स्पेक्ट्रम आवंटनों की योजनाबध्द तरीके से समीक्षा करने की आवश्यक्ता है ताकि सेवा प्रदाताओं को अपेक्षित फ्रिक्वेंसी बैंड उपलब्ध हो सकें। फ्रिक्वेंसी स्पेक्ट्रम के आवंटन की एक पारदर्शी प्रक्रिया रखने की जरूरत है जो प्रभावकारी एवं सक्षम हो। इसकी आईटीयू के मार्ग निर्देशनों के परिप्रेक्ष्य में पुनः जॉच करनी होगी। फिलहाल के लिये निम्नलिखित कार्यवाही की प्रक्रिया अपनानी होगीः • स्पेक्ट्रम के उपयोग का शुल्क वसूला जायेगा। • स्पेक्ट्रम उपलब्धता की अवधिक समीक्षा करने और व्यापक आवंटन नीति के लिये बेतार आयोजना समन्वय समिति (डब्ल्यूपीसीसी) के नाम से पुकारे जाने वाले अधिकार प्राप्त अंतर मंत्रालयी समूह का गठन, संचार मंत्रालय के भाग के रूप में किया जायेगा। • अगले तीन महीनों डब्ल्यूपीसी स्कंध में व्यापक रूप से कम्प्यूटरीकृत किया जायेगा ताकि वर्ष 2000 के अंत तक सभी कार्यों को पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत करने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। सार्वभौमिक सेवा बाध्यता सरकार वहनीय और वाजिब मूल्यों पर बुनियादी दूरसंचार सेवायें लोगों तक पहुॅचाने के लिये वचनबध्द है। सरकार निम्नलिखित सार्वभौमिक सेवा लक्ष्यों को प्राप्त कर रही हैः o वर्ष 2000 तक देश के उन शेष 2.9 लाख गावों में वॉयस और कम गति डाटा सेवा प्रदान करना जहाँ अभी तक सेवा प्रदान नहीं की गयी है। o वर्ष 2000 तक सभी जिला मुख्यालयों को इंटरनेट सुविधा देना। o वर्ष 2000 तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मॉग पर टेलीफोन उपलब्ध कराना। सार्वभौमिक दायित्वों को पूरा करने के लिये यूनिवर्सल एक्सेस लेवी के जरिये संसाधनों को जुटाया जायेगा जो विभिन्न लाईसेंसों के तहत सभी प्रचालकों द्वारा अर्जित किये गये राजस्व हिस्से का प्रतिशत होगा। यूनिवर्सल एक्सेस लेवी के लिये राजस्व हिस्से की प्रतिशतता का निर्धारण टीआरएआई के साथ परामर्श करके सरकार द्वारा किय जाएगा। ग्रामीण/दूरवर्ती क्षेत्रों के लिये राजस्व यूएसओ बाध्यता का क्रियान्वयन उन सभी स्थायी सेवा प्रदाताओं द्वारा किया जायेगा। जिन्हें यूनिवर्सल एक्सेस लेवी की निधियों के जरिये वायस की जायेगी। अन्य सेवा प्रदाताओं को भी यूएसओ प्रावधान में भाग लेने के लिये प्रेरित किया जायेगा बशर्ते कि तकनीकी दृष्टि से व्यवहार हो और इस पर होने वाला व्यय यूनिवर्सल एक्सेस लेवी की निधियों से पूरा किया जायेगा। विनियामक की भूमिका उपभाक्ता हितो की रक्षा करने तथा बेहतर प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिये एक प्रभावकारी विनियंत्रण रूप में पर्याप्त संरक्षण संबधी संरचना प्रदान करने को ध्यान में रखते हुए जनवरी, 1997 में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) का गठन किया गया था। सरकार एक व्यापक अधिकारयुक्त सशक्त एवं स्वतंत्र विनियामक के लिये तथा