भूजल पुनर्भरण (Groundwater recharge या deep drainage या deep percolation) एक जलवैज्ञानिक तकनीकी प्रक्रिया है जिसमें वर्षा जल को सतह से गहराई में ले जाया जाता है। पुनर्भरण का कार्य बहुत सीमा तक प्राकृइतिक रूप से भी होता है किन्तु आधुनिक जीवन को ध्यान में रखते हुए अब इसे कृत्रिम रूप से करने की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है।

जल संतुलन

प्रमुख उपाय

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छत पर प्राप्त वर्षा जल का भूमि जलाशयों में पुनर्भरण निम्नलिखित संचयनाओं द्वारा किया जा सकता है-

  • बंद / बेकार पड़े कुएँ द्वारा
  • बंद पड़े/चालू नलकूप (हैंड पम्प) द्वारा
  • पुनर्भरण पिट (गड्ढा) द्वारा
  • पुनर्भरण खाई द्वारा
  • गुरूत्वीय शीर्ष पुर्नभरण कुँए द्वारा
  • पुनर्भरण शाफ्ट द्वारा


भू-जल संवर्द्धन के लिए काम में लाई जाने वाली कुछ और संरचनाएँ-
  • रिसन गड्ढा या सोखता गड्ढा
  • अधोभूमि अवरोधक
  • रोक बाँध
  • रिचार्ज शॉफ्ट
  • फार्म पौंड (खेत पोखर)
  • अस्थाई बाँध
  • गेबियन संरचना
  • लूज बोल्डर चेक डेम :
  • रिसाव तालाब (परकोलेशन टैंक)
  • गली प्लग (नाली अवरोधक)
  • कंटूर नाली (ट्रेन्च)
  • भू-जल का कृत्रिम पूनर्भरण


भूजल की विषेषतायें

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  • भूजल की मात्रा सतही जल से कम है।
  • भूजल कम खर्चीला किफायती संसाधन है।
  • भूजल आपूर्ति का दीर्घकालीन एवं विष्वसनीय स्रोत है।
  • भूजल पर प्रदूषण का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है।
  • भूजल प्राय: बैक्टीरिया रहित है।
  • भूजल में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु व कीटाणु नहीं होते।
  • उपयोग से पहले भूजल के ष्षुध्दिकरण की आवष्यकता नगण्य होती है।
  • भूजल रंगहीन व गंदलापन रहित है।
  • कम स्चच्छ सतही जल की तुलना में यह स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोंगी है।
  • भूजल प्राय: सर्वत्र उपलब्ध है।
  • भूजल को तत्काल निकाला तथा उपयोग में लाया जा सकता है।
  • जल आपूर्ति के दौरान भूजल की कोई क्षति होती है।
  • भूजल पर सूखे का प्रभाव पडता है।
  • सूखाग्रस्त व अर्ध सूखाग्रस्त क्षेत्रों में यही जीवन आधार है।
  • षुष्क मौसम में यह नदियों के जल प्रवाह का स्रोत है।
  • भूजल पुनर्भरण प्रक्रिया में कई वर्ष लगते हैं।

बाहरी सम्पर्क

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