भारत सेवाश्रम संघ
भारत सेवाश्रम संघ एक सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक लोकहितैषी संघटन है जिसमें संन्यासी और नि:स्वार्थी कार्यकर्ता भ्रातृभाव से कार्य करते हैं। सर्वांगीण राष्ट्रीय उद्धार इसका मुख्य उद्देश्य और संपूर्ण मानवता की नैतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति इसका सामान्य लक्ष्य है। भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना प्रखर देशप्रेमी सन्त आचार्य श्रीमद् स्वामी प्रणवानन्द जी महाराज ने सन् १९१७ में की थी।[1] यह संयासियों और नि:स्वार्थ कर्मयोगियों की संस्था है जो मानवता की सेवा के लिये समर्पित है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा पूरे भारत तथा विश्व में कोई ४६ अन्य केन्द्र हैं।
किसी दैवी आपदा, किसी सामाजिक मेले आदि के अवसर पर इसके संयासी कैम्प लगाकर सेवा और सहायता का कार्य आरम्भ कर देते हैं। भारत सेवाश्रम संघ मुम्बई के वाशी गांव में कैंसर के रोगियों के लिये निःशुल्क आवास एवं भोजनादि की व्यवस्था करता है। इसके साथ-साथ भारत सेवाश्रम संघ शिक्षा के प्रसार तथा आदिवासियो एवं वनवासियों के उत्थान के लिये सतत् उद्यमशील है।[2]
संघ के सन्यासियों ने लोक और व्यक्तिगत अभिरुचियों का परित्याग कर देने पर अपना निवास छोड़कर एकांतवास नहीं ग्रहण किया। इसके विपरीत उन्होंने अपने को मानवता की नि:स्वार्थ सेवा के लिए अर्पित कर दिया है और इसके द्वारा वे ऊँची योग्यता प्राप्त करने और सर्वशक्तिमान् की यथार्थता को निरूपित करने का प्रयास करते हैं।
उद्गम
संपादित करेंआचार्य स्वामी प्रणवानnद जी, जिन्हें हम सर्वोच्च आध्यात्मिक लौहकांतमणि की संज्ञा दे सकते हैं, इस संघ के संस्थापक थे।
इसके पार्श्व इतिहास का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि विष्णुचरण दास नामक शिव के अनन्य भक्त पर एक बार क्रमश: अनेक विपत्तियाँ पड़ीं। इनके शमन और शिव को संतुष्ट करने के हेतु आपने वर्ष भर तक निद्रा और भोजन का परित्याग कर घोर तपस्या की। भगवान शिव दयाभिभूत हो गए और कृपापूर्वक विष्णुराम को यह वरदान दिया कि वह अपने को उनका (शिव का) अवतारी पुत्र मान लें।
उस दैविक लड़के का नाम विनोद पड़ा। शिव की प्रकृति के अनुकूल ही वह सदैव शांत और गंभीर रहता था तथा उसे अपने भोजन और खेल की बहुत कम चिंता रहती थी। जैसे जैसे बालक बढ़ता गया, उसकी वृत्ति अधिक गंभीर होती गई। वह अपने स्कूल सम्बंधी अध्ययन में मन न लगा सका। घर में भी वह कई रात्रि जाग्रत रहकर भी बाह्य संसार से पूर्णत: अचेतन होकर व्यतीत कर देता था। प्रात: काल दरवाजा खटखटाए जाने पर ही उसकी चेतना लौटती थी।
आगे चलकर क्रमश: छह वर्ष की लंबी अवधि तक उसने बिल्कुल ही निद्रा का परित्याग कर दिया। उस समय वह संपूर्ण दिन अपनी ही कोठरी में बंद रहकर व्यतीत करता था और संपूर्ण रात्रि तपस्या और आध्यात्मिक अचेतनावस्था में व्यतीत करता था।
