महानामव्रत ब्रह्मचारी
महानामव्रत ब्रह्मचारी (२५ दिसम्बर १९०४ - १८ अक्टूबर १९९९) वर्तमान बांग्लादेश में हिन्दू धर्म के महानाम सम्प्रदाय के एक साधु थे। वे दार्शनिक, लेखक एवं धर्म गुरु थे।
जीवन परिचय
संपादित करेंश्री महानामव्रत जी का जन्म ग्राम खालिसकोटा (जिला बारीसाल, वर्तमान बांग्लादेश) में 25 दिसम्बर 1904 को हुआ था। उनका बचपन का नाम बंकिम था। वे अपने धर्मप्रेमी माता-पिता की तीसरी सन्तान थे। बंकिम को उनसे बाल्यावस्था में ही रामायण, महाभारत और अन्य धर्मग्रन्थों का ज्ञान मिल गया था। लगातार अध्ययन से पिता कालीदास जी की आँखों की ज्योति चली गयी। ऐसे में बंकिम उन्हें धर्मग्रन्थ पढ़कर सुनाने लगेे।
वे एक प्रतिभावान छात्र थे। उन्होंने कक्षा आठ तक पढ़ाई की और फिर गांधी जी की अपील पर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। इसके तीन साल बाद वे श्रीजगद्बन्धु प्रभू के अनुयायी बने। श्रीजगद्बन्धु प्रभू एक अंधेरी कोठरी में सात साल एकान्त साधना कर बाहर आये थे। तब हजारों लोग उनकी एक झलक देखने के लिए एकत्र हुए थे। बंकिम पैदल ही घर से 125 कि॰मी॰ दूर वहाँ गये। उनके दर्शन से वे अभिभूत हो उठे।
जगद्बन्धु प्रभू के देहान्त के बाद बंकिम ने संन्यासी बनने का निश्चय किया। उनके बीमार पिता ने यह सुनकर उसी समय देह त्याग दी। इसके बाद वे श्री जगद्बन्धु के अनुयायी और महानाम सम्प्रदाय के संस्थापक अध्यक्ष श्रीपाद महेन्द्र जी के चरणों में गयेे। महेन्द्र जी ने उन्हें घर जाकर हाईस्कूल की परीक्षा देने को कहा।
यद्यपि उन्होंने तीन साल से पढ़ाई छोड़ दी थी। फिर भी कठोर परिश्रम कर उन्होंने परीक्षा दी और छात्रवृत्ति प्राप्त की। वह तब केवल 17 साल के थे। इसके बाद वे विधिवत महानाम सम्प्रदाय के संन्यासी बन गये। उनका संन्यास का नाम श्रीमहानामव्रत ब्रह्मचारी हुआ।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- विदेशों में धर्म के प्रचारकः महानामव्रत जी[मृत कड़ियाँ] (प्रभासाक्षी)
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