महादेव देसाईं

भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, लेखक और महात्मा गांधी के निजी सचिव
(महादेव देसाई से अनुप्रेषित)

महादेव देसाईं (गुजराती: મહાદેવ દેસાઈ) (१ जनवरी १८९२ - १५ अगस्त १९४२) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी एवं राष्ट्रवादी लेखक थे। किन्तु उनकी प्रसिद्धि इस कारण से ज्यादा है कि वे लम्बे समय (लगभग २५ वर्ष) तक गांधीजी के निज सचिव रहे।

महादेव देसाईं

महादेव देसाईं का चित्र बापू के साथ
जन्म १ जनवरी १८९२ (आयु ५०)
सूरत, गुजरात, भारत
मौत १५ अगस्त १९४२ (५० वर्ष की आयु में)
राष्ट्रीयता भारतीय
शिक्षा एल एल बी कानून
शिक्षा की जगह गुजरात
प्रसिद्धि का कारण स्वतंत्रता सेनानी
महात्मा गाँधी के सहयोगी व निजी सचिव

जीवन परिचय

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महादेव देसाईं का जन्म सूरत के एक छोटे से गाँव "सरस" में १ जनवरी १८९२ को हुआ। महात्मा गाँधी से इनकी भेंट सर्वप्रथम ३ नवम्बर १९१७ को गोधरा में हुई। यही से महादेव देसाईं बापू और उनके आन्दोलनों से जुड़ गये और जीवन पर्यन्त राष्ट्र सेवा करते हुए १५ अगस्त सन १९४२ को आगा खान पैलस (ब्रिटिश राज द्वारा यह पैलेस जेल के रूप में प्रयुक्त होता था) में जीवन की अन्तिम श्वास ली। महादेव देसाईं ने बापू के निजी सचिव के तौर पर कार्य करते हुए अपनी डायरी में भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन का जो जीवन्त वर्णन किया है, वह अदभुत हैं। वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण सैनिक थे।

"महादेव देसाईं का एक सुन्दर वर्णन ‘ हसीदे एदीब ‘ की ‘ इनसाइड इण्डिया’ (भारत में) नामक पुस्तक में ‘ रघुवर तुमको मेरी लाज ‘ नाम के चौथे अध्याय में मिलता है। जब वे महात्माजी से बातें कर रहीं थीं, महादेव देसाईं नोट ले रहे थे। उन्हीं के शब्दों में – ” वे निरंतर नोट लेते रहते हैं। मेरी महात्माजी से जो बातें हुईं, वे तो मैं आगे दूँगी ही। मगर यह उनका सेक्रेटरी ऐसा है कि वह किसी का भी ध्यान आकर्षित किए बिना नहीं रह सकता। यद्यपि वह अत्यन्त नम्र और अपने -आपको कुछ नहीं माननेवाला है। महादेव का गांधीजी के आंदोलन से अपर कोई अस्तित्व नहीं है। महादेव देसाई ऊँचे, इकहरे तीस – पैंतीस बरस के हैं। उनके चेहरे के नक्श दुरुस्त हैं और होठ पतले हैं ; आँखें ऐसी हैं कि वे किसी रहस्यमयी दीप्ति से चमकती रहती हैं। यह रहस्यभरी झलक (जो कि बहुत गहरी है) होते हुए भी, वह अत्यन्त व्यवस्थित काम करनेवाले व्यक्ति हैं। अगर वे व्यवस्थित न हों तो इतना सब काम कर ही नहीं सकते। यद्यपि उनका स्वभाव तेज, भावकतापूर्ण है ; फिर भी उनका अपनी वासनाओं पर संयम है। महात्माजी के प्रति जो श्रद्धा -भक्ति उन्हें है, वह धार्मिक है ; सोलह वर्षों से वे गांधी के साथ रहे हैं, उनसे एकात्म होकर। बचपन से बहुत तंग गलियों से गुजरता हुआ यह जवान आदमी आज वैराग्य की कठिनतम सीढ़ी पर चढ़ आया है। वह ‘ हरिजन ‘ का संपादन करता है। साथ ही सेक्रेटरी का सब काम करता है, जिसमें सफाई, बर्तन- धोना वगैरह सब आ जाता है। निरंतर योरोप, सुदूरपूर्व, अमरीका सभी ओर से गांधीजी प्रश्नों की झड़ी लग रही है और उसमें भी अपने मन की समतोलता को बनाये रखना असाधारण बुद्धिमत्ता का काम है। महादेव देसाईं ब्रिटिश राज एंव देशी रियासतों के मसलों को भी देखते थे। एक बार वह ग्वालियर-राज्य सार्वजनिक सभा के अध्यक्ष बनकर ‘मुरार’ गये।"

