महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी
महाराष्ट्र में 'हिन्दी अकादमी' स्थापित होनी चाहिए, इसकी प्रेरणा स्व॰ हरिशंकरजी को सर्वप्रथम हुई। उन्होंने नंदकिशोर नौटियाल, महावीर अधिकारी, गिरिजाशंकर त्रिवेदी तथा अन्य हिन्दी सेवियों से संपर्क किया और दो-तीन बार तत्कालीन मुख्य मंत्री स्व॰ वसंतराव दादा पाटिल से चर्चा हुई। दादा ने कुछ करने का आश्वासन दिया, परंतु दुर्भाग्य से महीने भर बाद ही उनकी सरकार गिर गई। मुख्य मंत्री बाबा साहेब भोसले से सदन में सवाल पूछा गया और सदन में र॰ सू॰ गवई, कविवर महानोर आदि के साथ राममनोहर त्रिपाठी को मुख्यमंत्री को आखिर यह आश्वासन देना पड़ा कि अगले सत्र के पहले तक अकादमी घोषित की जाएगी।
परिणामस्वरूप हिन्दी अकादमी अस्तित्व में आ गयी पर सालभर यह अकादमी यों ही कागज़ों, अखबारों में चलती रही। फिर विधान परिषद के सदन में त्रिपाठीजी ने यह मसला नये सिरे से उठाया। इसी बीच नागपुर में हिन्दी-सेवी विट्ठल चौधरी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। बम्बई के 'नवभारत टाइम्स', 'हिन्दी ब्लिट्ज़' और नागपुर के 'नवभारत' ने भी हिन्दी अकादमी के पक्ष में लिखा। अंततः एक लंबी लड़ाई के बाद हिन्दी अकादमी बनी, मगर अड़चनें दूर नहीं हुईं। अभी भी काफी अड़चने हैं। मराठीभाषी हिन्दी-साधकों ने हिन्दी के विकास के लिए जो साधना की है, वह अफसरों, नेताओं और बाबुओं को मालूम नहीं, इसीलिए अड़चनें हैं। फिर भी महाराष्ट्र एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ मराठी और हिन्दी के अलावा उर्दू, गुजराती और सिंधी भाषा की शासकीय अकादमियाँ बनायी गई।
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी की स्थापना 1982 में तत्कालीन विधायक तथा हिन्दी साहित्यकार-पत्रकार डॉ॰ राममनोहर त्रिपाठी की अध्यक्षता में हुई, किंतु आवश्यक अनुदान, कर्मचारी और कार्यालय के अभाव में कोई काम नहीं हो सका और त्रिपाठीजी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पुनः 1986 में प्रा॰ राम मेघे की अध्यक्षता में, जो महाराष्ट्र में शिक्षा मंत्री थे, अकादमी का पुर्नगठन हुआ। 'महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी' का आधारभूत उद्देश्य है हिन्दी के मंच से राष्ट्रीय एकता के लिए काम करना। इस उद्देश्य को दृष्टि में रखकर 'हिन्दी अकादमी' हिन्दी भाषा एवं साहित्य की प्रोन्नति के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित योजनाओं का यथारूप राज्य में कार्यान्वन करती है।
प्रारंभ के वर्षों में हिन्दी अकादमी का वार्षिक बजट केवल डेढ़ लाख रुपये था। उसके बाद के वर्षों में 5 लाख रु वार्षिक हुआ और 1990 के वर्षों में आकर यह राशि वार्षिक 11 लाख रु. पर पहुँची। इतनी कम बजट राशी के बावजूद महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी महाराष्ट्र में हिन्दी के प्रचार-प्रसार, नवलेखकों को प्रशिक्षण, प्रोत्साहन और पुरस्कार, पुस्तक प्रकाशन और ग्रंथालयों को पुस्तकों की आपूर्ति, महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों में हिन्दी की अधि छात्रवृत्तियाँ देने जैसे स्थायी कार्य संपन्न करती आयी है। पिछले दस वर्षों में अकादमी के वार्षिक लगभग 10 लाख रु. के बजट के अलावा 50 लाख रु. तक विशेष अनुदान मिलने से अकादमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी साहित्य संगम (2004), पुणे तथा त्रिदिवसीय सर्वभारतीय भाषा सम्मेलन, 2008 मुम्बई में आयोजित कर सकी है। महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी को सभी विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भाग लेने का श्रेय प्राप्त है। मराठी भाषा साहित्य और महाराष्ट्र की सुपुष्ट संस्कृति हिन्दी में लाने की दिशा में भी हिन्दी अकादमी ने विशेष प्रयत्न किये हैं। उत्कृष्ठ मराठी साहित्य के हिन्दी भाषांतरकारों को पुरस्कृत करने के अलावा अकादमी ने ऐसी कृतियों को प्रकाशन अनुदान भी दिया है। अकादमी भाषांतरकार को अनुदान शुल्क के साथ मूल लेखक को भी रायल्टी प्रदान करती है। 2008 में हिन्दी अकादमी ने (1) कविता महाजन, (2) उर्मिला पवा, (3) भरत साशणे, (4) जयंत पवार और (5) अरुणा ढेरे इन साहित्यकारों को उत्कृष्ट रचनाओं का भाषांतर कार्य सौंपा है, जो शीघ्र पूरा होकर प्रकाशित किया जाएगा।
