भाषा आन्दोलन दिवस
भाषा आंदोलन के दिन या भाषा क्रांति दिवस या बंगाली भाषा आंदोलन दिवस (बंगाली: ভাষা আন্দোলন দিবস भाषा Andolôn Dibôs), जिसे भाषा शहीद दिवस या शहीद दिवस (बंगाली: শহীদ দিবস Shôhid Dibôs), के रूप में भी संदर्भित करते हैं, एक राष्ट्रीय दिन है, जो बांग्लादेश में 1952 में बंगाली भाषा आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शन करते समय मरने वाले छात्रों के बलिदान को याद रखने के लिए इस दिन को मनाया जाता है।
भाषा आन्दोलन दिवस ভাষা আন্দোলন দিবস | |
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21 फरवरी 1952 में जान गँवाने वालों की याद में शहीद मीनार | |
आधिकारिक नाम | बंगाली: ভাষা আন্দোলন দিবস (भाषा आन्दोलोन दिबोस) |
अन्य नाम | बंगाली: শহীদ দিবস (शोहिद दिबोस) |
अनुयायी |
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तिथि | 21 फरवरी |
आवृत्ति | वार्षिक |
समान पर्व | अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस |
पृष्ठभूमि
संपादित करेंभारत के विभाजन के बाद 1947 पूर्वी बंगाल में बंगाली बोलने वाले थे, जो पाकिस्तान के नियंत्रण में आ गया था।[1] यहाँ सरकार, सरकारी कर्मी और सेना भी थी, लेकिन सभी पश्चिमी पाकिस्तान के थे।[2] 1947 को एक महत्वपूर्ण संकल्प पर एक राष्ट्रीय शिक्षा शिखर सम्मेलन में कराची में एक राष्ट्रीय शिक्षा शिखर सम्मेलन हुआ था, जिसमें एक महत्वपूर्ण संकल्प लिया गया। इसमें उर्दू को राज्य की एक मात्र भाषा बनाने का निर्णय लिया गया था, जो समाचारों में और विद्यालयों में भी उपयोग होता।[3][4] विपक्ष द्वारा विरोध भी हुआ और एक बंगाली इस्लामी सांस्कृतिक संगठन, तमाद्दुन मजलिश के सचिव अबुल कशिम के नेतृत्व में ढाका में विरोध शुरू हुआ। इसके बाद बैठक ने बंगाली भाषा को पूर्वी बंगाल का आधिकारिक भाषा बनाने का निर्णय लिया और शिक्षा के एक माध्यम में भी इसे ले लिया गया।[5] हालांकि, पाकिस्तान लोक सेवा आयोग ने विषयों की सूची से बंगाली को हटा दिया इसी के साथ ही डाक टिकटों और मुद्राओं से भी इस भाषा को हटा दिया था। . केंद्रीय शिक्षा मंत्री फजलूर रहमान ने उर्दू को ही राज्य की एकमात्र भाषा बनाने हेतु व्यापक तैयारियाँ कर ली थी।[6] इन कार्यों से जनता में आक्रोश फैल गया, और बड़ी संख्या में छात्रों ने ढाका विश्वविद्यालय परिसर में 8 दिसंबर, 1947 को औपचारिक रूप से मांग की है कि बंगाली को ही आधिकारिक भाषा बनाया जाये। इसे बढ़ावा देने हेतु छात्रों ने जुलूस और रैलियों का आयोजन भी किया।
विरोध
संपादित करें1952 में बंगाली छात्रों ने पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सरकार द्वारा उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बनाने कि घोषणा करने के बाद उसके विरोध में जुलूस निकाला। पाकिस्तानी नागरिकों की अनुपात 1952 में 54% था, जो बहुमत के लिए काफी था। विरोध प्रदर्शन में कई छात्रों की मृत्यु हो गई, जो बंगाली भाषा को भविष्य की पीढ़ियों के लिए बचाना चाहते थे।
