मध्यमा प्रतिपद
तथागत गौतम बुद्ध ने आर्य अष्टांगिक मार्ग को मध्यमाप्रतिपद (पालि: मझ्झिमापतिपदा ; तिब्बती: དབུ་མའི་ལམ། Umélam; वियतनामी : Trung đạo; थाई: มัชฌิมา) के रूप में अभिव्यक्त किया ।
दो अतियों का त्यागकर मध्य मार्ग पर चलने का तरीका बौद्ध धर्म ने सिखाया है। अष्टांग योग ही बौद्ध धर्म का मूल है। यह अब भी प्रासंगिक है। वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के विवेकानंद सभागार में आयोजित मासिक विचार संगोष्ठी में दिल्ली सरकार के अधीन शिक्षा निदेशालय के पूर्व अतिरिक्त शिक्षा निदेशक डॉ. धर्मकीíत ने यह बात कही। इस अवसर पर 'संवाद' नामक स्मारिका का भी लोकार्पण किया गया।
आधुनिक युग में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता पर केंद्रित विचार गोष्ठी में डॉ. धर्मकीíत ने कहा कि तथागत बुद्ध की शिक्षा पूरे पंचशील में व्याप्त है। हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना और नशा न करना. चोरी, हिंसा, झूठ, व्यभिचार और मादक पदार्थ इनसे से दूरी ही बुद्ध की शिक्षा है। मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि तथागत बुद्ध के समय में ढाई हजार साल पहले समाज में विद्रूपताएं थीं, अनाचार था, अधर्म था, अतिवाद पर अंकुश नहीं था। ऐसे में तथागत बुद्ध ने समाज में संतुलन पैदा करने का काम किया। इस अवसर पर विचार संगोष्ठियां-2014-15 की संवाद नामक स्मारिका का भी लोकार्पण किया गया। संगोष्ठी में मेवाड़ इंस्टीट्यूशंस की निदेशक डॉ. अलका अग्रवाल, वरिष्ठायन संस्था के सदस्य वैद्य शांति कुमार मिश्र, दिवंकर कौशल, शैलेन्द्र पाठक समेत मेवाड़ का समस्त शिक्षण स्टाफ मौजूद था।
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |