महाराष्ट्र का भूगोल

महाराष्ट्र का भूगोल

महाराष्ट्र का भूगोल में प्रयुक्त शब्द महाराष्ट्र मुख्य रूप से मराठी भाषा के प्राकृत रूप महाराष्ट्री से लिया गया है। आम जन के अनुसार यह महार और रत्तों की भूमि थी, जबकि अन्य इसे 'दंडकारण्य' के पर्याय 'महा कांतारा' (महान वन) शब्द का अपभ्रंश रूप मानते हैं।[1][2] महाराष्ट्र क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान और मध्य प्रदेश के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। यह 307,713 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र तक फैला हुआ है। इसकी सीमा उत्तर में मध्य प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण-पूर्व में तेलंगाना, दक्षिण में कर्नाटक और दक्षिण-पश्चिम में गोवा से लगती है। महाराष्ट्र की तटरेखा 720 कि.मी. है। महाराष्ट्र में दो प्रमुख राहत विभाग हैं।

महाराष्ट्र का मानचित्र

भू-परिदृश्य

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महाराष्ट्र में उल्लेखनीय भौतिक एकरूपता है, जो इसके अंतर्निहित भूविज्ञान द्वारा लागू की गई है। राज्य की प्रमुख भौतिक विशेषता इसका पठारी स्वरूप है। सह्याद्री को महाराष्ट्र की भौतिक रीढ़ माना जाता है। इसकी औसतन ऊँचाई १००० मीटर है। इसकी ढलान पश्चिम में कोंकण तक जाती है। महाराष्ट्र की सबसे ऊँची चोटी कलसुबाई शिखर है।

भूविज्ञान और स्थलाकृति

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मुंबई को छोड़कर पूर्वी सीमाओं सहित महाराष्ट्र एक ऐसे क्षितिज को दर्शाता है जो कि नीरस एकरूप तथा सपाट-शीर्ष वाला है। राज्य की यह स्थलाकृति इसकी भूवैज्ञानिक संरचना के कारण है।

इस राज्य की उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु आनंद देने वाली होती है।

इन्हें भी देखें

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  1. "महाराष्ट्र जियोप्रोफ़ाइल". महाराष्ट्र गवर्नमेंट. मूल से 18 जून 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जून 2023.
  2. डॉ. पुरुषोत्तम गणेश, सहस्रबुद्धे (1979). महाराष्ट्र संस्कृती (प्रथमावृत्ति संस्करण). पुणे: अनंत अंबादास कुलकर्णी कॉन्टिनेन्टल प्रकाशन. पृ॰ 11.