एक ऐसे प्राधिकरण जो अपना कार्य प्रभावी ढंग से करे, के लिये वचनबध्द है। इस उद्देश्य की प्रगति के लिये निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुपालन करना होगा। o भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण को सेवा प्रदाताओं को निर्देशन जारी करने के लिये टीआरएआई अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत पर्याप्त सरंक्षण पर्याप्त आधिकार दिया गया है। इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत टीआरएआई के पास प्रदाताओं के बीच विवादों को हल करने के लिए न्याय-निर्णय देने का पूरा अधिकार है। न्याय-निर्णय किन-किन क्षेत्रों में देना है, यह सुनिश्चित करने के लिए यह स्पष्ट किया जाएगा कि टीआरएआई के पास धारा-13 के अंतर्गत सरकार (इसकी भूमिका सेवा प्रदाता के रूप में है) को निर्देश देने का अधिकार है और इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत टीआरएआई के पास सरकार भूमिगत सेवा प्रदाता के रूप में है और किसी अन्य सेवा प्रदाता के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों पर निर्णय देने का अधिकार है। o सरकार (इसकी भूमिका लाइसेंसदाता के रूप में है) और किसी लाइसेंस धारक के बीच विवादों के समाधान के लिए टीआरएआई को माध्यस्थम संवंधी कार्य सौपा जाएगा। o सरकार भविष्य में नए लाइसेंस जारी करने के मुद्दे पर निर्णय लेने के पूर्व नए लाइसेंसों की अवधि एवं संख्या के संबंध में निरंतर टीआरएआई की अनुसंसा मांगेगी। लाइसेंसदाता और नितिनिर्माता के कार्य सरकार द्वारा अपनी संप्रभु क्षमता के अनुसार निष्पादित किय जाते रहेंगे। कार्यकलापों के संबंध में यदि टीआरएआई को अनूशंसात्मक भूमिका सौंपी जाती है तो सरकार के लिए यह सांविधिक रूप से अनिवार्य नहीं होगा कि वह टीआरएआई की सिफारिशें मांगे। अन्य मुद्दे मानकीकरण एकीकृत दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के उद्देश्य से, उपस्कर तथा सेवाओं के संबंध में, दूरसंचार इंजीनियरी केन्द्र (टीईसी) द्वारा संयुक्त मानक विनिर्दिष्ट किए जाएंगे। टीईसी, विभिन्न सेवा पदाताओं के संबंध में इंटरकनेक्ट तथा इन्टरफेस अनुमोदन भी प्रदान करता रहेगा दूरसंचार उपस्कर विनिर्माण देश में ही इस्तेमाल तथा निर्यात, दोनों उद्देश्यों से देश में दूरसंचार उपस्कर विनिर्माण को बढावा देने के लिए, सरकार स्वदेशी उपस्करों का इस्तेमान करने वाले सेवा प्रदाताओं को उपयुक्त प्रोत्साहन देने के साथ-साथ संचार क्षेत्र को आवश्यक सहायता एवं प्रोत्साहन देगी। मानव संसाधन विकास तथा प्रशिक्षण मानव संसाधनों को वास्तविक संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। दूरसंचार के सभी क्षेत्रों के लिए मानव संसाधन के विकास तथा इन क्षेत्रों में इस सुविज्ञता के विस्तार पर बल दिया जाएगा। अन्य देशों को भी उक्त सुविज्ञता उपलब्ध कराई जाएगी। दुरसंचार अनुसंधान एवं विकास यह मानते हुए कि दूरसंचार, अन्य प्रौद्योगिकियों के विकास हेतु एक पुर्वापेक्षा है, दूरसंचार एवं विकास (आरएण्डडी) कार्यकलापों को प्रोत्साहित किया जाएगा। