भील सेवा मंडल की स्थापना ठक्कर बापा ने करी थी , इस मंडल का उद्देश्य आदिवासियों को जागरूक करना और उनके लिए विकास करना ।


बापा को लगा कि इन भीलों का कल्याण स्थायी तौर पर शुरू हो सके, इसके लिए जरूरत है कि संस्थागत प्रकार के प्रयास ही नही किया ंतो यह समस्या इतनी जटिल है कि इसका व्यक्तिगत स्तर पर या फुटकर तरीके से मदद करके कल्याण संभव नहीं होगा। बापा का विचार था कि कुछ युवकों की मदद से इन भीलों को शिक्षित किया जाये और सभ्यता के आयामों से उन्हें क्रमश: परिचित कराया जाए। बापा ने एक योजना तैयार की जिसमें यह निश्चित किया गया कि करीब एक दर्जन ऐसे युवाओं की पहचान की जाए जो करीब तीन सालों तक यहीं के आदिवासी इलाकों में रहे और भीलों के कल्याण का काम करें। बापा ने इन युवाओं के दव्ारा काम किये जाने वाले कार्यो की सूची बनाई इनमें भील बच्चों की पढ़ाई, खेतीबाड़ी का काम सुधारने में मदद, सूदखारों के मकड़जाल से भीलों को बाहर निकालने में मदद करना और सरकारी मुलाजिमों के शोषण से बचाने जैसे कार्य शामिल थे। बापा ने भीलों की आर्थिक मदद के लिए ऋण देने वाली समितियों, छोटे उद्योग धंधे जैसे कताई-बुनाई का कामकाज चलाने की व्यवस्था का भी प्रस्ताव रखा। दाहोद में 1922 में भील सेवा मंडल स्थापित हुआ । भील सेवा मंडल का मुख्य केन्द्र दाहोद में बना कर बापा ने दस साल तक कठोर परिश्रम किया। इस मंडल के अध्यक्ष के तौर पर वह मंडल की गतिविधियों के सफल संचालन के लिए विभिन्न केन्द्रों का नियमित दौरा करते और केन्द्रों में आ रही समस्याओं को समझते और उन्हें दूर करने के लिए विचार विमर्श करते थे। इन केन्द्रों पर दौरे के दौरान बापा दो चीजों का विशेष ख्याल रखते थे। एक समय का और दूसरा सफाई का। अगर वह कोई कागज का टुकड़ा यूंँ ही पड़े हुये देखते तो उसे स्वयं ही उठा कर कूड़े -दान में डालते और दूसरे के लिए अनुकरणीय उदाहरण पेश करते और काम को समय पर पुरा करने में कोई कोताही नहीं बरतते थे। दाहोद में मंडल की गतिविधियों को विस्तार देने के बाद बापा ने झालोद पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने झालोद में 21 नवंबर, 1923 को भील सेवा मंडल खोला