राव मधुकरशाह बुंदेला
इस लेख में अनेक समस्याएँ हैं। कृपया इसे सुधारने में मदद करें या वार्ता पृष्ठ पर इन समस्याओं पर चर्चा करें।
|
मधुकरशाह बुंदेला १८४२ में अंग्रेजों के विरुद्ध हुए बुन्देला विद्रोह के नायक थे। मधुकर शाह को ब्रिटिश हुकूमत ने केवल इक्कीस वर्ष की आयु में फांसी लगवा दी थी, जिससे की विद्रोह की चिंगारी आगे न बढ़ सके। मधुकर शाह द्वारा किये गये बुन्देला विद्रोह से अंग्रेज इतना परेशान हुये कि उन्होंने मधुकर शाह को मध्य प्रदेश के सागर में खुलेआम फांसी का आदेश दिया गया था। इस बलिदान को सदैव जीवन्त रखने के लिए सागर जिले में आज भी सागर जेल में उनका समाधि स्थल है। साथ ही गोपाल गंज में वृहद पार्क व एक वार्ड का नाम भी मधुकर शाह के नाम पर है।
1857 के विद्रोह से भी पहले 1842 में बुन्देला विद्रोह हुआ था जिसमें सामूहिक रुप से अंग्रेजों का हिंसक प्रतिकार किया गया था। यह विद्रोह गोंडवाना, मालवा , बुन्देलखण्ड सहित सारे मध्य भारत में फैला था। विद्रोहियों में कई को फांसी, कई को गोली मारने और कई को काला पानी की सजा देने के बाबजूद इसे दबाने में अंग्रेजों को लगभग दो बर्ष लगे थे ।
गोविन्द नामदेव ने अल्पज्ञात तथ्यों को जुटाकर मधुकर शाह : बुंदेलखण्ड का नायक नामक एक पुस्तक लिखी है।[1]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "पुस्तक समीक्षा- मधुकर शाह: बुंदेलखण्ड का नायक". मूल से 14 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2020.