हिन्दी अकादमी राष्ट्रीय स्तर पर भी एक महाराष्ट्र भारती अखिल भारतीय हिन्दी सेवा पुरस्कार प्रदान करती है जिनमें हिन्दी के प्रकांड विद्वान तथा श्रेष्ठ हिन्दी सेवी नाम शामिल हैं।
अकादमी के पुरस्कार सम्मानितों में कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, रामेश्वर शुक्ल अंचल, विष्णु प्रभाकर, राम विलास शर्मा, गौरा पंत शिवानी, विद्यानिवास मिश्र, विश्वंभरनाथ उपाध्याय, डॉ॰ राममनोहर त्रिपाठी, गंगाप्रसाद विमल, मन्नू भंडारी, चंद्रशेखरन नायर, अरविंद कुमार-कुसुम कुमार, श्री मुनीन्द्र, डॉ॰ कन्हैयालाल नंदन, रुक्माजी राव अमर, तंक्कपन नायर, विश्वनाथ सचदेव जैसे सशक्त हस्ताक्षर शामिल हैं।
इनके अलावा अकादमी 100 से ऊपर विभिन्न विद्वानों को जिनमें जयंत नार्लीकर, सूर्यभानु गुप्त, सत्यदेव दुबे जैसे लेखक, कवि, नाट्यकर्मी और साहित्यकार शामिल हैं, पुरस्कृत कर चुकी है।
अकादमी प्रति वर्ष 3 राज्य स्तरीय पुरस्कार देती आयी है। अब 8 राज्य स्तरीय पुरस्कारों के साथ दो अखिल भारतीय पुरस्कार भी देने का निर्णय हुआ है, जो इस प्रकार है-
- (1) छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
- (2) पद्मश्री अनंत गोपाल शेवडे हिन्दी सेवा पुरस्कार
- (3) गजानन माधव मुक्तिबोध मराठीभाषी हिन्दी लेखक पुरस्कार
- (4) श्री शांताराम ललितकला हिन्दी विशिष्ट सेवा पुरस्कार
इनके अलावा अकादमी प्रविष्टियों के आधार पर 13 विधाओं में विधा पुरस्कार प्रदान करती है।
100 से ज्यादा लेखकों को उनकी सुयोग्य रचनाओं पर प्रकाशन अनुदान अकादमी अब तक दे चुकी है।
हिन्दी अकादमी ने अपने इन 27 वर्षों में अनेक विशेषांक तथा ग्रंथ प्रकाशित किये हैं, जिनमें संत साहित्य विषयक संकलन 'अभंग', पं॰ माखनलाल चतुर्वेदी विशषांक, राहुल सांकृत्यायन, हिन्दी साहित्य 50 वर्ष, द्विदशाब्दी अंक, महात्मा फुले, डॉ॰ भीमराव आंबेडकर, महाराष्ट्र की संस्कृति के आयाम, 'एक दीप कवि प्रदीप' अंक तथा 100 से ऊपर पुस्तक प्रकाशन अनुदान विभिन्न लेखकों को दिये हैं।
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी की गतिविधियाँ केवल मुम्बई तक सीमित नहीं हैं। अकादमी ने औरंगाबाद, नांदेड़, सांगली, नागपु, गोंदिया, अमरावती, पुणे, सोलापुर, लातूर, जालना आदि स्थानों पर अपने सदस्यों की पहल पर अनेक कार्यक्रम किये हैं।
सांगली में सर्वभाषा सम्मेलन शृंखला के अंतर्गत किये गये कार्यक्रम में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय स्तर के 132 प्राध्यापकों और शिक्षकों ने बतौर प्रतिनिधि भाग लिया।
सर्वभारतीय भाषा सम्मेलन, 2008 में देशभर से 22 भाषाओं के प्रतिनिधि साहित्यकारों और 400 से अधिक स्थानीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जिसमें अभिव्यक्त उत्साह तथा प्रपत्रों को देखते हुए सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि 'हिन्दी अकादमी' महाराष्ट्र के प्रत्येक जिले में सर्वभाषा सम्मेलन आहूत करे।
महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी नए साहित्यकारों में सृजनशीलता बढ़ाने के लिए नित नए कार्य कर रही है। यह सच है की मुंबई हिंदी साहित्य का गढ़ है। देश के विभिन्न कोनों से हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकारों ने आकर मुंबई में अपनी सेवाएं दी हैं और वर्तमान में दे भी रहे हैं। मुंबई के विशाल रंगमंच थिएटर्स फिल्मी और टेलीविजन की दुनिया को समृद्ध किया है। हिंदी की सृजनशीलता और समृद्धि में महाराष्ट्र सरकार का सदैव सहयोग रहा है। आज महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की देन है कि मुंबई ही नहीं महाराष्ट्र के सभी जिलों,गांव और कस्बों में भी हिंदी को अच्छी खासी पहचान मिल रही है। इससे हिंदी साहित्य समृद्ध हो रहा है और हिंदी सारे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर रही है।