मलक्का जलडमरूमध्य

(मलक्का जलसन्धि से अनुप्रेषित)

यह विश्व की एक प्रमुख जलसन्धि हैं। इसकी लंबाई 805 किमी या 500 मील है। इसका नाम मलक्का के सल्तनत (सोलहवीं सदी) पर पड़ा है। यह जलसंधि अधिक गहरा नहीं (२५ मीटर) जिसके कारण अधिक बड़े जहाज यहाँ से नहीं जा सकते। लेकिन प्रशांत महासागर और हिंदमहासागर के बीच के जल-मार्ग में स्थित होने के कारण इसका बहुत महत्व है। सोलहवीं सदी में पुर्तगालियों ने इस महत्वपूर्ण मार्ग पर कब्ज़ा करने का अभियान चलाया था। सत्रहवीं सदी में डचों ने इसे पुर्तगालियो से छीन लिया और ८० सालों के बाद इसे ब्रिटिशों को एक संधि के तहत दे दिया।



इन्डोनेशिया-मलेशिया मलय प्रायद्वीप (प्रायद्वीपीय मलेशिया) और इंडोनेशियाई द्वीप सुमात्रा के बीच स्थित है ! यह हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर को जोडती है।

भौगोलिक महत्व

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यह जल सन्धि हिन्द महासागर और प्रशान्त महासागर जोड़ती है। यह दोनों महासागरों का मिलन बिंदु है। यह भौगोलिक विभागों को सांस्कृतिक रूप से जोड़ती है।

व्यापारिक महत्व

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इस जलमार्ग से एशिया (यानि जापान, चीन, कोरिया) के लिए तेल जाता है तथा इंडोलेशियाई कॉफ़ी का व्यापार प्रमुख है।

सामरिक महत्त्व

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मध्य-पूर्व और पूर्वी एशिया के बीच सबसे छोटा समुद्री मार्ग, एशिया, मध्य-पूर्व एवं यूरोप के मध्य परिवहन के समय तथा लागत को कम करने में मदद करता है। इस गलियारे के माध्यम से, विश्व के समुद्री व्यापार के लगभग 60% का पारगमन होता है और यह दो मुख्य एशियाई उपभोक्ताओं पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना एवं जापान के लिये तेल आपूर्ति का मुख्य स्रोत है। अंडमान और निकोबार कमान (ANC) की स्थापना वर्ष 2001 में दक्षिण-पूर्व एशिया एवं मलक्का जलडमरूमध्य में भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा के लिये द्वीपों में सैन्य संपत्तियों की तेज़ी से तैनाती को बढ़ाकर की गई थी। [1]

बाहरी कड़ीयाँ

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