मंचूरिया
मंचूरिया (Manchu: Manju, सरलीकृत चीनी: 满洲; पारंपरिक चीनी: 滿洲; Mongolian: Манж) पूर्वी एशिया का एक विशाल क्षेत्र है जिसका विस्तार चीन, कोरिया तथा रूस के इलाकों में है।
मंचूरिया स्थिति : 46 20' उ0 अ0 तथा 127 0' पू0 दे0। साम्यवादी चीन का यह उत्तरी-पूर्वी प्रशायकीय क्षेत्र है जिसका क्षेत्रफल 3,42,454 वर्ग मील तथा जनसंख्या 4,13,67,846 (1950) हें ।
मंचूरिया के उत्तर एवं पूर्व में साइबेरिया और कोरिया, दक्षिण में पीला सागर और चीन, साइबेरिया और मंगोलिया हैं जिसने मंचू राजवंश स्थापितश् किया, के नाम पर इस भाग का नाम मंचूरिया पड़ा है लेकिन आज का मंचूरिया चीनियों के शासन में है और अधिकांश मंचू लोगों ने चीनी नाम, रीति रिवाज एवं चीनी भाषा को अपना लिया है।
मंचूरिया के प्रादेशिक विभागों में कई बार परिवर्तन हुआ है लेकिन 1956 ई0 के अंतिम बँटवारे के अनुसार इसमें तीन प्रांत कीरिन, हेलुंगजिआंग और लियाओनिंग हैं। इसका पश्चिमी भाग अंतस्थ मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र है। इसके उत्तर में शिंगान (Khingan) पर्वत श्रेणियाँ तथा दक्षिण में चागपाई श्रेणी पड़ती है। आमर,श् आरगुन, शुंगारी और ऊसूरी मुख्य नदियाँ हैं। यालू और मुमेन नदियाँ मंचूरिया को कोरिया से अलग करती हैं। अधिकांश भाग की जलवायु स्वास्थ्यवर्द्धक है। अधिक ऊँचे तथा उत्तरी क्षेत्रों में जाड़े में बहुत ही अधिक ठंडक पड़ती है। यहाँ साल में छह मास बर्फ जमी रहती है। गरमी का ताप 320 सें0 रहता है। वर्षा 20 ईचं से 24 ईचं तक होती है।
उत्तर-पूर्वी भाग की भूमि, विशेषत: लियाओ और शुंगारी नदियों के बीच के मैदान, बहुत उपजाऊ हैं। इस समतल एवं विस्तृत मैदान को विशाल मंचूरियाई मैदान कहते हैं। कृषि का प्रमुख और उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण इस मैदान को चीन का रोटी क्षेत्र (bread basket) कहा जाता है। लगभग आधे कृषि भूभाग में सोयाबीन की खेती होती है। गेहूँ, केओलिन, ज्वार, बाजरा, धान, मटर, कपास, चुकंदर, सन और पटसन अन्य महत्वपूर्ण फसलें हैं। सोयाबीन का रूपांतरण मंचूरिया का सर्वप्रमुख उद्योग है। कीरिन, हार्बिन, चांगचुन और मूकडेन उद्योगों के मुख्य केंद्र हैं।श् वनसंपदा की भी प्रचुरता है। अखरोट, ओक, चीड़ और फर के वृक्षों से लकड़ी के अतिरिक्त कागज, काष्ठस्टार्च और दियासलाई का निर्माण होता है। पीतसागरीय तटों पर मछली मारना एक महत्वपूर्ण उद्योग है। यहाँ चीन की 80 प्रतिशत लौह धातुश् निकाली जाती है। कुछ कोयले की खानें भी हैं। पर्याप्त मात्रा में ऐलुमिनियम, मैग्नीशियम, टंगस्टन, टिन, सोना, चाँदी, जिंक, ताँबा, एस्बेस्टाँस, मौलीब्डेनम, चूना पत्थर एवं संगमरमर आदि मिलते हैं। ऊनी, सूती एवं रेशमी वस्त्र उद्योग, लौह इस्पात उद्योग तथा यंत्र निर्माण उद्योग काफी विकसित हैं।
यातायात का प्रबंध बहुत उत्तम है। यहाँ की सभी नदियाँ नाव्य हैं लेकिन भारीश् वस्तुओं के यातायात के लिए केवल शुंगारी नदी हीश् उपयुक्त है। नदियों के जम जाने पर उनका उपयोग सड़कों के रूप में होता है। जलविद्युत् केन्द्र शुंगारी एवं यालू नदियों पर हैं। [राजेंद्रप्रसाद सिंह]
बाहरी कड़ियाँ
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