चित्रलिपि ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, मसलन 'छाते' के लिए यूनिकोड में ☂ का चिह्न जिसे ऐसा कोई भी व्यक्ति पहचान सकता है जिसने छाता देखा हो। इसके विपरीत कुछ भावचित्रों का अर्थ केवल उनसे परिचित व्यक्ति ही पहचान पाते हैं, मसलन 'ॐ' का चिह्न 'ईश्वर' या 'धर्म' की अवधारणा व्यक्त करता है और '६' का चिह्न छह की संख्या की अवधारणा व्यक्त करता है। चीनी भाषा की लिपि और प्राचीन मिस्र की लिपि ऐसी चित्रलिपियों के उदाहरण हैं।

फ़्रांस में घुड़सवारी का यह भावचित्र एक सड़क-चिह्न है
जापान में यह भावचित्र 'पानी' का अर्थ देता है
भारत का स्वस्तिक भावचित्र 'शुभ' का अर्थ देता है

अन्य भाषाओं में संपादित करें

"भावचित्रों" को अंग्रेजी में "इडियोग्रैम" (ideogram) या "इडियोग्रैफ" (ideograph) कहते हैं। "चित्रलिपि" को अंग्रेजी में "इडियोग्रैफिक स्क्रिप्ट" (ideographic script) या "पिक्टोग्रैफिक स्क्रिप्ट" (pictographic script) कहा जाता है।

अक्षरमाला और भावचित्रों की तुलना संपादित करें

जो लिपि अक्षरमाला पर आधारित होती है उसमें पाठक को केवल कुछ ध्वनियों के लिए चिह्न ही सीखने होते हैं। उसके बाद इन चिह्नों को जोड़कर पाठक उस भाषा के सभी शब्द पढ़ सकता है। अगर कोई नया या अपरिचित शब्द हो तो उसके अक्षर पढ़ कर पाठक उसे उच्चारित कर सकता है। भावचित्रों पर आधारित चित्रलिपियों में पाठकों को कभी-कभी सैंकड़ों या हज़ारों चिह्न सीखने पढ़ते हैं। चीनी भाषा सीखने के लिए यह ज़रूरी है।

फिर भी चित्रलिपियों का एक बड़ा लाभ है। नेपाली और हिन्दी दोनों में अक्षरमाला पर आधारित देवनागरी लिपि प्रयोग होती है। यदि कोई हिन्दीभाषी नेपाली भाषा का 'अटूवा' शब्द देखे तो वह उसे उच्चारित तो कर सकता है लेकिन यह नहीं समझ सकता की उसका अर्थ 'अदरक' है। इसके विपरीत चीनी और भाषा में प्रयोग होने वाले 猫 चिह्न को देखकर चीनीभाषी और जापानीभाषी दोनों 'बिल्ली' का अर्थ प्राप्त करते हैं लेकिन इसको अपनी-अपनी भाषाओँ में बिलकुल भिन्न प्रकार से बोलते हैं। जापानी में इसे 'नेको' पढ़ा जाता है और मैंडारिन चीनी में इसे 'माओ' पढ़ा जाता है। जापान के बहुत से लोग चीनी का बिना एक भी शब्द जाने चीनी अख़बार पढ़कर उस से काफ़ी अर्थ निकलने में सक्षम हैं। वही अख़बार अगर उन्हें चीनी में पढ़ के सुनाया जाए तो उन्हें कुछ भी समझ न आये। यह उसी तरह की बात है जैसे ☂ का चिह्न देखकर हिन्दीभाषी 'छतरी' कहेगा, अंग्रेज़ीभाषी 'अम्ब्रॅल्ला' कहेगा और फ़्रांसिसीभाषी 'पाराप्लूई' कहेगा। इसी वजह से चीनीभाषी लोग अक्सर चीन में पाए गए हज़ारों साल पुराने शिलालेख देखकर उनको कुछ हद तक समझने में सक्षम होते हैं क्योंकि बहुत से भावचित्र लम्बे अरसे से थोड़े-थोड़े फेर-बदल के साथ चले आ रहे हैं।

चीनी लिपि के बारे में चेतावनी संपादित करें

हालांकि चीनी लिपि में भावचित्रों का प्रयोग होता है, फिर भी बहुत से शब्दों को इन भावचित्रों से सम्बंधित ध्वनियों को जोड़कर लिखा जाता है। अक्सर शब्दों में एक भावचित्र अर्थ का कुछ अंदाज़ा देता है और दूसरा ध्वनि बनाने में सहायक होता है। इसलिए चीनी लिपि वास्तव में चित्रलिपि और ध्वनि-आधारित लिपि का एक मिश्रित रूप है।[1]

उदाहरण के लिए चीनी में 沖 को 'चोंग' उच्चारित किया जाता है और इसका अर्थ है 'पानी का तेज़ बहाव या लहर'। इसके बाएँ में तीन छोटी लकीरें हैं जिनका अर्थ "पानी" होता है। यह पानी से सम्बंधित अन्य शब्दों में भी पाई जाती हैं, जैसे कि 河 ('हे', अर्थ: नदी), 河 ('हु', अर्थ: झील) और 流 ('लिऊ', अर्थ: झरना)। चोंग (沖) के बाएँ में तो यह पानी का भावचित्र है लेकिन उसके दाएँ में 中 का चिन्ह है जिसका अर्थ 'बीच' है और जिसका उच्चारण 'जोंग' किया जाता है। जब इन दोनों भावचित्रों को मिलाकर 沖 लिखा जाता है तो पाठक को यह संकेत है कि अर्थ के लिए बाएँ तरफ़ का चिन्ह देखो और ध्वनि के लिए दाएँ तरफ़ देखो। तो पाठक समझ जाता है कि यह पानी से सम्बंधित शब्द है जिसका उच्चारण 'जोंग' से मिलता-जुलता होगा। इस से वह भांप जाता है कि यह शब्द 'चोंग' है। ग़ौर कीजिये कि दाएँ तरफ़ के जोंग शब्द का अर्थ ('बीच') बिलकुल नहीं प्रयोग होता और बाएँ तरफ़ के पानी से सम्बंधित शब्द की ध्वनि बिलकुल नहीं प्रयोग होती।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. John DeFrancis. "The Chinese language: fact and fantasy". University of Hawaii Press, 1984. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780824810689.