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय करेगी कि संचार उद्योग में सेवा प्रदान करने तथा विनिर्माण के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्यो में पर्याप्त निवेश किया है। स्वदेशी ओद्योगिक विकास तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण्् के कार्य को तेज करने के उद्देश्य से स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास कार्यो को सक्रिय रूप से बढावा दिया जाएगा। दुरसंचार सेवा प्रदाता तथा विनिमार्ताओं के सहयोग से प्रमुख तकनीकी संस्थाओं द्वारा अनुसंधान एवं विकास कार्यों को शुरू करने का बढावा दिया जाएगा तथा दूरसंचार तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहु-आयामी अनुसंधान एवं विकास कार्यकलाप विकसित किए जा सकें। आपदा प्रबंधन आपदाओं की भविष्यवाणी, निगरानी तथा आपदाओं की अग्रिम चेतावनी, विशेषकर-सूचनाओं के अग्रिम प्रसार में स्थलीय तथा उपग्रह दूरसंचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग में आने वाली प्रौद्योगिकियों को अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढावा दिया जाएगा। आपदा प्रबंधन टेलीफोनों तथा सीमा पार दूरसंचार के निर्बाध प्रयोग के लिए उपयुक्त विनियामक ढंग विकसित करने हेतु वित्तीय प्रतिबध्दता को अनिवार्य बनाया जाएगा। दूरस्थ क्षेत्र टेलीफोनी ग्रामीण टेलीफोनी, पूर्वोत्तर क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर तथा अन्य पर्वतीय क्षेत्रों, जनजातीय क्षेत्रों का निर्धारण विशेष ध्यान दिए जाने योग्य क्षेत्र के रूप में किया जाए ताकि वहां दूरसंचार का त्वरित विकास किया जा सके। जहां कहीं भी आवश्यक होगा रक्षा विभाग की मदद ली जाएगी। दूसंचार उपस्कर एवं सेवाओं का निर्यात दूरसंचार उपस्कर एवं सेवाओं के निर्यात को सक्रिय बढावा दिया जाएगा। विभिन्न दूरसंचार विनिर्माताओं तथा सेवा प्रदाताओं की मिली-जुली योग्यताओं का दोहन करके, निर्यात हेतु एकीकृत समाधान मुहैया करवाने में इनका प्रयोग किया जएगा। राइट ऑफ वे सरकार ने माना है कि दूरसंचार नेटवर्क का समय पर क्रियान्वयन करने के लिए सभी सेवा प्रदाताओं के लिए राइट ऑफ वे क्लीयरेंस के लिए शीघ्र मंजूरी देना अति महत्त्वपूर्ण होता है। विधान में परिवर्तन भारतीय दूरसंचार प्रणाली को इस समय भारतीय तार-अधिनियम, 1885 (भा.ता.अ. 1885) तथा बेतार अधिनियम, 1933 के प्रावधानों के तहत नियंत्रित किया जाता है। 1992 से दूरसंचार क्षेत्र में कई व्यापक परिवर्तन हो चुके हैं, आईटीए 1885 को बदलकर उसके स्थान पर एक अग्रदर्शी अधिनियम अपनाए जाने की आवश्यकता है।
इन्टरनेट सेवा दाता (आई एस पी) के लिए मार्गदर्शन एवं सामान्य सूचना (सं. 845-51/97- वैस)