बापू के साथ भारत भ्रमण व जेल यात्राओं के अतिरिक्त ग्रेट ब्रिटेन के महाराजा के बुलावे पर महात्मा गाँधी के साथ महादेव देसाईं बंकिंमघम पैलेस इंग्लेंड भी गये, बापू महादेव सरदेसाई को पुत्रवत मानते थे।

सेवाग्राम

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महादेव देसाईं ‘सेवाग्राम’ में निवास करते थे, आज भी यह कुटी जिज्ञासुओं के अवलोकनार्थ व्यवस्थित है।

पत्रकारिता एंव लेखन

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दि इंडिपेंडेंट

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महादेव देसाईं 1921 में अखबार दि इंडिपेंडेंट से जुड़े, जो इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ करता था। मोतीलाल और जवाहरलाल नेहरु के जेल जाने पर इस अखबार के संपादक के तौर पर महादेव देसाईं ने कार्य किया। ब्रिटिश सरकार द्वारा इस अखबार पर रोक लगा दी तब महादेव देसाईं "द इंडिपेंडेंट" को एक वर्ष तक साइकिलोस्टाइल पर निकाला। महादेव देसाईं की गिरफ्तारी होने पर महात्मा गांधी के पुत्र देवदास गांधी ने इस अखबार को निकाला और देसाईं की पत्नी दुर्गाबेन ने सक्रिय सहयोग दिया।[उद्धरण चाहिए]

 
हरिजन पत्र

महादेव देसाईं हरिजन समाचार पत्र के संपादक थे। देसाईं 1924 में नवजीवन के संपादक रहे।

  • अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान पर पुस्तक
  • नवजीवन के लिए लेखन डायरी लेखन
  • लार्ड मोर्ले की रचना का गुजराती में अनुवाद
  • २० खण्डों में प्रकाशित महादेव देसाईं की डायरी
  • महात्मा गांधी की गुजराती में लिखी आत्मकथा सत्य के साथ प्रयोग का अंग्रेजी में अनुवाद
  • जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा "एन ऑटोबायोग्राफ़ी" का गुजराती में अनुवाद|

ध्वस्त स्मारक

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बडवानी से लगभग पांच किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के किनारे बापू कस्तूरबा के साथ उनके साथी महादेव देसाई की समाधियां स्थित हैं। इस स्थान को राजघाट के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में महात्मा गांधी के साथ कस्तूरबा और महादेव देसाईं के भस्मी कलश स्मारक जर्जर हो गये हैं।

आठ अगस्त १९४२ को मुम्बई के ग्वालिया टैक के मैदान में अपने ऐतिहासिक भाषण में महात्मा गाँधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो - करो या मरो’ का नारा दिया। ९ अगस्त की भोर में महात्मा गाँधी, श्रीमती सरोजनी नायडू और महादेव देसाईं को गिरफ़्तार कर पुणे के आगा खाँ महल में बन्द कर दिया गया। १५ अगस्त १९४२ को महादेव देसाईं की इस जेल में ही मृत्यु हुई।

महादेव देसाईं की समाधि

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आगा खान महल में कस्तूरबा और महादेव देसाईं की समाधियां

महादेव देसाईं को नौ अगस्त १९४२ में गिरफ्तार कर आगा खान महल में रखा गया। १४-१५ अगस्त की मध्य रात्रि को देसाई का निधन हुआ। उनके निधन के उपरान्त महात्मा गांधी की इच्छा के अनुसार आगा खान के महल में उनकी समाधि बनवाई गई। इस समाधि पर ओम एंव क्रास के चिन्ह अंकित किए गये। महादेव देसाईं के मृत्यु के एक वर्ष पश्चात कस्तूरबा का स्वर्गवास हुआ, कस्तूरबा की समाधि महादेव देसाईं की समाधि के निकट निर्मित की गयी।

अन्य कड़ियां

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