सुबह के नौ बजे छात्रों ने ढाका विश्वविद्यालय परिसर में सभा शुरू की, जहाँ पहले से धारा 144 लगा हुआ था। यहाँ विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर और अन्य अधिकारी मौजूद थे, इसके अलावा सशस्त्र पुलिस बल द्वारा परिसर घिरा हुआ था। एक चौथाई छात्रों में ग्यारह छात्रों ने विवि के द्वार में एकत्रित होकर पुलिस द्वारा बनाई गई रेखा को तोड़ने का प्रयास किया। पुलिस ने आंसू गैस के गोले द्वार की ओर डाल कर छात्रों को चेतावनी दी। एक वर्ग के छात्रों ने ढाका विवि से भाग निकले की कोशिश की और भागने में सफल रहे, जबकि दूसरों को विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस ने घेर लिया था। वाइस-चांसलर पुलिस को हमला न करने और छात्रों को जगह छोड़ने को कहते हैं। लेकिन पुलिस कई छात्रों को धारा 144 का उल्लंघन करने के कारण गिरफ्तार कर लेती है, बाहर जाने की कोशिश करते रहते हैं। गिरफ्तारी से नाराज छात्रों ने पूर्व बंगाल विधान सभा में मुलाक़ात की और विधायकों का मार्ग अवरुद्ध कर उन्हें इस मामले को विधानसभा में पेश करने का आग्रह करती है। लेकिन छात्रों का एक समूह तूफान की तरह इमारत में चढ़ने लगा था, इस कारण पुलिस ने आग के गोले फैंकने लगे। इससे कई छात्रों की मौत हो गई। इसमें अब्दुस सलाम, रफीक उद्दीन अहमद, अबुल बरकत और अब्दुल जब्बार शामिल थे। [7] इन हत्याओं की खबर का बहुत तेजी से प्रसार और यह विकार तेजी से उभर कर सामने आया और शहर के सभी दुकानों, कार्यालयों और सार्वजनिक परिवहन आदि को बंद कर दिया गया और हड़ताल शुरू हो गया।[8] में विधानसभा के छह विधायकों, जिसमें मनोरंजन धार, बसंतकुमार दास, शमसुद्दीन अहमद और धीरेन्द्रनाथ दत्ता शामिल हैं, ने अनुरोध किया है कि मुख्यमंत्री नुरुल अमीन यात्रा घायल छात्रों को अस्पताल में मिलने जाएँ और शोक के निशानी के रूप में विधानसभा स्थगित कर दें। [9] इसका समर्थन मौलाना अब्दुर राशिद तरकबगीश, शोरफुद्दीन अहमद, शमसुद्दीन अहमद खोंडोकर और मोशीनूद्दीन अहमद ने किया। हालांकि नुरुल अमीन अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया था।
प्रभाव
संपादित करेंसंविधान सुधार
संपादित करें7 मई 1954 में संविधान सभा ने मुस्लिम लीग के समर्थन के बाद बंगाली भाषा को आधिकारिक भाषा बना दिया। बंगाली भाषा को 29 फरवरी 1956 के दिन पाकिस्तान की दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुआ और अनुच्छेद 214(1) के तहत उर्दू और बंगाली पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा बन गई।
लेकिन जब पाकिस्तान में सैन्य सरकार ने अपना कब्जा जमा लिया तो आयूब खान ने फिर से उर्दू को एकमात्र राष्ट्रीय भाषा बनाने का प्रयास किया। 6 जनवरी 1959 को सैन्य शासन ने आधिकारिक रूप से बयान जारी किया कि वें 1956 के संविधान के नीति का समर्थन करते हैं।[10]
बांग्लादेश की आजादी
संपादित करेंआधिकारिक भाषाओं का समाधान 1956 में ही हो गया था, लेकिन आयुब खान पूर्वी पाकिस्तान पर व्यय करने वाले पैसों का उपयोग पश्चिमी पाकिस्तान में करने लगा। राष्ट्रीय जनसंख्या के बहुमत के गठन के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य सेवाओं को जारी रखा गया। इसके वित्त और अन्य सरकारी सेवाओं में भी कटौती किया गया था। इन नए नवेले राज्य में प्रतिनिधि सरकार की कमी होना भी इसका मुख्य कारण था। इसके कारण क्षेत्रीय आर्थिक असंतुलन हुआ और प्रभागों में वृद्धि हुई। इसके कारण बंगाली जातीय राष्ट्रवादी अवामी दल को लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ। इस दल ने 6 सूत्रीय आंदोलन शुरू किया, जिसके मांगो में एक ये भी था कि पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश (बंगाल का देश) कहा जाये। यही बाद में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध का कारण बना।
स्मरणोत्सव
संपादित करेंइस आंदोलन के उपलक्ष्य में शहीद मीनार (শহীদ মিনার), एक प्रतीकात्मक मूर्ति बनवाया गया था, जो उस नरसंहार और बांग्लादेश के निर्माण को याद दिलाता है, इसका कुछ हद तक प्रभाव पश्चिम बंगाल में भी पड़ा।
