मणि भवन भारत के मुंबई में स्थित एक ऐतिहासिक महत्व का भवन जहाँ गांधीजी ने काफी समय तक निवास किया और भारत की स्वतंत्रता का आंदोलन चलाया। वर्ष 1917 से 1934 गांधीजी का यह निवास था।

मणि भवन

यह भवन मुम्बई के गामदेवी क्षेत्र के १९ लेबर्नम मार्ग पर स्थित है। यह भवन रेवाशंकर जगजीवन झावेरी का था जो गांधीजी के मित्र थे। यह काल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण था जब असहयोग आंदोलन, दाण्डी यात्रा, सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे आम लोगों से जुड़े आंदोलन चले। इस दौरान इस घर में कई बैठकें हुईं जिसमें देश के बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया। जब गर्मी होती थी, तो बैठकों का दौर छत पर चलता था।

मणि भवन में गांधी जी का कमरा

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वर्ष 1917 में मणि भवन के पास रोज़ आने वाले एक व्यक्ति से महात्मा गाँधी ने रूई धुनने के पहले पाठ सीखे. इसके अलावा उन्होंने चरखा कातना भी यहीं सीखा. वर्ष 1919 में जब उनकी तबीयत ख़राब थी तब कस्तूरबा गाँधी के आग्रह पर उन्होंने यहीं बकरी का दूध पीना शुरू किया।

यहीं से उन्होंने अंग्रेज़ी ‘यंग-इंडिया’ और गुजराती ‘नवजीवन’ साप्ताहिक पत्रों के संचालन की ज़िम्मेदारी संभाली. यहाँ अपने निवास के दौरान उन्होंने कई उपवास रखे और साथियों के साथ सलाह-मशवरे किए।

बापू गिरफ्तार हुये, मणिभवन के छत पर

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चार जनवरी 1932 को बड़े सवेरे गाँधीजी मणि भवन के छत पर उनके तंबू में से गिरफ़्तार किए गए। जून 27 और 28, 1934 को कांग्रेस कार्यकारिणी की एक और बैठक यहाँ हुई। यह महात्मा गाँधी का मणि-भवन में अंतिम प्रवास था।

मणि-भवन के भू-तल पर एक लाइब्रेरी है जिसमें महात्मा गाँधी और उनके विचारों से जुड़ी करीब 50 हजार किताबें हैं। पहले तल की सीढ़ियाँ चढ़ते समय आपको दीवारों पर महात्मा गाँधी की कई तस्वीरें टंगी दिखेंगी। पहले तल पर एक छोटा सा ऑडिटोरियम या प्रेक्षागृह है।

महात्मा गाँधी दूसरे तल पर बैठा करते थे। उस जगह को अब शीशे से सील कर दिया गया है। शीशे के पार देखें तो वहाँ चरखे, उनका टेलीफ़ोन और एक छोटा सा हाथ से झलने वाला पंखा नज़र आता है। हालांकि यहाँ रखा गद्दा और तकिया नया है।

महात्मा और पत्नी कस्तूरबा का काता हुआ सूत यहाँ रखा है। कमरे के साथ ही लगी हुई है एक गैलरी जहाँ खड़े होकर वो लोगों का अभिवादन स्वीकार करते थे।

इसके अलावा साथ ही बड़े हॉल में एक प्रदर्शनी लगी हुई है जिसमें महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़ी विभिन्न घटनाओं की झांकियाँ प्रस्तुत की गई हैं। साथ ही के एक कमरे में रवींद्रनाथ टैगोर को लिखी चिट्ठी है। उसके बगल में साफ़ अक्षरों में सुभाष चंद्र बोस की लिखी चिट्ठी रखी हुई है।

बाहरी कड़ियाँ

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