मत्स्य न्याय(Matsya Nyaya)

मत्स्य न्याय एक प्राचीन भारतीय दर्शन है, जिसका अर्थ है- मछलियों का क़ानून। इसे प्रकृति के उस मौलिक नियम के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसके अनुसार बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है अर्थात शक्तिशाली निर्बल को नष्ट कर देता है। इसकी तुलना 'जंगल के क़ानून' से की जा सकती है। सरल शब्दों में -  जब अव्यवस्था का वातावरण होता है तो शक्तिशाली निर्बल पर हावी हो जाता है।

दर्शन

प्राचीन भारतीय दार्शनिक चाणक्य (कौटिल्य), जो मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के मुख्य सलाहकार भी थे, ने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में इस सिद्धांत का उल्लेख यह दर्शाने के लिए किया है कि एक राज्य को अपने आकार और सुरक्षा में वृद्धि करनी चाहिए। चाणक्य के अनुसार, सरकार या विधि के शासन के अभाव में  मानव समाज पतित होकर अराजकता की स्थिति में पहुँच जाएगा, जिसमें शक्तिशाली लोग ठीक उसी तरह निर्बलों को नष्ट कर देंगे या उनका शोषण करने लगेंगे जैसे बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। अतः इस दर्शन के अनुसार, शासन का सिद्धान्त इस विश्वास पर आधारित था कि अनैतिकता मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति होती है। दूसरे शब्दों में, यह सिद्धांत यह बताता है कि मानव समाज में 'मत्स्य न्याय' के इस प्राकृतिक नियम को लागू होने से रोकने के लिए सरकार, शासक और विधि आवश्यक हैं। अत: यह सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि सरकार और क़ानूनों की आवश्यकता क्यों है। इसलिए, कौटिल्य 'दण्ड' के महत्व पर बल देते हैं, क्योंकि इसके अभाव में 'मत्स्य न्याय' अर्थात् अराजकता उत्पन्न हो जाएगी।