1.श्श्श् इन्टरनेट सेवा देने के लिए लाइसेंस प्रदान करने हेतु आवेदनों / प्रस्तावों का आमंत्रण (आई एस पी - इन्टरनेट सेवा दाता लाइसेंस) 1.1 भारत के राष्ट्रपति की ओर से गैर अनन्यत; आधार पर लाइसेंस पर इन्टरनेट सेवा प्रदान करने के लिए पंजीकृत भारतीय कम्पनियों से प्रस्ताव आमन्त्रित किए जाते हैं। 2. सामान्य एवं वाणिज्यिक सूचना 2.1 पात्रता मानदण्ड यह आमंत्रण किसी भारतीय पंजीकृत -कम्पनी के लिए खुला है। कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत भारत में पंजीकृत कोई कम्पनी प्रस्ताव देने क लिए पात्र होगी। सेवा संचालित करने के लिए लाइसेंस उन्हीं प्रस्तावक कम्पनियों को दिया जाएगा जिन्हें पात्र पाया जाता है तथा जो अपवेदन प्रपत्र में दी गई सभी अपेक्षाओं को पूरा करती हो। विदेशी इक्विटी, यदि है, तो वह सरकार की नीति एवं समय-समय पर जारी मार्ग -निर्देशों के अनुसार होगी। वर्तमान में 49 प्रतिशत तक विदेशी इक्विटी की अनुमति है। आवेदक कम्पनी के पास सूचना प्रौद्योगिकी या दूरसंचार सेवा में कोई पूर्व अनुभव का होना जरूरी नहीं है। 2.1 सेवा क्षेत्र प्रत्येक सेवा क्षेत्र के लिए किसी आवेदक कम्पनी को अलग से लाइसेंस जारी किया जाएगा। इस प्रयोजन के लिए देश को निम्नलिखित तीन श्रेणियों के अलग-अलग सेवा क्षेत्रों में विभक्त किया गया है :- (1) श्रेणी 'क ' - इस श्रेणी में भारत संघ की क्षेत्रीय अधिकारित शामिल है जिसमें वे क्षेत्र शामिल नहीं होंगे जिनहें समय समय पर जारी अधिसूचनाओं द्वारा छोड़ दिए जाने के लिए विनिर्दिष्ट किया जाएगा। (11) श्रेणी 'ख ' - 20 क्षेत्रीय दूरसंचार खण्डों मे से कोई, चार मेट्रो टेलिफोन जिलो अर्थात दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता या चेन्नई तथा चार प्रमुख टेलिफोन जिलों अर्थात अहमदाबाद, बंगलौर, हैदराबाद तथा पुणे श्रेणी 'ख ' सेवा क्षेत्र हैं। चार मेट्रो टेलिफोन जिलें (दिल्ली, चेन्नई, कलकत्ता तथा मुंबई) किसी दूरसंचार खण्ड के भाग नहीं हैं जब कि चार प्रमुख टेलिफोन जिले (अहमदाबाद, बंगलौर, हैदराबाद तथा पुणे) अपने -अपने दूरसंचार खण्ड के हिस्से हैं। (111) श्रेणी 'ग ' - दूरसंचार विभाग का कोई द्वितीयक स्विचिंग क्षेत्र जिसकी भौगोलिक सीमाएं 1.4.98 के अनुसार नियत हो, एक पृथक श्रेणी 'ग'सेवा क्षेत्र के रूप होगा लेकिन इसका अपवाद यह होगा कि दूरसंचार विभाग/ एम टी एन एल के चार मेट्रो टेलिफोन जिलों अर्थात् दिल्ली, मुंबई, कलकत्त तथा चेन्नई एवं चार प्रमुख टेलिफोन जिलों अर्थात् अहमदाबाद, बंगलौर, हैदराबाद तथा पुणे में से प्रत्येक जिस की भौगोलिक सीमाएँ 1.4.98 की स्थिति के अनुसार नियत हो एक पृथक श्रेणी 'ख ' सेवा क्षेत्र होगा। आवेदक को प्रत्येक सेवा केन्द्र के लिए पृथक आवेदन प्रस्तुत करना पड़ेगा। आई एस पी को सेवा क्षेत्र की भौगोलिक सीमाओं के भीतर