भोजपुरी साहित्य (कैथी: 𑂦𑂷𑂔𑂣𑂳𑂩𑂲 𑂮𑂰𑂯𑂱𑂞𑂹𑂨) में भोजपुरी भाषा में लिखा साहित्य शामिल है। भोजपुरी 1500 वर्षों के दौरान विकसित हुई है। भाषा का विकास 7वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। भोजपुरी का सबसे पहला रूप सिद्ध संतों और चर्यापद के लेखन में देखा जा सकता है।[1][2] भोजपुरी भाषा में विशिष्ट साहित्यिक परंपराएं मध्ययुगीन काल की हैं जब क्षेत्र के संतों और भक्तों ने अपने कार्यों के लिए एक मिश्रित भाषा को अपनाया था।[3][4]

लोरिकयान, या वीर लोरिक की कहानी, पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक प्रसिद्ध भोजपुरी लोककथा है।[5] भिखारी ठाकुर की बिदेसिया एक और प्रसिद्ध पुस्तक है।

भोजपुरी में प्रकाशित पहली आधुनिक पुस्तक 1728 ईस्वी में बारह मासी थी, जिसे लखन सेन ने कैथी लिपि का उपयोग करके लिखा था। यह भोजपुरी गीतों के संग्रह के बारे में था। पहला भोजपुरी उपन्यास बिंदिया 1956 में रामनाथ पांडे द्वारा लिखा गया था। इसे भोजपुरी संसद, जगतगंज, वाराणसी द्वारा प्रकाशित किया गया था।[6][7]

  1. Tiwari, Arjun (2014). Bhojpuri Sahtiya Ke Itihas. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789351460336.
  2. Tahmid, Syed Md. "Buddhist Charyapada & Bengali Identity" (अंग्रेज़ी में). Cite journal requires |journal= (मदद)
  3. Folk-lore (India), Volumes 20-21. 1979. पृ॰ 83.
  4. Bihar (India); Pranab Chandra Roy Choudhury (1966). Bihar District Gazetteers. Superintendent, Secretariat Press, Bihar. पपृ॰ 128–129.
  5. Auty, Robert (1969-12-04). Traditions of heroic and epic poetry - Google Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780900547720. अभिगमन तिथि 2014-02-27.
  6. Dr. Viveki Rai, Bhojpuri Katha Sahity ke vikaas
  7. भोजपुरी साहित्य के संत-रामनाथ पांडेय Webduniya.