भीतरगाँव

कानपुर जिले में मंदिर

भीतरगाँव (Bhitargaon) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर नगर ज़िले में स्थित एक गाँव है।[1][2]

भीतरगाँव
Bhitargaon
विश्व का प्राचीनतम खड़ा हुआ ईंट का बौद्ध मंदिर (गुप्तकालीन)
विश्व का प्राचीनतम खड़ा हुआ ईंट का बौद्ध मंदिर (गुप्तकालीन)
भीतरगाँव is located in उत्तर प्रदेश
भीतरगाँव
भीतरगाँव
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 26°12′40″N 80°16′26″E / 26.211°N 80.274°E / 26.211; 80.274निर्देशांक: 26°12′40″N 80°16′26″E / 26.211°N 80.274°E / 26.211; 80.274
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलाकानपुर नगर ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल5,303
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

यहाँ गुप्तकालीन एक मंदिर के अवशेष उपलब्ध है, जो गुप्तकालीन वास्तुकला के नमूनों में से एक है। ईंट का बना यह मंदिर अपनी सुरक्षित तथा उत्तम साँचे में ढली ईटों के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसकी एक-एक ईट सुंदर एवं आर्कषक आलेखनों से खचित थी। इसकी दो दो फुट लंबे चौड़े खानें अनेक सजीव एवं सुंदर उभरी हुई मूर्तियों से भरी थी। इसकी छत शिखरमयी है तथा बाहर की दीवारों के ताखों में मृण्मयी मूर्तियाँ दिखलाई पड़ती है। इस मंदिर की हजारों उत्खचित ईटें लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

भीतरगांव मंदिर की वास्तुकला और लेआउट का वर्णन

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जिस मंच पर मंदिर बना है उसका आकार 36 फीट * 47 फीट है। संतमत आंतरिक रूप से 15 फीट * 15 फीट है। संतमत दोहरी कहानी है। दीवार की मोटाई 8 फीट है। जमीन से शीर्ष तक की कुल ऊंचाई 68.25 फीट है। कोई खिड़की नहीं है। टेराकोटा की मूर्तिकला में धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक दोनों विषयों को दर्शाया गया है जैसे देवता गणेश अदि विरह महिषासुरमर्दनी और नदी देवी। मिथक और कहानियाँ सीता के अपहरण और नर और नारायण की तपस्या का प्रतिनिधित्व करती हैं। शिकारा एक चरणबद्ध पिरामिड है और 1894 में गड़गड़ाहट से क्षतिग्रस्त हो गया। गर्भगृह की पहली कहानी 1850 में गिरी। वॉल्टेड आर्क का उपयोग भारत में कहीं भी पहली बार किया गया है। टेराकोटा पैनल विशिष्ट त्रिभंगा मुद्रा में देवताओं को बहुत ही आकर्षक और सौम्य शैली में चित्रित करते हैं।