अपने नोड अर्थात रूट/ सर्वर स्थापित करने पड़ेगे। एक आवेदक कम्पनी को कई लाइसेंस दिए जा सकते हैं। एक ही सेवा क्षेत्र में प्रदान किए जा सकने वाले लाइसेंसों की संख्या की भी कोई सीमा नहीं है। लीज युक्त लाइन ग्राहक उसी सेवा क्षेत्र के होंगे तथापि आई एस पी देश के किसी हिस्से से डायल - अप सेवा प्रदान कर सकता है। विद्यमान ई - मेल तथा वी - सेट सेवा लाइसेंस धारी उपर्युक्त कितने भी सेवा क्षेत्रों के लिए अलग से आई एस पी लाइसेंस भी प्राप्त कर सकते हैं इसके लिए उन्हें मात्रता मानदण्ड को पूरा करना पड़ेगा। 2.3 आवेदन की वैधता प्रत्येक प्रस्ताव आवेदन करने की तारीख से कम से कम छह माह तक के लिए वैध रहेगा।
2.4 प्रक्रिया संबघी फीस प्रस्तावक प्रक्रिया संबंधी फीस की मद में प्रत्येक आवेदन के साथ अलग से प्रत्येक सेवा क्षेत्र के लिए वेतन तथा लेख अधिकारी, मुख्यालय, दूरसंचार विभाग, संचार भवन, नई दिल्ली -110001 के पक्ष में 5000/- रू (केवल पाँच हजार रूपए) का डिमाण्ड ड्राफ्ट संलग्न करेगा। प्रक्रिया संबंधी फीस लौटाई नही जाएगी। 2.5 लाइसेंस का जारी होना प्रस्तावित प्रत्येक सेवा क्षेत्र के लिए भारतीय तार अधिनियमश् 1885, भारतीय बेतार तार अधिनियम, 1993 तथा ट्राई अधिनियम 1997 के संगत प्रावधानों के तहत पृथक लाइसेंस जारी किए जाएंगे। लाइसेंसधारी उक्त अधिनियमों के प्रावधानों तथा उनके तहत बनाए गए नियमों का अनुपालन करेगा। 2.6 दूसरे जालों के साथ अंतर्संबंध दो पृथकत; लाइसेंसशुदा आई एस पी के बीच सीधे अंतर्सबंधन की अनुमति दी जाएगी। प्राधिकृत सार्वजनिक /सरकारी संगठनों को विदेश संचार निगम लिमिटेड गेटवे की मदद के बिना सीधे अंतर्राष्ट्रीय लीज युक्त सर्किटों सहित इन्टरनेट गेटवे सुविधा प्रदान करने दिया जाएगा। निजी आई एस पी को सुरक्षा क्लीयरेंस प्राप्त करने के बाद ऐसे अंतर्राष्ट्रीय गेटवे की सुविधा देने की अनुमित है। इसके लिए निजी आई एस पी का अंत;पृष्ठ दूर संचार प्राधिकरण के पास ही रहेगा। लाइसेंसधारी लीज पर दूरसंचार विभाग, लाइसेंसशुदा मूल सेवा संचालकों, रेलवे राज्य विद्युत बोर्डो राष्ट्रीय पावर ग्रिड निगम या किसी अन्य संचालक से संप्रेषण लिंक प्राप्त कर सकता है जिसे ऐसी लाइनें लीज पर आई एस पी को देने के लिए प्रााधिकृत किया गया हो। लाइसेंसधारी अपने ग्राहकों द्वारा उत्पन्न या समाप्त किए गए यातायात का संचालन करने क लिए अपने सेवा क्षेत्र के भीतर अपने स्वयं के संमप्रेशण लिंक स्थापित कर सकता है। बशर्ते कि ऐसी हैसियतें किनहीं अन्य प्राधिकृत एजेंसियों को उपलब्ध नहीं है एवं इसके लिए भी दूर संचार प्राधिकरण की अनुमति लेनी पड़ेगी। कोई आई एस पी किसी ऐसे वी -सेट ग्राहक को इन्टरनेट सेवा प्रदान कर सकता है (जिसकी जरूरतों को साझे की हब वाणिज्यिक सेवा दाता या अधीनथ निजी वी-सेट जाल के माध्यम से पूरा किया जा सके) जो आई एस पी के सेवा क्षेत्र के भीतर