अंत में भगवान शिव ने अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ प्रकट होकर इस संघ के निर्माता के श्रेष्ठ मानवीय व्यक्तित्व के माध्यम से 1917 में कार्य करना प्रारंभ किया। यहीं से संघ का प्रारंभ होता है।
उद्देश्य
संपादित करेंसंघ का उद्देश्य भारत के राष्ट्रीय जीवन का पुनः संगठन और पुनर्निर्माण सार्वलौकिक आदर्शो और सनातन धर्म के सिद्धांतों के आधार पर करना है जो कि हजारों वर्षो से विदेशी आधिपत्य के नीचे छिन्न भिन्न हो गया था।
कार्य
संपादित करेंसंघ के बहुमुखी कार्य को हम मुख्य रूप से छह भागों में विभाजित कर सकते हैं।
(१) सात उपदेश देनेवाले दलों द्वारा धार्मिक और आध्यात्मिक प्रचार।
(२) मनुष्य को ऊँचा उठानेवाली शिक्षा का प्रसार, जो मस्तिष्क और हृदय की शक्तियों को समान रूप से विकसित करती हो।
(३) पवित्र तीर्थस्थानों का सुधार (तीर्थयात्रियों के रहने का मुफ्त प्रबंध, धार्मिक संस्कारों को उचित मूल्य पर संपादित कराने का प्रबंध, पंडों की वृद्धि को रोकना, रोगी तीर्थयात्रियों की मुफ्त चिकित्सा की सुविधा आदि), पाप और अपराध निवारण का प्रयत्न करना।
(४) मानव जाति के प्रति प्रेम प्रकट करनेवाली विभिन्न सेवाएँ (जैसे, बाढ़, अकाल और भूकंप से पीड़ित लोगों की सहायता, जातीय कारणों से पीड़ित लोगों की रक्षा, युद्धकालीन शरणार्थियों का प्रबंध, कुंभ मेला व्यवस्था आदि)।
(५) हिंदू समाज का पुनर्निमाण तथा सुधार (जिसके अंतर्गत अस्पृश्यता की भावना को दूर करना, पिछड़ी जातियों का उद्धार, उनका कल्याण आदि शामिल है)।
भारतीय संस्कृति के सार्वलौकिक आदर्शों का भारत में और विदेशों में प्रचार।
(६) भारतीय संस्कृति के सार्वलौकिक आदर्शों का भारत में और विदेशों में प्रचार।
कार्य का केंद्र
संपादित करेंसंघ का प्रमुख केंद्र कलकत्ता बालीगंज (२११ राशबिहारी एवेन्यू) में है और उसकी अनेक शाखाएँ गया (बिहार), वाराणसी, प्रयाग वृंदावन (उत्तर प्रदेश), कुरुक्षेत्र (पश्चिमी पंजाब), पुरी (उड़ीसा), सूरत, अहमदाबाद (गुजरात), हैदराबाद (आंध्र) में हैं। और इन शाखाओं के दर्जनों केंद्र और अनेक हिंदू मिलन मंदिर पूर्वी बंगाल के विभिन्न जिलों और अन्य प्रांतों में हैं। इसके तीन स्थायी और निर्माणशील केंद्र वेस्ट इंडीज, बिट्रिश गाइना और लंदन में भी हैं।
संघ के दस मुख्य नियम एवं दर्शन
संपादित करें(१) लक्ष्य क्या है ? महामुक्ति, आत्मोपलब्धि
(२) धर्म क्या है ? त्याग, संयम, सत्य, ब्रह्मचर्य।
(३) महामृत्यु क्या है ? आत्मविस्मृति।
(४) आदर्श जीवन क्या है ? आत्मबोध, आत्मविस्मृति, आत्मानुभूति।
(५) महापुण्य क्या है ? वीरत्व, परुष्त्व मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व।
(६) महापाप क्या है ? दुर्बलता, भीरुता, कापुरुषता, संकीर्णता, स्वार्थपरता।
(७) महाशक्ति क्या है ? धैर्य, स्थैर्य, सहिष्णुता।