बेहटा बुजर्ग मंदिर

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भीतरगाँव मंदिर के पास एक और प्राचीन मंदिर परिसर है। यह बेहटा बुजर्ग गांव में स्थित है और भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। मंदिर विशिष्ट स्तूप (टीले) में बनाया गया है और भगवान जगन्नाथ की प्राचीन मूर्तियों को रखा गया है। स्थानीय लोगों ने देखा है कि इस मंदिर परिसर की छत बारिश के कुछ दिनों पहले से टपकने लगती है और यह इस क्षेत्र के किसानों के बीच एक विश्वसनीय बारिश के पूर्वानुमान के रूप में लोकप्रिय है। भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों के साथ, मंदिर में एक सूर्य देवता की छवि और एक चट्टान पर नक्काशीदार भगवान विष्णु की मूर्ति भी है। बेहटा बुजुर्ग गांव स्थित यह मंदिर ठाकुर जी मंदिर और जगन्नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है आज तक मंदिर की वर्षा मानसून की भविष्यवाणी गलत साबित नहीं हुई। कुछ वैज्ञानिको का कहना है मंदिर में मानसूनी पत्थर लगा हुआ है और भक्त इसे भगवान जगन्नाथ का चमत्कार के रूप में देखते है और अनेकों दशको से बारिश के पूर्वानुमान के कारण लोगों को कृषि कार्य में सहायता मिलती है जगन्नाथ मंदिर की दीवारें अत्यधिक मोटी और अर्ध कमल के आकार की दिखाई देती है पिछले कुछ वर्षो में जगन्नाथ मंदिर को विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई है और रथ यात्रा का आयोजन भी कराया जाता है जिसमें हजारों क्षेत्र के श्रद्धालू उपस्थित होते है जगन्नाथ मंदिर अपने मानसूनी भविष्यवाणी के लिए और अपने विशेष स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है और कुछ चमत्कारिक घटना के कारण भी प्रसिद्ध है जो बुजुर्ग लोगों के द्वारा बतायी जाती है ऐसे ही एक रोचक घटना का उल्लेख जिससे पता चलता है कि जगन्नाथ मंदिर अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण है और ग्रामीण इसकी पुष्टि करते है क्षेत्र के बुजुर्ग लोगों की मौखिक कथनानुसार कहीं गयी यह घटना सन 1980 के दशक में बेहटा बुजुर्ग ग्राम के प्रधान और निवासी साथ ही भीतरगांव क्षेत्र के विशिष्ट लोगों मे पहचान रखने वाले 'शमशेर जंग बहादुर सिंह गौतम' से जुड़ी हुई है। जिनको लोग गांव में मानछान के नाम से जानते थे। शमशेर जंग बहादुर सिंह जी प्रसिद्ध ठाकुर जगन्नाथ मंदिर के भक्त थे और अटूट श्रद्धा मन्दिर और भगवान के प्रति रखते थे, और मंदिर में भगवान के पूजन हेतु सुबह प्रातः काल दैनिक रूप से पूजा अर्चना को जाते थे। क्षेत्रः में एक विशिष्ट पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण उनके कुछ राजनीतिक दुश्मन भी थे, बुजुर्गों के अनुसार बाहरी क्षेत्र से कुछ गुंडे हत्यारे बुलाए गए सभी को ज्ञात रहता था की प्रातः काल मंदिर परिसर में जाना और भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना करना उनका दैनिक कार्य है, गुंडे मंदिर के निकट ही उनके आने का इंतजार करने लगे, पूजा करके मंदिर चबूतरे से उतरते वक्त गुंडों ने शमशेर जंग बहादुर सिंह पर कयी गोली चलायी पर बन्दूक से गोली ही नहीं चली हत्यारों की संख्या दो थी हत्या करने के प्रयास में असफल और बंदूक खराब हो जाने के कारण गुंडे वहां से भाग गए, कुछ वर्षो के बाद एक क्षेत्र के कार्यक्रम में शमशेर जंग बहादुर सिंह भी उपस्थित थे और मारने का प्रयास करने वाले गुंडे भी वहीं मौजूद थे गुंडों ने कार्यक्रम में ही शमशेर जंग बहादुर सिंह गौतम जी को पहचान गए और उनके चरण स्पर्श किए और कहा हम ही आपको मंदिर प्रांगण में हत्या करने आए थे पर मंदिर में गोली नहीं चली, और गांव के बाहर बाद में चली , गुंडों ने माफी मांगी और कहा ऐसा आपकी भक्ति और भगवान जगन्नाथ की कृपा के कारण हुआ है यह घटना गांव के बुजुर्ग लोगों मे प्रचलित है! कुल देवता की सेवा के लिए आज भी शमशेर जंग बहादुर सिंह गौतम जी का परिवार पूरी श्रद्धा से नित्य सेवा हेतु उपस्थित रहता है। (यह सत्य घटना को विस्तृत रूप से हमारे साथ साझा , शमशेर जंग बहादुर सिंह गौतम जी की नातिन 'अनुभा सिंह' द्वारा किया गया है जिनका बचपन इसी गांव में बीता।) आज जगन्नाथ मंदिर में केवल आश पास के लोग नहीं प्रदेश के विशिष्ट अधिकारी और इतिहासकार इस मंदिर की कला, स्थापत्य शैली और पूजा अर्चना हेतु आते हैं

चित्रदीर्घा

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इन्हें भी देखें

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  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975