स्थित हो इस प्रयोजन के लिए, किसी प्राधिकृत दाता से ली गई लीजयुक्त लाइन के माध्यम से वी - सेट या वी - सेट हब से आई एस पी नोड/ सर्वर सीधे अंतर्संबंध की अनुमति इन्टरनेट यातायात के लिए ही दी जाएगी। इनसेट सेटेलाइट प्रणाली के माध्यम से बध्द प्रयोक्ता समूह घरेलू 64 के बी पी एस डेटा जाल के लिए विद्यमान लाइसेंस के अन्तर्गत् लाइसेंसधारों को लम्बी दूरी के कैरियर अधिकार नहीं मिलते। आई एस पी अपने स्थानों पर सेवित वी - सेट ग्राहकों का एक मासिक विवरण तथा वी - सेट हब के साथ अंर्तसंबंधन वाली लीजयुक्त लाइनों के ब्यौरे दूरसंचार प्राधिकरण को देगा। तथापि यह जरूरी नहीं है कि वी-सेट हब आई एस पी के सेवा क्षेत्र के भी स्थित हो। लाइसेंस धारी के जाल को अपस्ट्रीम इन्टरनेट ऐकसेस दाताओं (दूरसंचार विभाग / वि. सं. नि . लि. आदि) या प्राधिकरण द्वारा लाइसेंसित किसी अन्य सेवा प्रदाता से अन्तसंबंधन करने के लिए अपेक्षित संसाधनों तथा उसकी व्यवस्था के लिए समय - क्रम के बारे में संबंधित पक्षकारों के आपसी करार होगा। संसाधनों में ये किन्तु ये ही नहीं, शामिल हो सकते हैं, फिजिकल जंक्शन, पी सी एम डेराइव्ड चेनल, निजी वायर, लीज युक्त लाइनें, डेटा सर्किट तथा अन्य जाल अवयव। लाइसेंसधारी संबंधित पक्षों से जाल संसाधन के लिए आवेदन करेगा तथा उनसे उसे प्राप्त करेगा। ऐसे जाल का यातायात इस लाइसेंस करार के विषय क्षेत्र के बाहर है। दूसरे पक्षों से ऐसे संसाधन दिलाने के संबंध में लाइसेंस दाता की कोई जिम्मेदारी नहीं होगा। 2.8 सेवा का वितरण लाइसेंस धारी सेवा प्रदान करने के लिए सभी उपकरणें जिनमें इन्टरनेट यातायात के लिए डी आई ए एस या जी आई ए एस या प्राधिकृत सार्वजनिक / सरकारी संगठनों के साथ संबंधन के उपकरण भी है, के प्रस्थापन, परीक्षण एवं अधिकृतिकरण करने के लिए जिम्मेदार होगा। लाइसेंसधारी लाइसेंस करार पर हस्ताक्षर करने की तिथि से 18 माह की अवधि के भीतर सेवा प्रदान करेगा। सेवा का अधिकृतिकरण का तात्पर्य ग्राहकों को वाणिज्यिक सेवा प्रदान करना होगा। 2.9 लाइसेंस का विस्तार लाइसेंस की वैधता जबतक उसे अन्यथा समाप्त न किया जाए, शुरू में पंद्रह वर्षो के लिए होगी। लाइसेंसधारी द्वारा अनुरोध किए जाने पर दूरसंचार प्राधिकरण द्वारा एक बार में पांच वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए समुचित शर्तों पर विस्तार दिया जा सकता है। इस संबंध में दूरसंचार प्राधिकरण का निर्णय अन्तिम होगा। 3.0 तकनीकी अपेक्षाएँ
निजी आई एस पी इन्टरनेट प्रोटोकॉल (आई पीश्) का प्रयोग करेंगे तथा उस इन्टरनेट सेवा दाता (डी ओ टी / एम टी एन एल / अन्य आई एस पी) की तकनीकी अपेक्षाओं को पूरा करेगा जिसके साथ वह संबध्द है निजी आई एस पी द्वारा प्रयुक्त उपकरण सेवा दाता पर लागू अंत;पृष्ठ / प्रोटोकॉल आपेक्षाओं के अनुरूप होंगे। अंत;पृष्ठ अपेक्षाएँ (1) ग्राहक डायल अप ऐक्सेस मोडेम अंत;पृष्ठ के लिए पी एस टी जाल पर 2 वायर ऐक्सेस आई एस डी जाल मूल तथा प्राथमिक दर अंत;पृष्ठों पर 2 वायर डायल अप एक्सेस
