मदालसा विश्वावसु गन्धर्वराज की पुत्री तथा ऋतध्वज की पटरानी थी।[1] इनका ब्रह्मज्ञान जगद्विख्यात है। पुत्रों को पालने में झुलाते-झुलाते इन्होंने ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था।वे अनासक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन करती जिसके फल स्वरुप उनके पुत्र बचपन से ही ब्रह्मज्ञानी हुए। आज भी वे एक आदर्श माँ हैं क्योंकि वैष्णव शास्त्रों में वर्णन आता हैं की पुत्र जनना उसीका सफल हुआ जिसने अपने पुत्र की मुक्ति के लिय उसे भक्ति और ज्ञान दिया।

मदालसा
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मदालसा को हर (चुरा) ले जाने पर पातालकेतु तथा इनके पति ऋतध्वज से घोर संग्राम हुआ। अंत में पातालकेतु परास्त होकर मारा गया और ऋतध्वज ने इन्हें उसके बंधन से मुक्त किया।

मदालसा ज्ञानी थी। उसने अपने सभी पुत्रों को भी ज्ञानी बना दिया। अपने बच्चों को पालने में झुलाते समय वह गाया करती थी “शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि संसारमायापरिवर्जितोऽसि - हे वत्स, तुम विशुद्ध हो, बुद्ध हो, निरंजन तथा जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त हो ।” बच्चे माता के दुग्ध के साथ-साथ वेदान्त की इस शिक्षा को भी आत्मसात् कर समय आने पर सन्त हो गये ।

सभी नारियों को मदालसा के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए अपनी सन्तान को सत्य तथा न्याय के मार्ग के अनुगमन के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।

राजा ऋतध्वज और मदालसा संपादित करें

विवाह के बाद मदालसा के गर्भ से क्रमश: विक्रांत, सुबाहु और अरिमर्दन नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए।[2]पुत्रों को पालने में झुलाते-झुलाते इन्होंने ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था।[3] यमुना तट पर पातालकेतु का छोटा भाई मायावी दानव तालकेतु रहता था। बातें बना कर ऋतध्वज से उन के गले का हार ले लिया और ऋतध्वज के पिता शत्रुजित से जा कर कहा की आपका पुत्र मेरे आश्रम के तपस्वियों की रक्षा करते हुए मारा गए। अपने पति की बात जानकर मदालसा की इस वेदना के कारण उसकी चलती-चलती श्वासें एक साथ रुक सी गई।[4] पति के वियोग में मदालसा ने अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए।[5]

बाहरी कडियाँ संपादित करें


  1. कांतिभां एस, प्रजापति. Markandey Puran: Ek Parisheelan. श्रीनिवास पब्लिकेशंसी. अभिगमन तिथि 10 सितंबर 2011.
  2. महेश शर्मा, पी. भल्ला. Kya Kahate Hain Puran. डायमंड पॉकेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड. अभिगमन तिथि 20 सितंबर 2017.
  3. "मदालसा". अभिगमन तिथि 11 जून 2022.
  4. रांगेय, राघव (1994). प्राचीन प्रेम और नीति की कहानियाँ. किताबघर प्रकाशन.
  5. हरीश, शर्मा (2010). Vedon Ki Kathayen. विद्या विहारं.