भूगोल में, भौगोलिक अवस्थिति पृथ्वी की सतह पर किसी वस्तु अथवा अवघटना की सटीक स्थिति है। यह जगह या स्थान (अंग्रेजी के प्लेस) से भिन्न है क्योंकि, स्थान मानवीय अवबोध द्वारा चिह्नित होता है जबकि अवस्थिति स्थान-निर्धारण की अधिक सटीक और ज्यामितीय विधि है।

भौगोलिक निर्देशांक पद्धति का प्रयोग करते हुए यदि पृथ्वी पर किसी बिंदु को मात्र अक्षांस-देशांतर के मानों द्वारा ही बताया जाय तो यह अवस्थिति की जानकारी देना हुआ, वहीं यदि अक्षांश-देशांतर के मानों के साथ कोई भौतिक-सांस्कृतिक लक्षण अथवा पहचान भी बताई जाय तो यह उस बिंदु को "स्थान" के रूप में चिह्नित करना कहलायेगा।

अवस्थिति की अवधारणा का विकास और अनुप्रयोग, भूगोल में '50 के दशक के बाद आयी मात्रात्मक क्रान्ति, और स्थानिक विश्लेषण के विकास दौरान हुआ और इसी काल में "अवस्थिति" और "स्थान" में अंतर स्पष्ट करने पर बल दिया गया। इस अवधारणा के विकास में यी फू तुआन, जॉन एग्न्यू, पीटर हैगेट इत्यादि का योगदान महत्वपूर्ण है।