(11) लीजयुक्त लाइन अंत;पृष्ठ 64k, N x 64K या 2.048 Mb/s, N x 2. 048 Mb/s लीज युक्त लाइनें
फ्रेम रिले x .25 ए टी एम जी. 703 कैबिल कानून (कैविल टेलिविजन नेटवर्क्स (विनियमन) अधिनियम, 1995) तथा समय - समय पर संशोधित नियमों के अधीन रहते हुए अतिरिक्त लाइसेंसिगं के बिना प्राधिकृत कैबिल आपरेटर के माध्यम से इन्टरनेट की सुविध ली जा सकती है। आई एस पी के लिए फाइबर आप्टिक या रेडियो संचार के माध्यम से स्थानीय क्षेत्र मे भीतर 'अन्तिम मील ' लिंकेज की मुक्त अनुमति रहेगी। तीब्रता हस्तक्षेप से बचने के लिए, रेडियो लिंकों की दशा में आई एस पी को दूर संचार विभाग के डब्ल्यू पी सी विंग से क्लीयरेंस प्राप्त करना पड़ेगा। 3.1 सेवा की गुणवत्ता इन्टरनेट पर सेवा की गुणवत्ता को अभी तक स्थापित तथा परिभाषित नहीं किया गया है। इस लिए फिलहाल सेवा की गुणवत्ता को परिभाषित नहीं किया जा रहा है। तथापि बाद में प्राप्त अनुभवों एवं इन्टरनेट अभियांत्रिकी कृत्यक बल (आई ई टी एफ) से हुई निविष्टियों के आधार पर इसकी परिभाषा की जा सकती है। 3.2 इन्टरनेट पर टेलिफोन सुविधा इन्टरनेट पर टेलिफोन सुविधा की अनुमति नहीं है। लाइसेंस करार के इस खण्ड का कोई उल्लंघन के लिए लाइसेंस को समाप्त किया जा सकेगा। लाइसेंसधारी अपनी ओर से तथा सरकार द्वारा यदा - कदा निर्दिष्ट किए जाने पर अपने खर्च पर इस बात के लिए भी उपाय करेगा कि इन्टरनेट पर टेलिफोन का अनुचित व्यापार न होन पाए। 3.3 अश्लील सामाग्री तथा साइबर कानूनों की अनुप्रयुज्यता आई एस पी के जाल पर अश्लील, आपत्तिजनक, अनधिकृत या कोई विषय वस्तु जो लिप्यंतरण, बौध्दिक सम्पदा अधिकार, तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलू साइबर कानूनों का अतिल्लंघन करती हो, के प्रदर्शन की अनुमति नहीं है और आई एस पी से आशा की जाती है कि वि इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। इस संबंध में लाइसेंसधारी की ओर से की गई चूक से उत्पन्न कोई क्षति / दावा पूर्णत; लाइसेंस धारी की जिम्मेदारी होगा। 3.4 आई पी पता, प्रभाव - क्षेत्र का नाम लाइसेंसधारी की यह जिम्मेदारी होगी की वह सक्षय प्राधिकारी से आई पी पता तथा प्रभाव - क्षेत्र का नाम प्राप्त कर ले। यदि आई पी पते दूर संचार विभाग से प्राप्त किए जाते हैं तो वे असुवाह्य होंगे तथा संबंधन संविदा समाप्त हाने पर उन्हें दूरसंचार विभाग को वापस करना पड़ेगा। सभी अनुबंधों के साथ प्राथर्ना पत्र की पन्द्रह (15) प्रतियाँ ए डी जी (एल आर) 10वाँ तल, दूरसंचार भवन नई दिल्ली 110001 को भेजी जायें। 4. वित्तीय शर्तें 4.1 लाइसेंस फीस का आकार तथा अदायगी का समय (1) दूरसंचार प्राधिकरण ने 31.10.2003 तक के लिए लाइसेंस फीस को हटा देने का निर्णय लिया है। 