भूपेन्द्र सिंह
भूपेन्द्र सिंह (अंग्रेजी: Bhupinder Singh (musician), जन्म: 8 अप्रैल 1939 पटियाला) मुम्बई मे 83 वर्ष की आयु मे 18 जुलाई 2022 की आपका स्वर्गवास हो गया ।
भूपेन्द्र सिंह | |
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पृष्ठभूमि | |
जन्म | 08 अप्रैल 1939 पटियाला, ब्रिटिश भारत |
निधन | 18 जुलाई 2022 मुम्बई | (उम्र 83 वर्ष)
विधायें | पार्श्वगायक |
पेशा | गज़ल गायक, संगीतकार |
वाद्ययंत्र | गिटार |
सक्रियता वर्ष | 1964-2022 |
आप हिन्दी फ़िल्मों के पार्श्वगायक एवं संगीतकार थे। भारत में जन्मे भूपेन्द्र सिंह बहुत अच्छा गिटार भी बजाते थे। उनकी पत्नी मिताली सिंह भी एक गायिका हैं। दोनों पति-पत्नी ने मिलकर संगीत के क्षेत्र में विशेष रूप से गज़ल-गायिकी में पर्याप्त ख्याति अर्जित की नाम गुम जायेगा चेहरा ये बदल जायेगा , मेरी आवाज हि पहचान है गर याद रहे, - किनारा फिल्म का यह गीत खूब प्रसिद्द हुवा था ।
म्थना ।
प्रारम्भिक जीवन
संपादित करेंभूपेन्द्र सिंह का जन्म ब्रिटिश राज के दौरान पंजाब प्रान्त की पटियाला रियासत में 8 अप्रैल 1939 को हुआ था। उनके पिता प्रोफेसर नत्था सिंह पंजाबी सिख थे। यद्यपि वे बहुत अच्छे संगीतकार थे लेकिन मौसिकी सिखाने के मामले में बेहद सख्त उस्ताद थे। अपने पिता की सख्त मिजाजी देखकर शुरुआती दौर में बालक भूपिन्दर को संगीत से नफ़रत सी हो गयी थी। एक वह भी जमाना था जब भूपिन्दर संगीत को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करता था।[1]
कैरियर
संपादित करेंधीरे-धीरे भूपिन्दर में गज़ल गायन के प्रति रुचि जागृत हुई और वह अच्छी गज़लें गाने लगा। शुरू-शुरू में भूपेन्द्र नें आकाशवाणी पर अपना कार्यक्रम पेश किया। आकाशवाणी पर उसकी प्रस्तुतियाँ देखकर दूरदर्शन केन्द्र, दिल्ली में उसे अवसर मिला। वहीं से उसने वायलिन और गिटार भी सीखा। सन् 1968 में संगीतकार मदन मोहन ने आल इण्डिया रेडियो पर उसका कार्यक्रम सुनकर दिल्ली से बम्बई बुला लिया। सबसे पहले उसे फ़िल्म हकीकत में मौका मिला जहाँ उसने "होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा" गज़ल गायी। यद्यपि यह गज़ल तो हिट हुई लेकिन भूपेन्द्र सिंह को इससे कोई खास पहचान नहीं मिली। हालांकि वह कम बजट की फ़िल्मों के लिये बराबर गाते रहे।[1]
इसके बाद भूपेन्द्र ने स्पेनिश गिटार और ड्रम पर कुछ गज़लें पेश कीं। इससे पूर्व वे 1968 में अपनी लिखी और गायी हुई गज़लों की एलपी ला चुके थे। परन्तु इस नये प्रयोग को जब उन्होंने दूसरी एलपी में पेश किया तो सबका ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ। इसके बाद "वोह जो शहर था" नाम से 1978 में जारी तीसरी एलपी से उन्हें खासी शोहरत मिली। गीतकार गुलज़ार ने इस एलपी के गाने 1980 में लिखे थे।
व्यक्तिगत जीवन
संपादित करें1980 के दशक में भूपेन्द्र सिंह ने बाँगलादेश की एक हिन्दू गायिका मिताली सिंह से शादी कर ली। उसके बाद उन्होंने पार्श्वगायकी से सम्बन्धविच्छेद कर लिया। मिताली-भूपेन्द्र सिंह के नाम से युगल गायिकी में उन्होंने कई अच्छे कार्यक्रम पेश किये जिनसे उनकी शोहरत को चार चाँद लग गये। लेकिन जैसा उन्होंने स्वयं कहा है "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता" उन दोनों के कोई सन्तान नहीं हुई।[2]
बेहतरीन नग्मे
संपादित करेंभूपेन्द्र सिंह के गाये हुए बेहतरीन यादगार गीत व गज़ल इस प्रकार हैं:
- दिल ढूँढता है,
- दो दिवाने इस शहर में,
- नाम गुम जायेगा,
- करोगे याद तो,
- मीठे बोल बोले,
- कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
- किसी नज़र को तेरा इन्तज़ार आज भी है
- दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं,
खुश रहो अहले-वतन हम तो सफर करते हैं[3]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ "Down Memory Lane: Bhupinder Singh". Archived from the original on 21 जून 2008. Retrieved 20 जनवरी 2014.
- ↑ "Bhupinder – Hauntingly 'Hummable'". Archived from the original on 3 मई 2006. Retrieved 20 जनवरी 2014.
- ↑ "दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं". Archived from the original on 6 अप्रैल 2013. Retrieved 20 जनवरी 2014.
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर भूपिन्दर सिंह
- हिन्दी गीतमाला
- अधिकृत वेबसाइट
- दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं- जेम्स बांड/रफ़ीक खाँ का वीडियो