स्थिति-यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मिरजापुर जिले के सीखड़ विकास खण्ड में स्थिति गाँव है। भुआलपुर ग्रामपंचायत विट्ठलपुर के अंतर्गत आता है। वातावरण-गाँव गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन डगमगपुर है जबकि निकटतम बड़े स्टेशन क्रमशः चुनार और मंडुआडीह है। निकटम बस स्टैंड सीखड़ है और निकटतम हवाई अड्डा लालबहादुर शास्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा वाराणसी है। गाँव विंध्याचल पर्वत शृंखला और गंगा से आच्छादित होने के अत्यन्त मनोहर दृश्यावली से सम्पन्न है।

इस गाँव का नाम भुआलपुर पहले यहां निवास करने वाले भुआलू अहिरो के नाम पर पड़ा है, जो कि मुख्यतः चरवाहे हुआ करते थे। शताब्दियों पहले यह स्थान आबादी और खेती से विहीन हुआ करता था, पर इसकी टीलेनुमा स्थिति गंगा नदी के बाढ़ में प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थी अतः ये चरवाहों के लिए आदर्श दशा उपलब्ध करवाती थी।

हालांकि अब गाँव मे एक भी घर भुआलू अहिरो का नहीं बसा है, लगभग 50 वर्ष पहले उनका अंतिम परिवार भी इस गाँव को छोड़ कर अन्यत्र विस्थापित हो गया। गाँव के कुलदेवी भुआली माता का मंदिर आज भी इसके पुराने निवासियों के चिन्ह को समाहित कर रखा है, जो वर्तमान निवासियों की भी आराध्य हैं और गाँव के प्रत्येक शुभ कार्य हेतु इनका पूजन अनिवार्य माना जाता है।

17 वी सदी में इस गाँव मे सबसे पहले बाहरी जाति के रूप में ब्राह्मणों का आगमन हुआ, जिन्होंने इस गाँव का न केवल चतुर्दिक विस्तार किया अपितु इसे इलाके में प्रतिष्ठा भी स्थापित करवाई। वर्तमान में इस गाँव की 80 % आबादी ब्राह्मणों की ही है, शेष 20% आब्दी में निषाद एवं अन्य जातिया शामिल हैं।

इस गाँव से सभी ब्राह्मण पंडित चूड़ामणि तिवारी जी के ही रक्त रेखा से जुड़े है जो कि 17वी शताब्दी में इस गाँव मे अपना निवास स्थापित किया था। पंडित चूड़ामणि तिवारी जी वर्तमान सोनभद्र के मूल निवासी थे जिन्होंने अपने मूलनिवास को छोड़ने के बाद यहाँ पर निवास बनाया।

उनका विवाह बगल के गाँव गोरिया के ही ब्राह्मण कन्या के साथ संपन्न हुआ। उन्ही के योग्यता और ससुराल पक्ष के सक्रिय सहयोग से ब्राह्मणों के पहले परिवार का विकास इस गाँव में संभव हो सका।

पंडित चूड़ामणि जी के चार पुत्र हुए जिनमे से पंडित ब्रम्हा तिवारी सबसे योग्य थे। उन्होंने अग्रेजो शासनकाल में न केवल गाँव के जमीन पर स्वामित्व प्राप्त की बल्कि 14 गांवो की जमीदारी भी प्राप्त की। ये 14 गाँव ऐसे थे जहाँ अग्रेजो व बड़े जमीदारो को भी कर वसूली में दिक्कत होती थी।

पंडित ब्रह्मा तिवारी जी ने अपने कुनबे के सहयोग से न केवल जमीदारी के ज़िम्मेदारी का कुशलता पूर्वक निर्वाह किया अपितु अपने धन का प्रयोग स्थापत्य के लिए भी की।

गाँव के दक्षिण छोर पर गँगा नदी के किनारे स्थापित शिवमंदिर उनके विरासत का महान स्मारक है। यह मंदिर विशुद्ध नागर शैली में आगरा के गुलाबी पत्थर से बनाया गया है। अपनी सुंदर नक्कासी और वास्तु विज्ञान से यह आज भी लोगो को सम्मोहित कर देता है। दुर्भाग्य से इस मंदिर का पूर्ण निर्माण होने से पहले ही श्री ब्रम्हा तिवारी जी का देहांत हो गया। 1970 के आसपास इसका पुनर्निर्माण मौनी बाबा के सौजन्य से संभव हो पाया। कालांतर में गाँव के लोग और जेपी सीमेंट से प्राप्त अनुदान से इसका विकास होता रहा जो कि वर्तमान में अत्यंत मनोहर स्वरूप में विकसित हो चुका है।

इस मंदिर के अतिरिक्त ब्रम्हा तिवारी जी ने भुआलपुर में अपनी कोठी भी बनवाई थी , उन्होंने गाँव के पूर्व में शिल्पियो,कारीगरों, कामगारों और चर्मकारों के रहने के लिए शिल्पी नामक गाँव की स्थापना की जो वर्तमान में एक बड़ा गाँव बन चुका है।