मारचा एवं तोलचा


ऊपरी चमोली के ठंडे एवं सूखे भागों में माणा एवं नीति घाटियों में मारचा वास करते हैं। यद्यपि वे तिब्बती भाषा बोलते हैं, उनके मुखाकृति की विशेषता आर्यो से मिलती-जुलती दिखती है। चूंकि मूल रूप से वे तिब्बत से आये हैं इसलिए मारचा हिन्दू धर्म मानते हैं। अन्य भोटिया समूहों के विपरित, वे हिन्दू मंदिरों में पूजा करते हैं तथा धार्मिक समारोहों का आयोजन करने में हिन्दू ब्राम्हणों पर विश्वास करते हैं।

परंपरागत रूप से मारचा यायावरी गडेरिये एवं चरवाहे होते हैं। लाक्ष्णिक रूप से पुरूष गडेरियों का कार्य करते हुए भेड़ों एवं बकरियों को पालते हैं जबकि महिलाएं गांव में रहकर खेती करती हैं। इन उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की प्रमुख फसलें राजमा, आलू, मटर तथा अन्य प्रकार के अन्न हैं। गर्मियों में जानवर ऊंचे घने चारागाहों में चरते हैं तथा जाडों में नीचे चले आते हैं। चरवाहे जीविका के लिए पशुओं के ऊन, मांस एवं दूध बेचते हैं।

मारचा का तिब्बतियों से संबंध बना हुआ है जो 5,800 मीटर ऊंचाई पर स्थित माणा एवं नीति दर्रो द्वारा उनके साथ विनिमय-व्यापार करते हैं। वर्ष 1962 में भारत-तिब्बत सीमा बंद हो गयी। इसके बंद होने से पहले बड़ी संख्या में खच्चरों, याकों के साथ कठोरतम परिश्रमी लोग भारतीय सामानों को लादकर तिब्बत ले जाते, जब बर्फ पिघल जाता। व्यापार केंद्रो में वे अपने सामानों का विनिमय तिब्बती ऊन एवं नमक से करते, जिसे वे भारत में स्थानीय बाजारों में फिर बेच देते। व्यापारी लोग अक्टूबर में जाड़ा शुरू होने से पहले भारत लौट आते। वर्ष 1962 में भारत-तिब्बत सीमा बंद हो जाने के बाद मारचा लोगों ने अर्द्ध-कृषि एवं अर्द्ध बंजारी-जीवन शैली को अपना लिया। वर्ष 1992 में सीमित व्यापारिक संबंध कायम किया गया।

मारचा जनजाति के बीच नीति घाटी में बसने वाले छोटे भोटिया समूह तोलचा हैं जो मारचा की तरह ही हिन्दू हैं। उनके तिब्बती मूल होने के बावजूद सदियों से आर्यो के साथ परस्पर विवाह होते रहने से तोलचा जनजाति तिब्बतियों की अपेक्षा आर्यो के जौनसारी से अधिक निकटता रखते हैं।