महालक्ष्मी मंदिर, डहाणू
यह मंदिर महाराष्ट्र के सबसे प्राचीन मंदिरों मे से एक है। इस मंदिर का निर्माण जव्हार रियासत के पृथम कोली शासक जयवा मुकने महाराजा ने १३०६ मे जव्हार पर अपना झंडा लहराने के पश्चात ही किया था। यह मंदिर अत्यंत सुंदर, आकर्षक और लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर महाराष्ट्र में पालघर जिले के डहाणू मे स्थिथ है।[1][2]
देवी महालक्ष्मी मंदिर | |
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आई महालक्ष्मी | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | महालक्ष्मी. पार्वती. शक्ती |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | मुशाल्या डोंगर, डहाणू, पालघर, महाराष्ट्र, भारत |
ज़िला | पालघर |
राज्य | महाराष्ट्र |
देश | भारत |
वास्तु विवरण | |
संस्थापक | महाराज जयवा मुकने |
स्थापित | १३०६ |
प्रत्येक वर्ष खेत पहली फसल से इस मंदिर में देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती। पितृ मावस्या के दिन यहां आदिवासी मेला लगता है। यहां के सभी किसान अपने खेत में पैदा होने वाले धान, बाजरा, ककड़ी, गोभी सहित विविध प्रकार की सब्जी तथा फल चढ़ाकर मां की पूजा करते हैं। उनका मानना है कि मां को खेत की फसल अर्पित करने से उनके घर में सुख-शांति तथा पैदावार में बरकत होती है। चैत्र नवरात्रि में यहां माता जी को ध्वज चढ़ाने की परंपरा है। जव्हार के तत्कालीन राजा मुकने घराने का ध्वज ही मां के मंदिर पर चढ़ाया जाता है। उस ध्वज को वाघाडी गांव के पुजारी नारायण सातवी चढ़ाते हैं।[2]
संदर्भ
संपादित करें- ↑ Tribhuwan, Robin D. (2003). Fairs and Festivals of Indian Tribes (अंग्रेज़ी में). Discovery Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7141-640-0.
- ↑ अ आ "महालक्ष्मी के इस मंदिर में चढ़ती है पहली फसल रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप - mobile". punjabkesari. 2018-12-21. अभिगमन तिथि 2020-04-19.