भारत स्टेज उत्सर्जन मानक
भारत स्टेज उत्सर्जन मानक (अंग्रेजी: Bharat stage emission standards (BSES; बीएसईएस)), भारत सरकार द्वारा स्थापित उत्सर्जन मानक हैं जो, आंतरिक दहन इंजनों और स्पार्क-इग्निशन इंजनों जिनमें मोटर वाहन शामिल हैं, द्वारा उत्सर्जित वायु प्रदूषकों की मात्रा का विनियमन करते हैं। मानकों और उनको लागू किए जाने की समयसीमा का निर्धारण पर्यावरण और वन मंत्रालय और जलवायु परिवर्तन के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किया जाता है।[1]
यूरोपीय विनियमों पर आधारित इन मानकों को पहली बार 2000 में लागू किया गया था। तब से लगातार मानदंडों को सख्त किया जा रहा है। मानकों के लागू होने के पश्चात निर्मित सभी नए वाहनों के लिए इन विनियमों के अनुरूप होना आवश्यक है।[2] अक्टूबर 2010 से पूरे देश में भारत स्टेज (बीएस) III मानकों को लागू किया गया। 13 प्रमुख शहरों में तो भारत स्टेज IV उत्सर्जन मानक अप्रैल 2010 से लागू हैं[3] जबकि, अप्रैल 2017 से इन्हें पूरे देश में लागू किया गया है। भारत सरकार ने 2016 में घोषणा की कि, बीएस-V मानकों को लागू करने के बजाय 2020 तक पूरे देश में सीधे बीएस-VI मानकों को अपनाया जायेगा।[4]
बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए 15 नवंबर, 2017 को भारत के पेट्रोलियम मंत्रालय ने सार्वजनिक तेल विपणन कंपनियों के साथ परामर्श करके यह निर्णय लिया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बीएस-VI ग्रेड वाहन ईंधनों को 1 अप्रैल, 2020 के बजाय अब 1 अप्रैल, 2018 से ही लाया जायेगा। दिल्ली के वायु प्रदूषण की भारी समस्या के कारण पेट्रोलियम मंत्रालय ने तेल विपणन कंपनियों से इस बात की संभावना का पता लगाने को कहा गया था कि क्या 1 अप्रैल, 2019 से पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बीएस-VI वाहन ईंधनों को लागू किया जा सकता है या नहीं? हालांकि इस निर्णय से वाहन निर्माता कम्पनियों में खलबली मच गयी क्योंकि उनकी योजना तो बीएस-VI वाहनों का उत्पादन 2020 से शुरु करने की थी।
दुपहियों के 2-स्ट्रोक इंजनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने, मारुति 800 के उत्पादन को बन्द करने और इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण की शुरुआत वाहनों के उत्सर्जन से संबंधित नियमों के कारण हुई है।[5]
हालांकि यह मानक प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद करते हैं, पर इनको लागू करने मे प्रयुक्त बेहतर तकनीक, वाहनों और ईंधनों के मूल्य में वृद्धि का कारण बनती है। हालांकि यह वृद्धि वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों मे आई कमी और इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में हुई बचत द्वारा समायोजित होती है। वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से श्वसन और हृदय रोग हो सकते हैं, जिनके कारण 2010 में लगभग 6.2 लाख लोगों की मृत्यु होने का अनुमान है और भारत में वायु प्रदूषण संबंधी स्वास्थ्य लागत का मूल्यांकन, सकल घरेलु उत्पाद के 3% पर किया गया है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Functions of the Central Pollution Control Board". Central Pollution Control Board. मूल से 9 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2018.
- ↑ "SC makes emission norms mandatory for new vehicles". The Indian Express. 30 April 1999.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "India switches fully to Euro III and IV petrol and diesel". The Hindu. 24 September 2010. मूल से 27 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 फ़रवरी 2018.
- ↑ "Reforming the little rascal". The Indian Express. 29 July 1999.[मृत कड़ियाँ]