मतुआ महासंघ
मतुआ महासंघ एक धर्मसुधार आन्दोलन है जो १८६० ई के आसपास अविभाजित भारत के बंगाल में शुरू हुआ था। वर्तमान में इसके अनुयायी भारत और बांग्लादेश दोनों में हैं। मतुआ समुदाय हिन्दुओं का एक एक समुदाय है।
इस आन्दोलन का आरम्भ हरिचन्द ठाकुर के अनुयायियों ने आरम्भ किया था। हरिचन्द ने बहुत कम आयु में आत्मदर्शन किया था और अपने सिद्धान्तों को वे १२ सूत्रों के रूप में अपने शिष्यों को बताते थे।
धर्मावलंबियों की संख्या | |
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ल. 50 millions | |
स्थापक | |
Harichand Thakur | |
धर्म | |
Matua, Hinduism | |
भाषाएँ | |
Sacred BengaliSanskrit Holy Book Harililamrito_Adi-Rigvedi Priest Gosain/Guru_Santo/ Ma_Santo Majority Bengali | |
संबंधित जातीय समूह | |
Avarna Namaswej |
मतुआ महासंघ 'स्वयं-दिक्षिति' में विश्वास करता है। १९४७ में भारत के विभाजन के बाद भारी संख्या में मतुआ लोग भारत के पश्चिमी बंगाल राज्य में आकर बस गए।
हरिचंद्र ठाकुर का जन्म एक गरीब नामशूद्र परिवार में हुआ था। ठाकुर ने खुद को ‘आत्मदर्शन’ के जरिए ज्ञान की बात कही। मतुआ महासंघ की मान्यता ‘स्वम दर्शन’ की रही है, अर्थात् मतलब जो भी ‘स्वम दर्शन’ या भगवान हरिचंद्र के दर्शन में भरोसा रखता है, वह मतुआ संप्रदाय का माना जाता है। धीरे-धीरे उनकी ख्याति वंचित और 'निचली' कही जाने वाली जातियों में काफी बढ़ गई। संप्रदाय से जुड़े लोग हरिचंद्र ठाकुर को भगवान विष्णु और कृष्ण का अवतार मानते हैं। सम्मान में उन्हें श्री श्री हरिचंद्र ठाकुर कहते हैं।