(८) महासंबल क्या है ? आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्ममर्यादा।
(९) महाशत्रु कौन है? आलस्य, निद्रा, तंद्रा, जड़ता, रिपु और इंद्रियगण।
(१०) परममित्र कौन है ? उद्यम, उत्साह और अध्यवसाय।
अराजनीतिक और असांप्रदायिकता
संपादित करेंइस संघ के महान संस्थापक ने अपनी आध्यात्मिक चेतनावस्था और अपने सर्वोच्च तेज के प्रताप से घोषित किया कि -
(१) यह सार्वलौकिक जाग्रति का युग है।
(२) यह सार्वभौमिक पुनरेकीकरण का युग है।
(३) यह सार्वलौकिक भाईचारे का युग है।
(४) यह सार्वलौकिक निस्तार का युग है।
अत: यह कहना अनावश्यक ही है कि संघ अपने उद्देश्य और कार्यों द्वारा किसी राजनीतिक लक्ष्य का प्रसार नहीं करता और न उसका कोई राजनीतिक उद्देश्य ही है। सांप्रदायिकता और संकीर्णता से भी वह बिलकुल दूर है।
हिंदू राष्ट्रीयता
संपादित करेंसंघ का प्रमुख उद्देश्य महान राष्ट्रीयता का निर्माण करना है। और संघ का दृढ़ विश्वास है कि इस लक्ष्य को पूर्ण करने का सबसे महत्वपूर्ण चरण होगा दृढ़ और व्यवहारकुशल हिंदू संस्थाओं का पुन: संगठन और पुनर्निर्माण।
मुसलमान तथा ईसाई यथेष्ट संगठित हैं और वे अपने ऊपर किए गए किसी भी आद्यात के विरुद्ध खड़े हो सकते हैं। केवल हिंदू ही, यद्यपि वे सम्पूर्ण भारतीय जनसंख्या के तीन चौथाई हैं, इतने ऐक्यहीन और तितर-बितर हैं कि किसी भी आक्रमण के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकते। अत: सभी निमित्त और प्रयोजनों को देखते हुए भारत के राष्ट्रनिर्माण का तात्पर्य शक्तिशाली हिंदू राष्ट्रीय भावना का निर्माण मानना होगा।
इसं संघ के प्रख्यात संस्थापक ने इस बात पर जोर दिया कि हमारा राष्ट्रनिर्माण संभव नहीं जब तक कि बेमेल हिंदू समूहों को दृढ़, संगठित और व्यवहारकुशल संस्था के रूप में पुन:संगठित न किया जाय।
हिंदू मिलन मंदिर और हिंदू रक्षी दल
संपादित करेंभारत के विभिन्न राज्यों के प्रत्येक शहर और गाँव में हिंदू मिलन मंदिर की विभिन्न शाखाओं को स्थापित करके हिंदू समूह को पुन: संगठित करने का निश्चय किया गया। शिक्षित हिंदू समूहों में आत्मरक्षा की भावना भरने के लिए संघ हिंदू मिलन मंदिरों के साथ हिंदू रक्षी दलों का भी संगठन कर रहा है। संघ का विश्वास है कि एकता की शक्ति ओर आत्मरक्षा ही तितर बितर हुए हिंदू समूहों को पुनर्जीवित और सुसंगठित बनाकर उनमें सच्ची राष्ट्रीय भावना भर सकती है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ ""Address on, Secularism and National Integration, at the Annual Celebration Day of the Bharat Sevashram Sangha, New Delhi, 24 October 2008"". मूल से 18 फ़रवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2018.
- ↑ Staff Reporter (5 April 2010)। "Hospital for poor opens doors" Archived 2018-06-15 at the वेबैक मशीन. Calcutta Telegraph. Retrieved 16 November 2010