भोला पासवान शास्त्री

भारतीय राजनीतिज्ञ

भोला पासवान शास्त्री (21 सितंबर 1914 -- 9 सितंबर 1984) एक स्वतन्त्रता सेनानी और भारतीय राजनेता थे जो १९६८ और १९७१ के बीच तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे।[1] वे एक अत्यन्त ईमानदार व्यक्ति थे। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राजनीति में सक्रिय हुए थे। बहुत ही गरीब परिवार में जन्म होने के बावजूद वे सुशिक्षित एवं बौद्धिक रूप से काफी सशक्त थे। कांग्रेस ने उन्हें तीन बार अपना नेता चुना और वह तीन बार अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री बनाये गये। उनका कार्यकाल निर्विवाद था और उनका राजनीतिक व व्यक्तिगत जीवन पारदर्शी था। वे बिहार के प्रथम मुख्यमन्त्री थे जो अनुसूचित जाति के थे।

भोला पासवान शास्त्री

कार्यकाल
जून 1971 - जनवरी 1972
कार्यकाल
जून 1969 - जुलाई 1969
कार्यकाल
फरवरी 1968 - जून 1968

जन्म 21 सितंबर 1914 और मृत्यु 9 सितंबर 1984 को दिल्ली में हुआ
बैरगाछी, पूर्णिया जिला, बिहार
राष्ट्रीयता भारतीय
राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

पेड़ के नीचे बैठक बुलाना, झोपड़ी में रहना, साइकिल से गांव जाना इनकी पहचान और विशिष्टता थी। 'भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय' का नाम उनके नाम पर रखा गया है।काश, सब नेता भोला बाबू की तरह होते ये कहानी है... कहानी क्यों, ये तो एक सुखद हकीकत है गुजरे दौर की। उस दौर की जब एक नेता ने ईमानदारी की वो मिसाल कायम की थी जिसकी आज सिर्फ कसमें खाकर ही काम चला लिया जाता है। हो सकता है कि हमारे शब्द कुछ नेताओं को चुभें लेकिन क्या करें... जो सच है वो है। भोला बाबू ने जो जीवन जिया वैसा जीवन जीने के लिए ईमानदारी वाला कलेजा चाहिए।

पेड़ के नीचे जमीन पर मीटिंग करने वाले सीएम भोला पासवान शास्त्री चाहे मंत्री रहें या फिर बाद में मुख्यमंत्री... वो पेड़ के नीचे ही अपना काम भी करते थे। वो खुरदरी भूमि पर कंबल बिछाकर बैठते थे और वहीं अफसरों के साथ बैठक कर मामले का निपटारा भी कर देते थे। 1973 में वो केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री तक बने

व्यक्तिगत जीवन

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भोला पासवान शास्त्री का जन्म पूर्णिया जिले के बैरगाछी गांव में पासवान समाज में हुआ था। उनके पिता निलहे अंग्रेजों के हरकारे थे। दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से उन्होंने 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की थी।

चौथी बिहार विधानसभा (1967-1968) में 100 दिनों के लिए वे बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस ने बहुमत खो दिया और मध्यावधि चुनाव बुलाया गया। जून 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो हरिहर सिंह की कांग्रेस सरकार गिर गई। भोला पासवान शास्त्री ने कांग्रेस (संगठन) गुट का साथ दिया और 13 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने। लेकिन उनका गठबंधन अस्थिर साबित हुआ। जून 1971 तक वह कांग्रेस में वापस आ गए और 1972 के विधान सभा चुनावों के दौरान 7 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने। 1973 में वो केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री भी रहे।

भोला पासवान शास्त्री चाहे मंत्री रहें या फिर बाद में मुख्यमंत्री... वो पेड़ के नीचे ही अपना काम भी करते थे। वो खुरदरी भूमि पर कंबल बिछाकर बैठते थे और वहीं अफसरों के साथ बैठक कर मामले का निपटारा भी कर देते थे। सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और सार्वजनिक संपत्ति से खुद को दूर रहने के कारण बिहार की राजनीति के 'विदेह' कहे गए।

इनकी ईमानदारी ऐसी थी कि जब इनकी मृत्यु हुई तो खाते में इतने पैसे नहीं थे कि ठीक से श्राद्ध कर्म हो सके। शास्त्री जी को अपनी कोई संतान नहीं थी। विवाहित जरूर थे किन्तु पत्नी से अलग हो गये थे। बिरंची पासवान जो शास्त्री जी के भतीजे हैं, उन्होंने ही शास्त्री जी को मुखाग्नि दी थी। पूर्णिया के तत्कालीन जिलाधीश ने इनका श्राद्ध कर्म करवाया था। गांव के सभी लोगों को गाड़ी से पूर्णिया ले जाया गया था।

भोला पासवान शास्त्री के गांव पूर्णिया के बैरगाछी में आज भी उनका परिवार छप्पर के एक घर में रहता है।[2] सरकार की ओर से शास्त्री जी के परिजन को एक या दो इंदिरा आवास मिला है, हालाँकि उन्होंने कभी कुछ माँगा नहीं।

भोला पासवान शास्त्री की जयंती पूर्णिया में और पटना में राजकीय स्तर पर मनाई जाती है। जयन्ती के अवसर पर शास्त्री जी के गांव बैरगाछी और उनके स्मारक स्थल 'काझा कोठी' में माल्यार्पण और सर्वधर्म प्रार्थना सभा की जाती है।

  1. "बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री". http://cm.bih.nic.in/ (अंग्रेज़ी में). मूल से 19 मार्च 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 नवंबर 2015. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  2. भोला पासवान शास्त्री

बाहरी कड़ियाँ

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