1.11.2003 से पहले लाइसेंस प्राप्त करने वाले आई एस पी के लिए भी 1.11.2003 से एक रूपए वार्षिक की मामूली लाइसेंस फीस देय हो जाएगी। (11) निर्धारित दरों पर डी ओ टी / एम टी एन एल / वी एस एन एल / अन्य सेवा दाताओं को देय मोडेम प्रभारों सहित ऐक्सेस एवं अन्य प्रभारों के लिए विल सीधे डी ओटी/ एम टी एन एल/ वी एस एन एल / अन्य सेवा प्रदाता द्वारा दिया जाएगा तथा यह विषय लाइसेंस धारी एवं ऐसे सेवा दाता के मध्य रहेगा। 4.2 निष्पादन बैंक गारंटी प्रत्येक सेवा क्षेत्र के लिए आवेदन के साथ विहित प्रपत्र में (प्रारूप लाइसेंस करार की अनुसूची 'घ') में किसी अनुसूचित बैंक से दो वर्ष के लिए वैध श्रेणी 'क ' सेवा क्षेत्र के लिए 2.00 करोड़ रूपए, प्रत्येक श्रेणी 'ख ' सेवा क्षेत्र के लिए 20.00 लाख रूपए तथा प्रत्येक श्रेणी 'ग ' सेवा क्षेत्र के लिए 3.00 लाख रूपए की निष्पादन बैंक गारंटी दी जाएगी। लाइसेंसधारी लाइसेंस दाता की ओर से माँग किए जाने के बिना निष्पादन बैंक गारंटी के समाप्त होने की तिथि से दो माह पहले अपनी ओर से उसकी वैधता को वर्ष से वर्ष आधार पर अगले एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ा देगा। यदि ऐसा कर परने में कोई चूक की जाती है तो निष्पादन बैंक गारंटी को कोई नोटिस दिए बगैर नगद करा लिया जाएगा। इस निगम का लाइसेंस की शर्तों के अधीन की जाने वाली किसी अन्य कारवाई से कोई संबंध नहीं होगा। 4.3 टैरिफ आई एस पी को अपना स्वयं का टैरिफ नियत करने की स्वतंत्रता होगी। टैरिफ को बाजार माँगो पर निर्धारित होने के लिए छोड़ दिया जाएगा। तथापि लाइसेंस की बैधता के दौरान किसी समय भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण टैरिफ की समीक्षा कर सकता है और उसे नियत कर सकता है जो लाइसेंस धारी के लिए बाह्यकारी होगा।
VI. विदेशी उपग्रह का प्रयोग करके अतरष्ट्रीय गेटवे स्थापित करने के लिये संचालन संबन्धी आवश्यक्ताएं 1. डब्ल्यू पी सी/एस ए सी एफ की निकासी
2. आई टी यू विनिदेर्शो क अनुपात और लाइन ऑ साइट (एल ओ सी) में आने वाली बाधा को दूर करने के लिये एन ओ सी सी द्वारा एन्टीना का परीक्षण
3. गेटवे का इस्तेमाल देश के भीतर ट्रैफिक ले जाने के लिये लिये नही किया जायेगा।
4. गेटवे के दो मार्ग होंगे
5. गेटवे पर जॉच बिंदुओं की व्यवस्था
6. दूरसंचार प्राधिकरण द्वारा गेटवे को चालू करने की स्वीकृति दी जायेगी।
7. गेटवे की संरचना में किसी प्रकार के परिवर्तन के लिये दूरसंचार प्रधिकरण की अनुमति लेनी होगी
8. चूँकि दूरसंचार सेवा प्रदान करने वालों द्वारा उपग्रहों का सीधा उपयोग करने की अनुमति पहली बार दी जा रही है नेटवर्क संचालन नियंत्रण केन्द्र (एन ओ सी सी) के अंतर्गत एक उपयुक्त ट्रैफिक मोनिटरिंग सुविधा शुरू की जायेगी इसके लिये एक समय का प्रभार आई एस पी द्वारा लगाया जायेगा। संदर्भ- दूरसंचार विभाग, भारत सरकार नई दिल्ली www.dot.gov.in