दक्षिण मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा शहर से लगभग ७५ किलोमीटर दूरी पर स्थित यह विशालकाय घाटी काधरातल लगभग ३००० फीट नीचे है। इस विहंगम घाटी में गोंड और भारिया जनजाति के आदिवासी रहते हैं।इन आदिवासियों के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँभी उपलब्ध नहीं हैं, किंतु ये आदिवासी आमजनों से ज्यादा तंदुरुस्त हैं। येआदिवासी घने जंगलों, ऊँची-नीची घाटियों पर ऐसे चलते हैं, मानो किसी सड़क परपैदल चला जा रहा हो। आधुनिकीकरण से कोसों दूर पातालकोट घाटी के आदिवासी आजभी अपने जीवन-यापन की परम्परागत शैली अपनाए हुए हैं। रोजमर्रा के खान-पान से लेकर विभिन्न रोगों के निदान के लिए ये आदिवासी वन संपदा पर ही निर्भरकरते हैं। भुमका वे आदिवासी चिकित्सक होते हैं तो जड़ी-बूटियों से विभिन्नरोगों का इलाज करते हैं। इनका मुख्य भोज्य पदार्थ पेज है इनके मुख्य देवता बूढादेब दूल्हादेव नागदेवता प्रमुख देवतायों की पूजा करते है विवाह- मंगनी विवाह लमसेना विवाह राजी-वाजि विवाह प्रमुख है नृत्य- भड़म कर्रमा शैतम शैला प्रमुख नृत्य है।