इस दिन बांग्लादेश में सार्वजनिक छुट्टी होती है।
यूनेस्को ने इसका निरीक्षण कर ये फैसला किया कि 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाया जाएगा। [11] यूनेस्को के आम सम्मेलन में इसका निर्णय ले लिया और या 17 नवंबर 1999 को लागू हुआ,[12] जब यह बांग्लादेश द्वारा पेश किया गया और सर्वसम्मति से लागू हुआ, इसमें बांग्लादेश और सह-प्रायोजित व 28 समर्थित देशों द्वारा समर्थन किया गया।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Al Helal, Bashir (2012). "Language Movement". In Islam, Sirajul; Jamal, Ahmed A. (eds.). Banglapedia: National Encyclopedia of Bangladesh (Second ed.). Asiatic Society of Bangladesh.
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specified (help) - ↑ Oldenburg, Philip (August 1985). ""A Place Insufficiently Imagined": Language, Belief, and the Pakistan Crisis of 1971". The Journal of Asian Studies. 44 (4). The Journal of Asian Studies, Vol. 44, No. 4: 711–733. doi:10.2307/2056443. ISSN 0021-9118. JSTOR 2056443.
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specified (help) - ↑ Morning News. 7 December 1947.
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(help) - ↑ The Azad (a daily newspaper) (in Bengali). Abul Kalam Shamsuddin, Dhaka. 11 December 1948.
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(help) - ↑ ((Umar 1979, p. 35)
- ↑ Al Helal, Bashir (2003). Bhasa Andolaner Itihas [History of the Language Movement] (in Bengali). Dhaka: Agamee Prakashani. pp. 227–228. ISBN 984-401-523-5.
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specified (help) - ↑ "Dhaka Medical College Hostel Prangone Chatro Shomabesher Upor Policer Guliborshon. Bishwabidyalayer Tinjon Chatroshoho Char Bekti Nihoto O Shotero Bekti Ahoto". The Azad (in Bengali). 21 February 1952.
- ↑ James Heitzman and Robert Worden (eds), ed. (1989). "Pakistan Period (1947–71)". Bangladesh: A Country Study. Government Printing Office, Country Studies US. ISBN 0-16-017720-0. Archived from the original on 22 जून 2011. Retrieved 16 June 2007.
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ignored (help) - ↑ Al Helal, Bashir (2003). Bhasa Andolaner Itihas [History of the Language Movement] (in Bengali). Dhaka: Agamee Prakashani. pp. 377–393. ISBN 984-401-523-5.
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specified (help) - ↑ Lambert, Richard D. (April 1959). "Factors in Bengali Regionalism in Pakistan". Far Eastern Survey. 28 (4): 49–58. doi:10.1525/as.1959.28.4.01p1259x. ISSN 0362-8949.
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(help) - ↑ Desk, NewsGram News (21 February 2016). "Commemorating the International Mother Language Day- February 21" (in अमेरिकी अंग्रेज़ी). Archived from the original on 8 मई 2016. Retrieved 6 May 2016.
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has generic name (help) - ↑ "Language Movement – Banglapedia". Archived from the original on 7 मार्च 2016. Retrieved 6 May 2016.