मलिक अयाज़

जॉर्जिया ससे एक गुलाम था जो रैंक तक पहुंचे सुल्तान की सेना में अधिकारी

मलिक अयाज़ सुल्तान महमूद ग़ज़नवी के ग़ुलाम और प्रेमी या महबूब थे। वे जोर्जियाई मूल के थे।[1][2]

सुल्तान ग़ज़नवी के सामने मालिक अयाज़ झुकते हुए

उन्होंने ग़ज़नवी की सेना के अधिकारी बने और बाद में वे सेनापति बने। लेकिन स्थानीय मुसलमान इतिहासकार और सूफ़ी मलिक अयाज़ को महमूद ग़ज़नवी के भरोसेमन्द सामन्तवादी वफ़ादार के रूप में याद करते हैं।

आगया ऐन लड़ाई में अगर वक़्त-ए-नमाज़
क़िबला रोओ हो के ज़मीं-बोस हुई क़ौम-ए-हिजाज़
एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद-ओ-अय्याज़
ना कोई बंदा रहा और ना कोई बंदा-नवाज़
बंदा-ओ-साहिब-ओ-मुहताज-ओ-ग़नी एक हुए
तेरी सरकार में पहुंचे तो सभी एक हुए
शिकवा, मुहम्मद इक़बाल

  • खानदान और खून की पहचान!*
  • सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने इक बार दरबार लगाया दरबार में हज़ारों अफ़राद शरीक थे जिनमें औलिया क़ुतुब और अ़ब्दाल भी थे।*
  • सुल्तान महमूद ने सबको मुखातिब करके कहा कोई शख्स मुझे हज़रत खिज़्र (عليه السلام) की ज़ियारत करा सकता है? सब खामोश रहे दरबार में एक गरीब देहाती खड़ा हुआ और कहा मैं करा सकता हूं।*
  • सुल्तान ने शर्त पूछी तो अर्ज़ करने लगा छह माह दरिया के किनारे चिल्ला काटना होगा। लेकिन मैं एक गरीब आदमी हूं मेरे घर का खर्चा आपको उठाना होगा सुल्तान ने शर्त मंजूर कर ली उस शख्स को चिल्ला के लिए भेज दिया गया और घर का खर्चा बादशाह के जिम्मे हो गया। छह माह गुज़रने के बाद सुल्तान ने उस शख्स को दरबार में हाज़िर किया और पूछा तो देहाती कहने लगा हुज़ूर कुछ वज़ाईफ उल्टे हो गए हैं लिहाज़ा छह माह मज़ीद लगेंगे मज़ीद छह माह गुज़रने के बाद सुल्तान मह़मूद ने फिर दरबार लगाया और दरबार में हज़ारों अफराद शरीक थे उस शख़्स को दरबार में हाज़िर किया गया।*
  • और बादशाह ने पूछा मेरे काम का क्या हुआ यह बात सुनकर देहाती कहने लगा बादशाह सलामत कहां मैं गुनहगार और कहां हज़रत खिज़्र मैंने आपसे झूठ बोला मेरे घर का खर्चा पूरा नहीं हो रहा था बच्चे भूख से मर रहे थे। इसलिए ऐसा करने पर मजबूर हुआ सुल्तान मह़मूद गज़नवी ने अपने एक वज़ीर को खड़ा किया और पूछा इस शख्स की सज़ा क्या है वज़ीर ने कहा "सर" इस शख्स ने बादशाह के साथ झूठ बोला है लिहाज़ा उसका गला काट दिया जाए*
  • दरबार में एक नूरानी चेहरे वाले बुज़ुर्ग तशरीफ फरमा थे कहने लगे बादशाह सलामत इस वज़ीर ने बिल्कुल ठीक कहा*
  • बादशाह ने दूसरे वज़ीर से पूछा आप बताओ उसने कहा "सर" इस शख़्स ने बादशाह के साथ धोखा (फ्रॉड) किया है उसका गला ना काटा जाए बल्कि उसे कुत्तों के आगे डाला जाए ताकि यह ज़लील हो के मरे उसे मरने में कुछ वक्त तो लगे।*
  • दरबार में बैठे उसी नूरानी चेहरे वाले बुज़ुर्ग ने कहा बादशाह सलामत यह वज़ीर बिल्कुल ठीक कह रहा है*
  • सुल्तान मह़मूद ग़ज़नवी ने अपने प्यारे गुलाम अयाज़ मह़मूद से पूछा आप क्या कहते हो अयाज़ ने कहा बादशाह सलामत आपकी बादशाही से एक साल एक ग़रीब के बच्चे पलते रहे आप के खज़ाने में कोई कमी नहीं आई और ना ही उसके झूठ से आपकी शान में कोई फर्क पड़ा अगर मेरी बात मानो तो उसे माफ कर दो। अगर उसे क़त्ल कर दिया तो उसके बच्चे भूख से मर जाएंगे अयाज़ कि बात सुनकर महफ़िल में बैठे वही नूरानी चेहरे वाला बाबा कहने लगा अयाज़ बिल्कुल ठीक कह रहा है*
  • सुल्तान महमूद गज़नवी ने उस बाबा को बुलाया और पूछा आपने हर वज़ीर के फैसले को दुरुस्त कहा उसकी वजह मुझे समझाई जाए??*
  • बाबा कहने लगे बादशाह सलामत पहले नंबर पर जिस वज़ीर ने कहा उसका गला काटा जाए वह कौम का कसाई है और कसाई का काम है गले काटना उसने अपना खानदानी रंग दिखाया गलती उसकी नहीं आप कि है, कि आपने एक कसाई को वज़ीर बना लिया।*
  • दूसरा जिसने कहा उसे कुत्तों के आगे डाला जाए उस वज़ीर का वालिद बादशाहो के कुत्ते नहलाया करता था कुत्तों से शिकार खेलता था उसका काम ही कुत्तों का शिकार है तो उसने अपने खानदान का ताअ़रूफ कराया इसमें आपकी गलती है कि ऐसे शख़्स को वज़ारत दी जहां ऐसे लोग वज़ीर हो वहां लोगों ने भूख से ही मरना है।*
  • और तीसरा अयाज़ ने जो फैसला किया तो सुल्तान मह़मूद सुनो अयाज़ सैय्यद ज़ादा है सैय्यद कि शान ये है कि सैय्यद अपना सारा खानदान कर्बला में ज़ब्ह कर देता है मगर बदला लेने का कभी नहीं सोचता।*
  • सुल्तान महमूद अपनी कुर्सी से खड़ा हो जाता है और अयाज़ को मुख़ातिब करके कहता है अयाज़ तुमने आज तक मुझे क्यों नहीं बताया कि तुम सैय्यद हो*
  • अयाज़ कहता है आज तक किसी को इस बात का इ़ल्म न था कि अयाज़ सैय्यद है लेकिन आज बाबाजी ने मेरा राज़ खोला आज मैं भी राज़ खोल देता हूं सुनो ये बादशाह सलामत और दरबारियों यह बाबा कोई आम हस्ती नहीं यही हज़रत खिज़्र (عليه السلام) हैं।*

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Allsen, Thomas. The Royal Hunt in Eurasian History. पृ॰ 264.
  2. Pearson, Michael Naylor. Merchants and Rulers in Gujarat: The Response to the Portuguese in the Sixteenth Century. पृ॰ 67.